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जेलों में समलैंगिक समुदायों के लिए सामान अधिकार

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राज्यतंत्र एवं शासन-संविधान, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ

केंद्र सरकार ने जेलों में क्वीर या समलैंगिक समुदाय के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सभी राज्यों को पत्र लिखा है।

जेलों में सामान अधिकार से संबंधित प्रमुख बिंदु 

  • केंद्र सरकार के अनुसार, समलैंगिक समुदाय (LGBTQ+) के सदस्यों को जेल में समान अधिकार प्राप्त हो तथा वस्तुओं एवं सेवाओं, विशेषकर जेल में मुलाकात के अधिकार तक पहुंच में कोई भेदभाव न हो।
  • इस आदेश के सुचारू कार्यान्वयन के लिए गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को ‘मॉडल जेल मैनुअल, 2016’ और ‘मॉडल जेल एवं सुधार सेवा अधिनियम, 2023’ के दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कहा है।
  • समलैंगिक समुदाय के लोगों के साथ प्राय: उनकी लैंगिक पहचान या यौन अभिविन्यास के कारण भेदभाव किया जाता है तथा उन्हें हिंसा व अनादर का सामना करना पड़ता है। 

जेल में कैदियों के कानूनी अधिकार

अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत कैदियों के कानूनी अधिकार

  • अंतर्राष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्रतिज्ञापत्र (ICCPR), 1966 : यह कैदियों के अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित संधि है। भारत ने इसका अनुमोदन वर्ष 1979 में किया। इस संधि के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित हैं : 
    • किसी को भी क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या दंड नहीं दिया जाएगा। 
    • प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं सुरक्षा का अधिकार है। 
    • किसी को भी मनमाने ढंग से गिरफ़्तार या हिरासत में नहीं रखा जाएगा।
    • सभी व्यक्तियों के साथ मानवता और मानव व्यक्ति की अंतर्निहित गरिमा के सम्मान के साथ व्यवहार किया जाएगा।
    • किसी को भी केवल अनुबंध संबंधी दायित्व को पूरा करने में असमर्थता के आधार पर कैद नहीं किया जाएगा।
  • जिनेवा अभिसमय, 1949 : जिनेवा अभिसमय को दो भागों में विभाजित किया गया है। इसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है :
    • भाग 1 संस्थानों के सामान्य प्रबंधन को कवर करता है। यह सभी श्रेणियों के कैदियों पर लागू होता है जिसके अंतर्गत किसी भी नस्ल, रंग, लिंग, भाषा, धर्म या अन्य स्थिति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
    • भाग II में ऐसे नियम हैं जो केवल विशेष श्रेणियों पर लागू होते हैं।
  • एमनेस्टी इंटरनेशनल का अत्याचार विरोधी अभियान : 1980 के दशक में इस अभियान ने यातना पर बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की एक श्रृंखला की वकालत की।
  • यातना एवं अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या दंड रोधी अभिसमय, 1984 (यातना अभिसमय) : इस अभिसमय ने इन संदर्भों के बाहर भी यातना को अपराध घोषित किया और यातना के किसी कृत्य के लिए व्यक्तिगत आपराधिक जिम्मेदारी निर्धारित की।

भारतीय कानूनों के अंतर्गत कैदियों के अधिकार 

  • कारागार अधिनियम, 1894 : यह अधिनियम भारत में जेल विनियमन के संबंध में पहला कानून है। यह मुख्यत: कैदियों के अधिकारों के संबंध में कैदियों के सुधार पर केंद्रित है। कैदियों के अधिकार के संदर्भ में इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं : 
    • कैदियों के लिए आवास एवं स्वच्छता की बेहतर स्थिति सुनिश्चित करना  
    • अतिरिक्त संख्या में ऐसे कैदियों के आश्रय एवं सुरक्षित हिरासत के लिए प्रावधान जिन्हें किसी भी जेल में सुरक्षित रूप से नहीं रखा जा सकता। 
    • योग्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा कैदियों की जांच से संबंधित प्रावधान
    • महिला व पुरुष कैदियों, सिविल एवं आपराधिक कैदियों और दोषी तथा विचाराधीन कैदियों को अलग-अलग रखने से संबंधित प्रावधान
    • विचाराधीन कैदियों, सिविल कैदियों के उपचार, पैरोल और कैदियों की अस्थायी रिहाई से संबंधित प्रावधान
  • मॉडल जेल मैनुअल 2016 : इसके अंतर्गत प्रत्येक कैदी को अपील की तैयारी या जमानत प्राप्त करने या अपनी संपत्ति और पारिवारिक मामलों के प्रबंधन की व्यवस्था करने के लिए अपने परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, मित्रों व कानूनी सलाहकारों से मिलने या उनसे संवाद करने के लिए उचित सुविधाएँ दी जाएँगी।
    • उसे अपने परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, मित्रों व कानूनी सलाहकारों से पखवाड़े में एक बार मिलने या भेंट करने (मुलाकात) की अनुमति दी जाएगी।
    • जेल में प्रवेश के समय प्रत्येक कैदी को उन व्यक्तियों की सूची प्रस्तुत करनी चाहिए जो उनसे मिलने या भेंट करने वाले हैं और भेंट ऐसे परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों व मित्रों तक ही सीमित होना चाहिए।
    • भेंट में बातचीत निजी व घरेलू मामलों तक सीमित होनी चाहिए और जेल प्रशासन एवं अनुशासन तथा अन्य कैदियों या राजनीति का कोई संदर्भ नहीं होना चाहिए। 
      • एक समय में एक कैदी से भेंट करने वाले व्यक्तियों की संख्या सामान्यतः तीन तक सीमित होगी।
      • महिला कैदियों के साथ मुलाकात, यदि व्यावहारिक हो, तो महिला बाड़े/वार्ड में होंगी।
    • कैदी अपने आगंतुकों, अर्थात् परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों व दोस्तों के साथ जेल अधिकारियों की उचित निगरानी में भौतिक या आभासी तरीके से संवाद कर सकते हैं।
    • कैदियों के आगंतुकों को बायोमेट्रिक सत्यापन/पहचान के माध्यम से सत्यापित/प्रमाणित किया जाएगा।
    • विदेशी कैदी अपने परिवार के सदस्यों और वाणिज्य दूतावास के प्रतिनिधियों के साथ नियमों के तहत निर्धारित तरीके से संवाद कर सकते हैं।

निष्कर्ष 

उपरोक्त सभी प्रावधान समलैंगिक समुदाय के सदस्यों पर भी समान रूप से लागू होते हैं और वे बिना किसी भेदभाव या निर्णय के अपनी पसंद के व्यक्ति से मिल सकते हैं। हालाँकि, उनके लैंगिक अभिविन्यास या पहचान के आधार पर जेलों में भेदभाव देखा जाता है जिसे समाप्त करने की आवश्यकता है। 

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