भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) और उनके स्थानीय संस्थानों के वैज्ञानिकों ने मेघालय के शिलांग के शहरी क्षेत्र में कैस्केड़ (अमोलॉप्स) मेंढक की एक नई प्रजाति को रिकॉर्ड किया है। यह खोज न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि शहरी पारिस्थितिक तंत्र की जैव विविधता के महत्व को रेखांकित करती है।

खोजी गई नई प्रजाति के बारे में
- परिचय : कैस्केड मेंढक की यह प्रजाति अमोलॉप्स इंडोबर्मानेसिस (Amolops indoburmanensis) प्रजाति से संबंधित है।
- कैस्केड/अमोलॉप्स मेंढक (Cascade/Amolops) : ये विशेष प्रकार के मेंढक होते हैं जो पर्वतीय क्षेत्रों में बहते झरनों, जलप्रपातों (Cascades) और तेज़ बहाव वाले नालों के आस-पास पाए जाते हैं।
- ये मेंढक आमतौर पर अत्यंत विशिष्ट एवं संकीर्ण पारिस्थितिक आवास (Niche Habitat) में रहते हैं
- खोज स्थल : यह प्रजाति 4,990 फीट की औसत ऊँचाई पर शिलांग के भीतर झरनों एवं जल स्रोतों के पास पाई गई।
- नामकरण : इसका नाम अमोलॉप्स शिलांग (Amolops shillong) या शिलांग कैस्केड मेंढक रखा गया है।
प्रजाति की विशेषताएँ
- मॉर्फोलॉजिकल भिन्नता : इसमें अन्य मेढक प्रजातियों की तुलना में आकार, त्वचा की बनावट एवं शारीरिक अनुपात में स्पष्ट अंतर दिखाई देते हैं।
- क्रिप्टिक प्रजाति : यह प्रजाति अत्यंत cryptic (छिपी प्रकृति वाली) है, जो अन्य मेंढ़क प्रजातियों से बाह्यतः मिलती-जुलती होती है किंतु अनुवांशिक रूप से भिन्न है।
- निकटतम संबंधी : इसके निकटतम आनुवंशिक संबंध Amolops siju से है जिसकी खोज 2023 में दक्षिण गारो हिल्स स्थित सिजू गुफा से हुई थी।
- पर्यावरणीय संकेतक के रूप में : कैस्केड मेंढक साफ़ एवं अछूते जल निकायों के सूचक माने जाते हैं।
- इनकी उपस्थिति दर्शाती है कि शिलांग जैसे शहरी क्षेत्रों में भी अबाधित व स्वच्छ जल तंत्र अभी भी मौजूद हैं। ये मेंढक शहरी पारिस्थितिकी की गुणवत्ता एवं स्थानीय जलवायु संतुलन का संकेत देते हैं।
भारत में अमोलॉप्स मेंढ़कों की स्थिति
- वर्तमान में भारत में अमोलॉप्स मेंढकों की 20 मान्यता प्राप्त प्रजातियाँ हैं जिनमें से 16 का वर्णन देश के भीतर ही किया गया है।
- इनमें से नौ प्रजातियाँ विगत दो दशकों में दर्ज की गई हैं जो भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र की उभयचर विविधता के हॉटस्पॉट के रूप में स्थिति के महत्व को रेखांकित करती है।
शहरी पारिस्थितिकी में खोज का महत्त्व
- इस खोज से यह स्पष्ट होता है कि शहरी क्षेत्र भी जैव विविधता के संरक्षण स्थल हो सकते हैं।
- यह खोज बताती है कि शहर पारिस्थितिक रूप से रिक्त नहीं हैं, बल्कि दुर्लभ प्रजातियों के लिए आश्रय स्थल बन सकते हैं।
नीतिगत सुझाव व संरक्षण की दिशा
- शहरी योजना में जैव विविधता संरक्षण का एकीकरण : शहरों के विकास में ग्रीन कॉरिडोर, शहरी वन व जल स्रोतों की रक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए।
- सूक्ष्म आवास (Microhabitats) की पहचान व संरक्षण : शिलांग जैसे शहरों में इन स्थानों की रक्षा से न केवल मेंढ़कों जैसे उभयचरों का, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण संभव है।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी : पारंपरिक ज्ञान एवं स्थानीय जागरूकता के सहारे संरक्षण की रणनीति प्रभावी हो सकती है।