New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM Festive Month Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 30th Oct., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM Festive Month Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 30th Oct., 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM

डोगरी भाषा

 (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू)

संदर्भ

जम्मू में हाल ही में किए गए एक समाजभाषाविज्ञान अध्ययन (Sociolinguistic Study) में डोगरी भाषा के घटते प्रयोग पर चिंता जताई गई है। इसके अनुसार शहरी युवाओं में डोगरी भाषा पढ़ने या लिखने में लगभग शून्य निपुणता दिखाई दे रही हैं।

डोगरी भाषा के बारे में

  • डोगरी एक इंडो-आर्यन भाषा है जो मुख्यतः भारत के जम्मू क्षेत्र में बोली जाती है। यह भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है। 
  • यह वर्ष 2020 से जम्मू एवं कश्मीर की आधिकारिक भाषा भी है। राम नाथ शास्त्री को डोगरी साहित्य में उनके योगदान के लिए डोगरी के पिता के रूप में जाना जाता है। वह एक बहुमुखी लेखक, नाटककार और कोशकार थे।
  • इसे संस्कृत भाषा की ही संतति मानी जाती है जो प्राचीन इंडो-आर्यन (1200-250 ईसा पूर्व) से मध्य इंडो-आर्यन (400 ईसा पूर्व-1100 ईस्वी) के माध्यम से अपने आधुनिक रूप में विकसित हुई। ‘डोगरा’ या ‘डुग्गर’ शब्द का उल्लेख 1317 ईस्वी में अमीर खुसरो की ‘नूह सिपिहर’ में मिलता है।

वर्तमान स्थिति 

  • महाराजा रणबीर सिंह (1857-85 ई.) के अधीन डोगरा रियासत की आधिकारिक लिपि के रूप में इसे ‘डोगरा अक्खर’ (Dogra Akkhar) में लिखा जाता था किंतु बाद में 20वीं सदी में इसे देवनागरी लिपि से बदल दिया गया।
  • डोगरी को वर्ष 2003 में संवैधानिक मान्यता प्राप्त हुई, जो भारत के भाषाई संरक्षण में एक मील का पत्थर है।
  • डोगरी लगभग 2.6 मिलियन लोगों द्वारा बोली जाती है। यह मुख्य रूप से जम्मू, हिमाचल प्रदेश और उत्तरी पंजाब के साथ-साथ पाकिस्तान व भारतीय प्रवासियों के बीच छोटे समुदायों द्वारा बोली जाती है।

डोगरी भाषा की विशेषताएँ

  • भाषाई विशेषताएँ: इसमें 10 स्वरों और 28 व्यंजनों का प्रयोग स्वरगत विविधताओं (सम, उतार, चढ़ाव) के साथ किया जाता है।
  • ध्वन्यात्मक पैटर्न: यह नासिकाकरण (आनुनासिका), मेटाथेसिस (Metathesis: शब्द में अक्षरों के उच्चारण का अदल-बदल या विपर्यास) और स्वर-आधारित ध्वनि विभेदन प्रदर्शित करती है।
  • शब्दावली प्रभाव: इसमें संस्कृत मूल के शब्दों को धारण करते हुए फारसी व अंग्रेजी से शब्दों को उधार लिया गया है। 
  • भौगोलिक विविधता: जम्मू के पहाड़ी क्षेत्रों और मैदानी इलाकों के बीच बोली-भाषा में विविधता मौजूद है।

प्रयोग में कमी के कारण

  • नीतिगत उपेक्षा : उर्दू या हिंदी की तुलना में देरी से मान्यता मिलने और न्यूनतम सरकारी प्रोत्साहन के कारण संस्थागत समर्थन कम हो गया है।
  • शहरी अलगाव : सर्वेक्षणों से पता चलता है कि केवल 4% शहरी उत्तरदाता ही डोगरी लिख सकते हैं जो शिक्षा और प्रशासन में इसके संकुचित स्थान को दर्शाता है।
  • पीढ़ीगत अलगाव : युवा पीढ़ी में साक्षरता की कोई विशेष दक्षता नहीं है और वे डोगरी को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भाषा तो मानते हैं किंतु आर्थिक रूप से अप्रासंगिक मानते हैं।

प्रमुख रचनाकार, रचना और सम्मान  

रचनाकार

कांगड़ा का मानक चंक, गणभीर राय, देवी दित्ता (दत्तु), त्रिलोचन, गंगा राम, लक्खू, हाकम जाट, रुद्र दत्त, मेहता मथुरा दास, राम प्रपन्न शास्त्री, संत राम शास्त्री, बाबा कृषि राम, राम धन, पं. हरदत्त शास्त्री, मोहन लाल सपोलिया, चरण सिंह, पद्मा सचदेव और नरसिंह देव जामवाल आदि। 

रचनाएँ 

वीर गुलाब, मंगू दी छबील, पहला फूल, जग्गो डुग्गर और गुट्टालुन

सम्मान 

पद्मा सचदेव (पद्मश्री), ललित मगोत्रा (पद्म श्री, साहित्य अकादमी), चमन अरोड़ा (इक होर अश्वत्थामा के लिए 2024 में साहित्य अकादमी)

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X