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संसद की सदस्यता से निरर्हता के आधार

प्रारंभिक परीक्षा - अनुच्छेद 102 (1), दसवीं अनुसूची, लिली थॉमस बनाम भारत संघ वाद
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय

सन्दर्भ

  • हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल को अयोग्य घोषित करने की अधिसूचना जारी की गयी।
  • मोहम्मद फैजल को अदालत द्वारा हत्या के प्रयास के मामले में दोषी ठहराया गया था।
  • अधिसूचना में कहा गया है कि फैजल सज़ा की तारीख से लोक सभा की सदस्यता से अयोग्य हैं, जो कि संविधान के अनुच्छेद 102 (1)(E) के प्रावधानों के संदर्भ में है तथा इसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 के साथ मिलाकर पढ़ा जाए। ।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लिली थॉमस बनाम भारत संघ के मामले में निर्णय दिया था कि कोई भी संसद सदस्य, विधान सभा का सदस्य या विधान परिषद का सदस्य जिसे किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है और न्यूनतम दो साल के कारावास की सजा दी जाती है, तो वह तत्काल प्रभाव से सदन की सदस्यता खो देता है।

संसद की सदस्यता से अयोग्यता के आधार

संविधान के अनुच्छेद 102 (1) के अनुसार कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए अयोग्य होगा -

A. यदि वह भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करता हो।

कोई व्यक्ति केवल इस कारण भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जायेगा कि वह संघ या ऐसे राज्य का मंत्री है।

B. यदि वह विकृत चित्त वाला व्यक्ति है और सक्षम न्यायलय की ऐसी घोषणा विद्यमान है।

C. यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है।

D.यदि उसने स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त कर ली है।

E. यदि वह संसद द्वारा बनायी गयी किसी विधि द्वारा या उसके अधीन अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।

  • यदि यह प्रश्न उठता है कि संसद के किसी सदन का कोई सदस्य अनुच्छेद 102 (1) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त है या नहीं तो इसका विनिश्चय राष्ट्रपति द्वारा किया जायेगा और उनका विनिश्चय अंतिम होगा।
  • उच्च न्यायालय में संसद के किसी सदन के लिए हुए किसी चुनाव को चुनौती दी जा सकती है।
  • यदि यह सिद्ध हो जाए कि चुनाव के दौरान कोई भ्रष्ट प्रक्रिया अपनायी गयी है, तो उच्च न्यायालय को यह शक्ति प्राप्त है कि वह सफल उम्मीदवार का चुनाव शून्य घोषित कर दे।
  • यदि कोई सदस्य दसवीं अनुसूची के तहत निरर्हता से ग्रस्त हो जाता है तो सदन के अध्यक्ष द्वारा उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है, अध्यक्ष का यह निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन होता है।
  • दसवीं अनुसूची को वर्ष 1985 में 52वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया, इसका उद्देश्य दलबदल की घटनाओं पर रोक लगाना था।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8

  • जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 दोषी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकती है।
    • परन्तु ऐसे व्यक्ति जिन पर केवल मुक़दमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिये स्वतंत्र हैं, चाहे उन पर लगा आरोप कितना भी गंभीर हो।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(1) और (2) के प्रावधानों के अनुसार यदि कोई सदस्य (सांसद अथवा विधायक) अस्पृश्यता, हत्या, बलात्कार, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा करना, भारतीय संविधान का अपमान करना, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात या निर्यात करना, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना जैसे अपराधों में लिप्त होता है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा तथा 6 वर्ष की अवधि के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(3) के प्रावधानों के अनुसार यदि कोई सदस्य उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिये दोषी साबित किया जाता है तथा उसे न्यूनतम दो वर्ष से अधिक के कारावास की सज़ा सुनाई जाती है तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से आयोग्य माना जाएगा तथा ऐसे व्यक्ति को सज़ा समाप्त होने की तिथि के बाद 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य माना जाएगा।
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