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ग्रीन शिपिंग एवं संबंधित मुद्दे

(प्रारंभिक परीक्षा: पर्यावरण संरक्षण एवं अर्थव्यवस्था)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

मई 2025 में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के समुद्री पर्यावरण संरक्षण समिति (MEPC-83) के 83वें सत्र में शिपिंग उद्योग के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।

ग्रीन शिपिंग के बारे में

  • इसका उद्देश्य शिपिंग उद्योग के कार्बन फुटप्रिंट को कम करना है ताकि वह पेरिस समझौते एवं संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य के अनुरूप चले।
  • शिपिंग उद्योग प्रतिवर्ष लगभग एक अरब मीट्रिक टन ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जित करता है जो कुल वैश्विक उत्सर्जन का 2.8% है।
  • महत्व : उत्सर्जन में कमी, स्वच्छ ईंधन से पर्यावरण की सुरक्षा और दीर्घकालिक व्यापार विकास में लाभ

आवश्यकता

  • अनुमान हैं कि यदि सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो वर्ष 2050 तक शिपिंग से उत्सर्जन 50-250% तक बढ़ सकता है।
  • IMO ने वर्ष 2011 में उत्सर्जन घटाने के उपायों की शुरुआत की और अब वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 40% की कमी का लक्ष्य रखा है जबकि वर्ष 2040 तक 70% और अंततः वर्ष 2050 तक नेट-जीरो हासिल करने का लक्ष्य है।

MEPC-83 में चर्चा किए गए प्रस्ताव

इस सत्र में उत्सर्जन नियंत्रण के लिए पांच प्रमुख प्रस्ताव रखे गए थे:

  1. अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग चैंबर का प्रस्ताव: हर टन CO₂ उत्सर्जन पर एक निश्चित लेवी (कर) लगाने का प्रस्ताव।
  2. चीन का प्रस्ताव: एक बाज़ार-आधारित तरीका, जिसमें जहाज व्यापारी इकाइयाँ  खरीद सकते हैं और वैकल्पिक ईंधनों में निवेश कर सकते हैं।
  3. यूरोपीय संघ का प्रस्ताव: एक निश्चित ग्रीनहाउस गैस (GHG) लेवी, जो IMO द्वारा संचालित फंड के तहत संचालित होगा।
  4. भारत का प्रस्ताव: ‘ब्रिजिंग मेकेनिज्म’ (Bridging Mechanism) के तहत केवल उन जहाजों पर वित्तीय भार डाला जाए जो उत्सर्जन मानकों का पालन नहीं करते हैं जबकि शून्य या निकट शून्य (ZNZ) ईंधन का उपयोग करने वाले जहाजों को पुरस्कृत किया जाए।
  5. सिंगापुर का प्रस्ताव: भारत के प्रस्ताव का एक उन्नत संस्करण, जिसमें GHG ईंधन मानक (GFS) और एक श्रेणीबद्ध प्रणाली शामिल है जो अधिक उत्सर्जन इकाइयों के लिए पुरस्कार देती है और कम उत्सर्जन वाले जहाजों को अतिरिक्त इकाइयाँ (Units) खरीदने की आवश्यकता होती है।

निर्णय: सिंगापुर का हाइब्रिड मॉडल

  • सिंगापुर के प्रस्ताव को 63-16 के वोटों से मंजूरी दी गई, जो भारत के ब्रिजिंग मेकेनिज्म पर आधारित था।
  • यह मॉडल IMO के नेट जीरो फ्रेमवर्क के रूप में अपनाया गया, जिससे अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग पर वैश्विक स्तर पर एक अनिवार्य उत्सर्जन कर लगाया गया।
  • हालांकि, यह निर्णय अंतिम नहीं है। इसके लिए MARPOL सम्मेलन के अनुबंधक पक्षों से संशोधन की आवश्यकता होगी।

 प्रमुख चुनौतियाँ

  • अमेरिका IMO की चर्चाओं में शामिल नहीं हुआ। इसका मुख्य कारण उसका पेरिस समझौते से बाहर होना और पर्यावरणीय नीतियों को कमजोर करना था।
  • तेल निर्यातक देश (जैसे- सऊदी अरब) ने हरित ईंधन की दिशा में संक्रमण का विरोध किया क्योंकि इससे उनके जीवाश्म ईंधन बाजारों पर प्रभाव पड़ सकता था।
  • बड़ी शिपिंग शक्तियाँ (जैसे- चीन) ने न्यूनतम उत्सर्जन लेवी का समर्थन किया, ताकि प्रतिस्पर्धा बनाए रखी जा सके।
  • छोटे द्वीपीय राष्ट्रों व विकसित देशों ने उच्च कार्बन लेवी का समर्थन किया, ताकि आय को हरित विकास परियोजनाओं में लगाया जा सके।
  • परंपरागत शिपिंग शक्तियाँ (जैसे- ग्रीस) ने ग्रीन लेवी की आवश्यकता व व्यवहार्यता पर संदेह व्यक्त किया।

न्यायसंगत वितरण की समस्या

  • IMO की चर्चाओं में ‘कॉमन बट डिफरेंशिएटेड रिस्पॉन्सिबिलिटीज एंड रिस्पेक्टिव कैपेबिलिटीज’ (CBDR-RC) का सिद्धांत कमजोर पड़ा है। 
  • विकसित देशों ने विकासशील देशों पर अधिक जिम्मेदारी डालने की कोशिश की है। हालांकि, इन देशों की औद्योगिक व उत्सर्जन इतिहास में बड़े अंतर हैं।

भारत की भूमिका

  • भारत की स्थिति इन चर्चाओं में महत्वपूर्ण रही है। 
  • भारत के समुद्री क्षेत्र में 236 पोत (जहाज) हैं जिनमें से केवल 135 अंतर्राष्ट्रीय परिवहन में शामिल हैं। 
  • इसलिए, कार्बन लेवी केवल अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग पर लागू होगी और भारत के तटीय बेड़े पर इसका कोई प्रभाव नहीं होगा।
  • भारत के समुद्री लॉजिस्टिक्स की लागत पर वर्ष 2030 तक मामूली वृद्धि का अनुमान है:
  • आयात पर 4.98% से 7.29% और निर्यात पर 5.92% से 8.09% वृद्धि।
  • वर्ष 2050 तक यह वृद्धि लगभग 33-35% हो सकती है किंतु व्यापार मात्रा पर इसका प्रभव न्यूनतम रहने की संभावना है।

भारत के लिए दीर्घकालिक लाभ

  • भारत अब स्वच्छ ऊर्जा, विशेष रूप से हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में निर्यात के लिए वैश्विक हब के रूप में उभर सकता है। 
  • राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के तहत भारत हाइड्रोजन उत्पादन में निवेश कर रहा है।
  • हरित हाइड्रोजन उत्पादन IMO के उत्सर्जन मानकों के तहत भारत को वैश्विक स्तर पर स्वच्छ ईंधन निर्यात करने का अवसर प्रदान करेगा और भारत को अंतर्राष्ट्रीय प्रोत्साहन प्राप्त हो सकता है।

निष्कर्ष

MEPC-83 में लिया गया निर्णय वैश्विक शिपिंग उद्योग को डिकार्बनाइज करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। हालांकि, इसे लागू करने में कई चुनौतियाँ हैं किंतु अनिवार्य उत्सर्जन लेवी फ्रेमवर्क को अपनाना शिपिंग को पहली वैश्विक उद्योग बना सकता है जो बाध्यकारी जलवायु लक्ष्यों के तहत काम करेगा।

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