(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ) |
संदर्भ
हाल ही में, इथियोपिया के हायली गुब्बी (Hayli Gubbi) ज्वालामुखी उद्गार से निकले राख का विशाल बादल हवा के तेज़ प्रवाह के कारण भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों तक पहुँच गया। इस राख के बादल के कारण दिल्ली-NCR, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र एवं पंजाब में कुछ घंटों तक उड़ानों में व्यवधान हुआ।
हायली गुब्बी ज्वालामुखी के बारे में
- परिचय: यह इथियोपिया में स्थित एक सुप्त (Dormant) ज्वालामुखी है।
- उद्गार: इसमें लगभग 10,000 वर्षों बाद पहली बार विस्फोट हुआ, जिससे भारी मात्रा में ज्वालामुखीय राख वातावरण में फैल गई और लाल सागर को पार करती हुई भारत तक पहुँच गई।
- अवस्थिति: यह ज्वालामुखी अफ्रीका के हॉर्न (Horn of Africa) क्षेत्र में विशेष रूप से इथियोपिया के अफार क्षेत्र में स्थित है। यह स्थान पूर्वी अफ्रीका रिफ्ट प्रणाली का हिस्सा है।
- भूकंपीय क्षेत्र: इथियोपिया का अफार क्षेत्र पूर्वी अफ्रीकन भ्रंश घाटी का हिस्सा है जो एक अत्यंत सक्रिय भूकंपीय व ज्वालामुखीय क्षेत्र है। यहाँ टेक्टोनिक प्लेट्स अलग हो रही हैं जिसके कारण प्राय: भूकंप व ज्वालामुखी विस्फोट होते रहते हैं।
ज्वालामुखीय राख की संरचना
- ज्वालामुखीय राख मुख्यत: सिलिका, ग्लास के महीन कण, खनिज पदार्थ (फेल्सपार, क्वार्टज़), सल्फर डाइऑक्साइड, अन्य गैसें से बनी होती है।
- यह राख सूक्ष्म होती है और हवाई जहाज के इंजनों को नुकसान पहुँचा सकती है, इसलिए हवाई उड़ानों के लिए यह गंभीर खतरा मानी जाती है।
क्षति एवं प्रभाव
- इथियोपिया के पास के क्षेत्रों में राख गिरने से स्थानीय आबादी को अस्थायी स्वास्थ्य समस्याएँ हुईं।
- हवाई मार्गों में बदलाव और स्थितियाँ खराब होने से कई अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें रद्द या डायवर्ट करनी पड़ीं।
- लाल सागर के आसपास विमानन गतिविधियों पर प्रभाव पड़ा है।

भारत पर प्रभाव
- राख का बादल 10 किमी. से अधिक ऊँचाई पर था, इसलिए सतह स्तर की वायु गुणवत्ता पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ा। हालाँकि, राख का यह बादल मध्य एशिया से होते हुए भारतीय क्षेत्र में प्रवेश किया।
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार भारत में इसका प्रभाव बहुत सीमित व अल्पकालिक रहा।
- इससे कई घंटों के लिए विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइंस (IndiGo, Akasa Air, KLM) की उड़ानें रद्द करनी पड़ीं या उनमें देरी हुई। दृश्यता कम होने से विमानन संचालन में अतिरिक्त सावधानी बढ़ाई गई।
सुमेरु ज्वालामुखी उद्गार
- 20 नवंबर, 2025 को इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर स्थित माउंट सुमेरू ज्वालामुखी में उदगार हुआ। यह सक्रिय ज्वालामुखी पूर्वी जावा में स्थित है।
- इसे ‘द ग्रेट माउंटेन’ या ‘महामेरु’ के रूप में भी जाना जाता है। यह इंडोनेशिया के 120 से अधिक सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है।
- यह सूंडा प्लेट (यूरेशियन प्लेट का हिस्सा) के नीचे स्थित इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के उप-भाग के रूप में निर्मित द्वीपीय चाप का हिस्सा है। यहाँ निर्मित खाई को सुंडा खाई के नाम से जाना है।
- ‘पाइरोक्लास्टिक सर्ज या प्रवाह’ ज्वालामुखी उद्गार के दौरान बाहर निकलने वाली गैस एवं चट्टान के टुकड़ों का मिश्रण (गर्म लावा ब्लॉक, प्यूमिस, राख व ज्वालामुखी गैस का मिश्रण) है। इसे ‘डाइल्यूट पाइरोक्लास्टिक डेंसिटी करंट’ के रूप में भी जाना जाता है।
- पायरोक्लास्टिक फ्लो ज्वालामुखी से निकलने वाली गर्म गैस, राख व चट्टानों का तेज बहाव होता है। यह बहुत तेज (कभी-कभी 700 किमी प्रति घंटा) प्रवाहित होता है।
- इंडोनेशिया के अन्य ज्वालामुखी माउंट मेरापी, माउंट सिनाबुंग, माउंट रुआंग, माउंट क्राकाटोआ, माउंट डुकोनो एवं माउंट लेवोटोबी लाकी-लाकी हैं।

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ज्वालामुखी उद्गार के कारण
