(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।) |
संदर्भ
हर वर्ष सर्दियों में दिल्ली और उत्तर भारत का बड़ा हिस्सा धुंध की मोटी परत में ढक जाता है। सरकारें क्लाउड सीडिंग, स्मॉग टावर, ऑड-ईवन, या पानी का छिड़काव जैसे त्वरित उपाय अपनाती हैं, लेकिन वायु गुणवत्ता में केवल अस्थायी सुधार आता है। असल समस्या भारत की वायु-गवर्नेंस की खामियों, विभाजित जिम्मेदारियों, और अल्पकालिक राजनीतिक प्रोत्साहनों में छिपी हुई है।
भारत में प्रदूषण-प्रबंधन विफल क्यों
त्वरित और सतही उपायों पर अधिक निर्भरता
- क्लाउड सीडिंग, स्मॉग टावर, ऑड-ईवन, एंटी-स्मॉग गन और त्योहारों पर प्रतिबंध जैसे उपाय उच्च दृश्यता के कदम हैं।
- ये राजनीतिक रूप से सुविधाजनक होते हैं, आसानी से लागू होते हैं और बजट में फिट बैठते हैं।
- लेकिन ये दीर्घकालिक सुधारों जैसे स्वच्छ ईंधन, अपशिष्ट प्रबंधन, औद्योगिक अपग्रेड या सार्वजनिक परिवहन सुधार की जगह नहीं ले सकते।
प्रशासन की बिखरी हुई संरचना
वायु गुणवत्ता प्रबंधन अनेक संस्थाओं में बंटा हुआ है:
- पर्यावरण मंत्रालय
- केंद्रीय व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB/SPCBs)
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM)
- दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति
- MCD, NDMC, NHAI, PWD
- कृषि, परिवहन, उद्योग, ऊर्जा आदि विभाग
परिणाम
- किसी एक संस्था के पास पूर्ण अधिकार या जवाबदेही नहीं।
- राज्यों के बीच असंगति, अदालतों, केंद्र और स्थानीय सरकारों के आदेशों में टकराव।
- नीति प्रवर्तन कमजोर और असमान।
नीतियों को प्रभावित करने वाले दो प्रमुख जाल
1. बौद्धिक जाल (Intellectual Trap)
- नीति निर्माण अक्सर बड़े अनुसंधान संस्थानों, थिंक टैंक या विशेषज्ञ समूहों से प्रभावित होता है।
- ये समाधान तकनीकी रूप से सही होते हैं, परंतु भारतीय नगर निकायों की वास्तविक क्षमता, बजट, जन-व्यवहार, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था और राजनीतिक बाधाओं को नजरअंदाज कर देते हैं।
- परिणामतः नीतियाँ पायलट स्तर पर अटक जाती हैं या कार्यान्वयन में विफल रहती हैं।
2. पश्चिमी जाल (Western Trap)
- विकसित देशों के मॉडल बिना स्थानीय संदर्भ के भारत में लागू कर दिए जाते हैं।
- वहां की स्थितियाँ मजबूत प्रवर्तन, स्थिर वित्त, उच्च संस्थागत विश्वास भारत से भिन्न हैं।
- भारत के घने मोहल्ले, अनौपचारिक गतिविधियाँ, कम विश्वसनीय परिवहन और सीमित स्टाफिंग इन मॉडलों के सफल कार्यान्वयन को चुनौती देते हैं।
प्रमुख नीतिगत चिंताएं
- असमान नगरपालिका क्षमता
- कृषि में पराली पर आर्थिक निर्भरता
- अनियमित शहरी विकास
- डिज़ल आधारित मालवाहन
- अनौपचारिक श्रम बाजार
- सीमित संसाधन और उच्च जनसंख्या दबाव
- ये सभी कारक मिलकर नीतियों को असली ज़मीन पर लागू होने से रोकते हैं।
आगे की राह
- एक आधुनिक और स्पष्ट स्वच्छ वायु कानून
- किस संस्था के पास नेतृत्व होगा, कौन जवाबदेह होगा, और निर्णय कैसे होंगे, इन सबकी स्पष्ट परिभाषा आवश्यक है।
- यह कानून शक्तिशाली विनियामक बनाने के बजाय सहयोगी संस्था को मजबूत करे।
- बहु-वर्षीय, स्थिर वित्तीय सहायता
- वायु गुणवत्ता सुधार एक वर्ष की परियोजना नहीं, इसे निरंतर निवेश चाहिए।
- स्थिर फंडिंग से स्टाफ बढ़ेगा, निगरानी प्रणालियाँ सुधरेंगी और लंबे कार्यक्रम बनेंगे।
- कानून प्रवर्तन को पारदर्शी और दृश्यमान बनाना
- अनुपालन डाटा सार्वजनिक करने से नियमों की विश्वसनीयता बढ़ती है।
- दंडात्मक कार्रवाई की निरंतरता आवश्यक है।
- ‘प्रबंधकों’ की नई पेशेवर श्रेणी
- ऐसे विशेषज्ञ जो विज्ञान, प्रशासन, और राजनीति तीनों को समझें।
- इनकी भूमिका वैज्ञानिक ज्ञान को व्यवहारिक नीतियों में अनुवाद करना है।
- इससे ‘विशेषज्ञ–स्थानीय प्रशासन’ की खाई कम होगी।
- भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल नीति-डिज़ाइन
- समाधान इस आधार पर बनने चाहिए कि भारतीय एजेंसियाँ वास्तव में क्या लागू कर सकती हैं।
- समुदायों की स्वीकृति, स्थानीय बजट, सामाजिक व्यवहार और नगर क्षमता को ध्यान में रखना चाहिए।
निष्कर्ष
भारत के पास विचारों, तकनीकों और विशेषज्ञता की कमी नहीं है; कमी है संरेखण विशेषज्ञ सिफारिशों और वास्तविक क्षमता के बीच, वैश्विक मॉडल और भारतीय जमीन के बीच, राजनीतिक प्राथमिकताओं और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के बीच। स्वच्छ हवा केवल मौसम का मुद्दा नहीं, बल्कि जन-स्वास्थ्य, उत्पादकता, और शहरों की बुनियादी कार्यक्षमता से जुड़ा प्रश्न है। उच्च-तकनीकी उपकरण कुछ समय के लिए राहत दे सकते हैं, परंतु स्थायी समाधान केवल भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप शासन सुधार से ही संभव है।