(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विकास और फैलते उग्रवाद के बीच संबंध, आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका) |
संदर्भ
17 अक्तूबर, 2025 को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा क्षेत्र में 210 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया, जो राज्य सरकार के लिए ऐतिहासिक घटना रही। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों में कई वरिष्ठ और केंद्रीय समिति के सदस्य शामिल थे। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसे ‘अंधेरे रास्ते से संविधान के मार्ग पर लौटने का क्षण’ कहा है।
माओवादी आत्मसमर्पण के बारे में
- यह आत्मसमर्पण जगदलपुर में हुआ, जहाँ माओवादियों को गुलाब और संविधान की प्रति देकर समाज की मुख्यधारा में स्वागत किया गया।
- इसे ‘सरकार के समक्ष नहीं, बल्कि समाज के समक्ष आत्मसमर्पण’ के रूप में प्रस्तुत किया गया।
- यह दंतेवाड़ा एवं बस्तर क्षेत्र को नक्सल-मुक्त घोषित करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
- भारत सरकार 31 मार्च, 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- उद्भव: माओवादी आंदोलन की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से हुई, जहां चारू मजूमदार ने किसान विद्रोह का नेतृत्व किया।
- विस्तार: 1980 में पीपुल्स वॉर ग्रुप (PWG) और 1969 में भारतीय माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCCI) बने। 2004 में इनका विलय हुआ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी (CPI-M) का जन्म हुआ।
- छत्तीसगढ़ में प्रभाव: दंडकारण्य क्षेत्र (बस्तर सहित) माओवाद का गढ़ बना। 2005 में सलवा जुडुम शुरू किया गया किंतु मानवाधिकार उल्लंघनों के कारण विवादास्पद।
- प्रमुख घटनाएं: वर्ष 2010 दंतेवाड़ा हमला (76 CRPF जवान शहीद), 2013 दरभा घाटी हमला (24 कांग्रेसी नेता की मौत)। 2025 तक 12,000 से अधिक मौतें।
- माओवादी उपस्थिति वाले क्षेत्र : प्रमुख रूप से दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर (छत्तीसगढ़); गढ़चिरौली (महाराष्ट्र); मलकानगिरी (ओडिशा); गुमला और लातेहार (झारखंड) आदि क्षेत्र।
इसे भी जानिए!
सी.पी.आई. (माओवादी) के प्रमुख केंद्रीय समिति सदस्य मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ भूपति सहित 61 माओवादियों ने 13 व 14 अक्तूबर की मध्य रात्रि में भामरागढ़ के फोडेवाड़ा गांव में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की उपस्थिति में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था।

|
आत्मसमर्पण के कारण
- सरकारी नीतियों में परिवर्तन : छत्तीसगढ़ सरकार ने पुनर्वास और आत्मसमर्पण नीति को अधिक मानवीय बनाया।
- विश्वास निर्माण : सुरक्षा बलों के साथ संवाद और जनजातीय समुदायों की भागीदारी ने विश्वास बढ़ाया।
- विकास की पहुँच : सड़क, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार से ग्रामीण इलाकों में परिवर्तन आया।
- थकान और निराशा : लंबे समय से हिंसा और जंगल जीवन से असंतोष बढ़ा।
- नेतृत्व संकट : शीर्ष माओवादी नेताओं की गिरफ्तारी या मौत से संगठन कमजोर हुआ।
व्यापक प्रभाव
- आदिवासी युवाओं में हिंसा से दूर होकर समाज में जुड़ने की भावना बढ़ी है।
- समुदायों में भय और संदेह का वातावरण कम हुआ है।
- नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़क, स्वास्थ्य एवं संचार परियोजनाओं की गति बढ़ी है।
- निवेश और प्रशासनिक पहुंच में सुधार हुआ है।
- उत्तर-पश्चिम बस्तर को नक्सल-मुक्त घोषित किया गया है।
- स्थानीय शासन और पंचायतों की भूमिका मजबूत हुई है।
- सुरक्षा बलों का दबाव घटने से संसाधनों को अब विकास कार्यों की ओर मोड़ा जा सकता है।
- स्थानीय पुलिस और प्रशासन के बीच विश्वास का वातावरण बढ़ा है।

सरकारी प्रयास
- नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट (अप्रैल 2025)
- ‘सामाजिक विश्वास एवं सुरक्षा’ मॉडल अपनाया गया है।
- डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) जैसी स्थानीय इकाइयों की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
- ऑपरेशन समर्पण और ऑपरेशन प्रहार जैसी योजनाओं से अपेक्षित परिणाम आए हैं।
- आत्मसमर्पण के बाद सरकार ने कुछ मांगें (जैसे- MBM संगठन पर प्रतिबंध हटाना और जेल में बंद माओवादियों के पुनर्वास पर विचार) स्वीकार की हैं।
प्रमुख चुनौतियाँ
- कुछ माओवादी समूहों का अब भी जंगली क्षेत्रों में सक्रिय रहना
- आदिवासियों का विस्थापन (जैसे- बोघघाट परियोजना को लेकर असंतोष)
- विश्वास बनाए रखना क्योंकि आत्मसमर्पण किए माओवादियों का समाज में पुनर्संयोजन एक संवेदनशील प्रक्रिया है।
- बाहरी समर्थन और सीमा पार से हथियार व धन की आपूर्ति को रोकना
पुनर्वास और पुनर्संयोजन
- सरकार का ज़ोर ‘सामाजिक वापसी’ पर है, न कि केवल आत्मसमर्पण पर।
- आत्मसमर्पण किए माओवादियों को आवास, शिक्षा, रोजगार व सुरक्षा दी जा रही है।
- पुनर्वास नीति में पारदर्शिता और सामुदायिक निगरानी पर बल दिया गया है।
आगे की राह
- शांति और विकास का संतुलन : सुरक्षा कार्यवाही के साथ जनजातीय विकास योजनाओं को प्राथमिकता देना
- संवाद आधारित नीति : हिंसा के बजाय वार्ता को प्रमुख मार्ग बनाना
- स्थानीय भागीदारी : पंचायत, महिला समूह एवं युवा संगठनों को शामिल करना
- शिक्षा और रोज़गार : दीर्घकालिक स्थायित्व के लिए शिक्षा एवं रोजगार सृजन को आधार बनाना
- विश्वास की निरंतरता : पुनर्वास के बाद भी नियमित निगरानी और समुदायिक सहयोग सुनिश्चित करना
निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ में माओवादियों का आत्मसमर्पण केवल सुरक्षा की सफलता नहीं है, बल्कि समाज में विश्वास और परिवर्तन का प्रतीक है। यह घटना दिखाती है कि जब शासन संवेदनशीलता और विकास का मार्ग चुनता है, तब हिंसा के बजाय संवाद व संविधान की शक्ति समाज को नई दिशा दे सकती है।