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सिंटैक्टिक फोम एवं समुद्रयान मिशन में चुनौतियां

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

चर्चा में क्यों 

भारत अपने पहले मानवयुक्त समुद्र मिशन समुद्रयान के माध्यम से 6,000 मीटर गहराई में गोता लगाकर समुद्र तल का अध्ययन करना चाहता है। लेकिन मुख्य सामग्री सिंटैक्टिक फोम (syntactic foam) की देरी मिशन की समय-सीमा को प्रभावित कर रही है।

सिंटैक्टिक फोम के बारे में

  • सिंटैक्टिक फोम बहुलक, धातु या सिरेमिक के ठोस मैट्रिक्स में अंतर्निहित खोखले गोले (माइक्रोस्फीयर) से बना एक मिश्रित पदार्थ होता है।
  • "सिंटैक्टिक" शब्द ग्रीक शब्द "एक साथ रखना" से आया है।
  • यह सिंटैक्टिक ढांचा मजबूत, हल्का और इसमें उच्च संपीड़न शक्ति होती है, जो इसे उप-समुद्री संरचनाओं, एयरोस्पेस घटकों और वाहन सुरक्षा सुविधाओं जैसे अनुप्रयोगों के लिए आदर्श बनाता है जहां उच्च शक्ति-से-भार अनुपात की आवश्यकता होती है। 

संरचना और गुण

  • संरचना: यह काँच, सिरेमिक या पॉलीमर माइक्रोस्फीयर जैसे खोखले कणों को एपॉक्सी रेज़िन जैसे बाइंडर के साथ मिलाकर बनाया जाता है। 
  • घनत्व: खोखले गोलों की उपस्थिति के कारण घनत्व कम तथा सरंध्रता अधिक होती है, जिसे माइक्रोस्फीयर की मात्रा में परिवर्तन करके समायोजित किया जा सकता है।
  • शक्ति: इसमें उच्च संपीड़न शक्ति होती है, जो इसे गहरे समुद्री वातावरण जैसे उच्च दबाव वाले अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त बनाती है।
  • इन्सुलेशन: छिद्रयुक्त संरचना इसे एक उत्कृष्ट तापीय और ध्वनिक इन्सुलेटर बनाती है।
  • ऊर्जा अवशोषण: यह प्रभाव ऊर्जा को अवशोषित कर सकता है, जो संरचनाओं की सुरक्षा या वाहनों में यात्री सुरक्षा बढ़ाने के लिए उपयोगी है। 

अनुप्रयोग

  • समुद्र के नीचे: समुद्र के नीचे वाहनों और संरचनाओं में उछाल के लिए उपयोग किया जाता है, जिससे उन्हें अत्यधिक गहराई पर संचालित करने की अनुमति मिलती है।
  • एयरोस्पेस: इसका उपयोग इसके हल्के वजन और उच्च शक्ति गुणों के लिए किया जाता है।
  • ऑटोमोटिव: कारों में इसका प्रयोग वजन कम करने, ईंधन दक्षता में सुधार लाने तथा टकराव के दौरान ऊर्जा को अवशोषित करने के लिए किया जाता है।
  • अन्य उपयोग: इसके परावैद्युत गुणों के कारण इसमें टूलींग बोर्ड, रक्षा, तथा इलेक्ट्रॉनिक्स को एम्बेड करने के अनुप्रयोग शामिल हैं।

क्या है हालिया मुद्दा 

  • फ्रांस से मिलने वाला सिंटैक्टिक फोम समय पर उपलब्ध न होने के कारण 500 मीटर की मुख्य परीक्षण डाइव अब अगले वर्ष मध्य तक टल सकती है। 
  • यह फोम सबमर्सिबल को उछाल (buoyancy) प्रदान करता है, जो उसकी सुरक्षित तैराकी के लिए अनिवार्य है।

समुद्रयान मिशन : पृष्ठभूमि

  • समुद्रयान भारत का पहला मानवयुक्त गहरे समुद्र में उतरने वाला अभियान है। 
  • राष्ट्रीय समुद्री प्रौद्योगिकी संसथान (NIOT), चेन्नई इस मिशन का नेतृत्व कर रहा है। 
  • इस मिशन में 3 वैज्ञानिक 6,000 मीटर की गहराई तक जाएंगे, समुद्र तल का अध्ययन करेंगे और मिट्टी व चट्टानों के नमूने इकट्ठा करेंगे। 
  • यह मिशन भविष्य में गहरे समुद्र में पाए जाने वाले दुर्लभ खनिजों की खोज और खनन से जुड़ी रणनीतियों में मदद करेगा।

मुख्य बिंदु

  • NIOT ने स्टील से बनी एक प्रतिकृति (simulator) तैयार की है, जिस पर प्रारंभिक परीक्षण जारी हैं।
  • 100 मीटर तक के डाइव परीक्षण पूरे हो चुके हैं।
  • अगला महत्वपूर्ण परीक्षण 500 मीटर डाइव सिंटैक्टिक फोम लगने के बाद ही संभव है।
  • यह फोम फ्रांस में बनाया जा रहा है और नॉर्वे में परीक्षण के बाद भारत भेजा जाएगा।
  • अंतिम मिशन के लिए टाइटेनियम का वास्तविक सबमर्सिबल ISRO द्वारा तैयार किया जा रहा है।
  • टाइटेनियम हुल 6,000 मीटर गहराई के दबाव को सहन करने की क्षमता की जांच के लिए रूस भेजा जाएगा।
  • यदि सब कुछ समय पर हुआ तो 500-मीटर परीक्षण डाइव अगले वर्ष अप्रैल में होने की संभावना है।

चुनौतियाँ

  • विदेशी निर्भरता: सिंटैक्टिक फोम का विदेशी निर्माताओं पर निर्भर होना समय-सीमा को प्रभावित कर रहा है।
  • अत्यधिक गहराई का दबाव: 6,000 मीटर पर दबाव समुद्र सतह की तुलना में लगभग 600 गुना अधिक होता है, जिसके लिए तकनीकी परीक्षण जटिल और समय-साध्य हैं।
  • बहु-देशीय परीक्षण: फ्रांस, नॉर्वे और रूस में अलग-अलग परीक्षण होने से समन्वय कठिन होता है।
  • सुरक्षा: मानवयुक्त मिशन होने के कारण किसी भी चरण में त्रुटि की गुंजाइश नहीं है।

आगे की राह

  • परीक्षण सामग्री की समय-युक्त डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक साझेदारों के साथ बेहतर समन्वय की आवश्यकता है। 
  • भारत को भविष्य में ऐसे उच्च-तकनीकी उपकरणों के लिए स्वदेशी निर्माण क्षमता को मजबूत करने की दिशा में काम करना चाहिए।
  • मिशन की प्रत्येक चरण-जांच को वैज्ञानिक रूप से सुचारू रूप से आगे बढ़ाने की जरूरत है ताकि अंतिम गोता (6,000 मीटर) बिना देरी के हो सके।
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