(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध) |
संदर्भ
अक्तूबर 2025 में अफगानिस्तान (तालिबान) के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा ने भारत-अफगान संबंधों में नई ऊर्जा भर दी है। यह वर्ष 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद किसी तालिबान अधिकारी की सबसे उच्चस्तरीय भारत यात्रा है।
भारत-अफगानिस्तान वार्ता : मुख्य बिंदु
- भारत ने अफगानिस्तान में अपनी कूटनीतिक उपस्थिति को औपचारिक रूप से पुनः सक्रिय करने का फैसला लिया है।
- भारत ने काबुल में अपने दूतावास को पुनः स्थापित करने का निर्णय लिया है जो अब तक केवल एक ‘तकनीकी मिशन’ के रूप में कार्य कर रहा था।
- भारत अब भी तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं देता है किंतु कूटनीतिक व मानवीय स्तर पर जुड़ाव बनाए रख रहा है।
- दोनों देशों के बीच चर्चा में सुरक्षा, आतंकवाद, व्यापार, निवेश एवं क्षेत्रीय स्थिरता के मुद्दे शामिल रहे। तालिबान ने भारत को खनन और आधारभूत संरचना क्षेत्र में निवेश के लिए आमंत्रित किया।

भारत के लिए अफगानिस्तान का महत्त्व
- भारत के लिए अफगानिस्तान रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मध्य एशिया तक भारत की पहुँच का द्वार है।
- अफगानिस्तान में भारत ने अब तक $3 बिलियन से अधिक का निवेश किया है जिसमें सलमा बांध, संसद भवन, सड़कों और अस्पतालों जैसी प्रमुख परियोजनाएँ शामिल हैं।
- तालिबान की यात्रा से यह संकेत मिलता है कि भारत धीरे-धीरे अफगानिस्तान से जुड़ाव बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है जबकि औपचारिक मान्यता अभी दूर है।
भारत-अफगानिस्तान संबंधों का इतिहास
- ऐतिहासिक रूप से भारत और अफगानिस्तान के बीच सांस्कृतिक, व्यापारिक एवं राजनीतिक संबंध गहरे रहे हैं।
- 1990 के दशक में जब तालिबान पहली बार सत्ता में आया था, भारत ने उसे मान्यता नहीं दी और नॉर्दर्न अलायंस का समर्थन किया।
- वर्ष 2001 के बाद भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई।
- वर्ष 2021 में तालिबान के पुनः सत्ता में आने के बाद भारत ने अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया था किंतु वर्ष 2022 में ‘तकनीकी मिशन’ के माध्यम से मानवीय सहायता और राहत कार्य जारी रखा।
मान्यता के बिना जुड़ाव (Engagement Without Recognition)

- भारत का रुख ‘Engagement without Recognition’ यानी मान्यता दिए बिना संवाद का है।
- इसका अर्थ है कि भारत तालिबान शासन को कानूनी रूप से मान्यता नहीं देता है किंतु व्यावहारिक व मानवीय जरूरतों के आधार पर संवाद बनाए रखता है।
- यह रुख अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं करता है क्योंकि दूतावास का संचालन औपचारिक मान्यता से अलग होता है।
- भारत इसी तरह की नीति ताइवान व म्यांमार के मामलों में भी अपनाता है।
इस रणनीति के कारण
- तालिबान की कूटनीतिक लचीलापन: तालिबान भारत के साथ संवाद को लेकर सक्रिय है और उसने आश्वासन दिया है कि अफगानिस्तान भारत-विरोधी आतंकवादी समूहों का ठिकाना नहीं बनेगा।
- पाकिस्तान-अफगान संबंधों में गिरावट: दोनों देशों के बीच डूरंड रेखा विवाद और TTP (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) को लेकर मतभेदों ने भारत के लिए अवसर पैदा किया है।
- अक्तूबर 2025 में तालिबान-पाकिस्तान संघर्ष में तालिबान ने 58 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत और 30 के घायल होने का दावा किया।
- आर्थिक सहयोग की संभावनाएँ: तालिबान सरकार विदेशी निवेश चाहती है और भारत को खनन, ऊर्जा व कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स जैसे क्षेत्रों में निवेश के अवसर दिख रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य देशों का रुख
- संयुक्त राष्ट्र ने अब तक तालिबान को अफगानिस्तान की वैध सरकार के रूप में मान्यता नहीं दी है।
- तालिबान की UN सीट के लिए की गई चार बार की मांगें अस्वीकार की जा चुकी हैं।
- इसक कारण समावेशी सरकार का अभाव, आतंकी समूहों की मौजूदगी और महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है।
- हालाँकि, रूस, चीन, उज़्बेकिस्तान एवं UAE जैसे देशों ने तालिबान से औपचारिक या अनौपचारिक जुड़ाव बढ़ाया है।
- रूस ने वर्ष 2025 में तालिबान को औपचारिक मान्यता देने वाला पहला देश बनकर वैश्विक परिदृश्य में नई स्थिति पैदा की।
भू-राजनीति की भूमिका (Geopolitics at Play)
- भारत की नीति यथार्थवाद (Realpolitik) पर आधारित है, यानी व्यावहारिक हित सर्वोपरि हैं।
- तालिबान की पूर्ण भौगोलिक पकड़, पाकिस्तान के साथ तनाव और पश्चिमी देशों की निष्क्रियता ने भारत के लिए नई रणनीतिक गुंजाइश बनाई है।
- भारत TAPI गैस पाइपलाइन और चाबहार पोर्ट कनेक्टिविटी के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ आर्थिक जुड़ाव बढ़ाना चाहता है।
- तालिबान भी भारत को पश्चिमी सहायता के अभाव में एक स्थायी निवेश भागीदार के रूप में देख रहा है।
चुनौतियाँ
- तालिबान की मानवाधिकार और महिलाओं की शिक्षा पर कठोर नीतियाँ
- अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (ISKP) जैसी आतंकी गतिविधियों का खतरा
- तालिबान शासन की अंतर्राष्ट्रीय वैधता की कमी
- पाकिस्तान और चीन के साथ तालिबान के संवेदनशील संबंध
- यह भारत की रणनीति को प्रभावित कर सकता है।
आगे की राह
- भारत को ‘मान्यता के बिना जुड़ाव’ की नीति को सावधानी से आगे बढ़ाना चाहिए।
- मानवीय सहायता, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अवसंरचना परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।
- आतंकवाद रोधी संवाद और खुफिया सहयोग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- क्षेत्रीय स्थिरता के लिए रूस, ईरान एवं मध्य एशियाई देशों के साथ समन्वय बढ़ाना होगा।
- दीर्घकालिक दृष्टि से भारत को अफगान जनता के हित में स्थायी व विश्वसनीय साझेदार के रूप में अपनी छवि मजबूत करनी होगी।
निष्कर्ष
भारत की यह नीति इसका उदाहरण है कि कूटनीति केवल मान्यता का प्रश्न नहीं है बल्कि स्थिरता, सुरक्षा एवं क्षेत्रीय हितों का संतुलन भी है। अफगानिस्तान में भारत का ‘Engagement without Recognition’ मॉडल अब एशियाई भू-राजनीति का एक नया अध्याय बन रहा है।