- पृथ्वी के कोर (Core) की ओर गहराई में जाने के साथ-साथ तापमान में वृद्धि होती है। भूतापीय प्रवणता पृथ्वी के गर्म आंतरिक भाग से इसकी सतह तक प्रवाहित होने वाली ऊष्मा को इंगित करता है जिसमें पृथ्वी के तापमान में गहराई के साथ वृद्धि होती है।
- एक निश्चित गहराई पर यह ऊष्मा इतनी अधिक हो जाती है कि इससे चट्टाने पिघल जाती हैं। इन पिघली चट्टानों को ‘मैग्मा’ कहते हैं।
- मैग्मा ठोस चट्टान की तुलना में हल्का होता है इसलिये यह ऊपर उठकर मैग्मा कक्षों (Chambers) में एकत्रित हो जाता है। ये कक्ष पृथ्वी की सतह से छह से दस किमी. की उथली गहराई में पाए जाते हैं।
- कक्षों में एकत्र मैग्मा पृथ्वी की सतह (Crust) की ओर छिद्र एवं दरारों के माध्यम से बाहर आता है जिसे ज्वालामुखी उद्गार कहते हैं। पृथ्वी की सतह पर आने वाले मैग्मा को ‘लावा’ कहा जाता है।
विस्फोट की तीव्रता
- ज्वालामुखी विस्फोट मैग्मा की संरचना के आधार पर तीव्रता एवं विस्फोटकता में भिन्न होते हैं। प्रवाही मैग्मा (Runny Magma) कम विस्फोटक एवं प्रायः कम खतरनाक होता है।
- प्रवाही मैग्मा में गैसें बाहर निकलने में सक्षम होती हैं और ज्वालामुखी के मुहाने से लावा का एक स्थिर एवं अपेक्षाकृत मंद प्रवाह (Gentle Flow) होता है।
- चूँकि लावा मंद गति से प्रवाहित होता है, इसलिये आसपास के क्षेत्रों में रक्षात्मक उपाय के लिये पर्याप्त समय होता है।
- यदि मैग्मा गाढ़ा एवं चिपचिपा होता है तो इससे गैसों का लगातार बाहर निकलना कठिन हो जाता है। ये गैसें मुहाने तक पहुँचने के लिये दबाव बनाती हैं और तीव्रता से एक साथ बाहर निकलती हैं। इससे लावा हवा में विस्फोट करता है और टुकड़ों में टूट जाता है जिसे ‘टेफ़्रा’ (Tephra) कहा जाता है। ये छोटे कणों से लेकर विशाल शिलाखंडों के आकार के हो सकते हैं जो अत्यंत खतरनाक होते हैं।
- ज्वालामुखी विस्फोट सूचकांक (VEI) ज्वालामुखी की विस्फोटकता को मापने के लिये प्रयोग किया जाने वाला पैमाना है। इसमें 1 से 8 तक की संख्या होती है तथा उच्च वी.ई.आई. अधिक विस्फोटकता का संकेत देती है।
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इसे भी जानिए!
- अंडमान सागर में स्थित ‘बैरन द्वीप’ भारत का एक सक्रिय ज्वालामुखी है जबकि नारकोंडम द्वीप (अंडमान सागर) प्रसुप्त ज्वालामुखी है। धिनोधर पहाड़ी (गुजरात), ढोसी/दोषी पहाड़ी (हरियाणा), तोशाम पहाड़ी (हरियाणा) आदि मृत ज्वालामुखी हैं।
- इसके अलावा, स्ट्रॉम्बोली एवं माउंट विसुवियस (इटली), माउंट फ्यूजी (जापान), आइजफजालजोकुल/E15 (आइसलैंड), माउंट सेंट हेलेंस (अमेरिका), माउंट रैंगल (अलास्का), मौना लोआ व किलाउआ ज्वालामुखी (हवाई द्वीप), माउंट एटना (इटली में सिसिली द्वीप का पूर्वी तट), मोचो चोशुएन्को (चिली), क्रशेनिनिकोव ज्वालामुखी (रूस का कमचटका प्रायद्वीप), ओल डोइन्यो लेंगई (तंजानिया) आदि अन्य प्रमुख ज्वालामुखियाँ हैं।
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उद्गार के आधार पर ज्वालामुखी के प्रकार
- सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano): वह ज्वालामुखी जिसमें होलोसीन काल (विगत 11,650 वर्षों में) के भीतर विस्फोट हुआ हो, उसे ‘सक्रिय’ माना जाता है।
- प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano): ये ऐसी सक्रिय ज्वालामुखी है जो वर्तमान में उद्गार की प्रक्रिया में नहीं हैं किंतु भविष्य में उद्गार की क्षमता रखती है। मौना लोआ पिछले 38 वर्षों से एक प्रसुप्त ज्वालामुखी था।
- मृत ज्वालामुखी (Extinct Volcano): इनमें भविष्य में किसी प्रकार की ज्वालामुखीय गतिविधि की कोई संभावना नहीं होती है। ब्रिटेन का सबसे ऊँचा पर्वत ‘बेन नेविस’ (Ben Nevis) एक मृत ज्वालामुखी है।
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क्या आप जानते हैं?
तंजानिया स्थित ओल डोइन्यो लेंगई ज्वालामुखी नैट्रोकार्बोनेटाइट्स लावा वाला दुनिया का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है। नैट्रोकार्बोनेटाइट्स लावा अत्यंत चिपचिपा प्रकार का मैग्मा होता है जो सोडियम, पोटेशियम एवं कैल्शियम कार्बोनेट से समृद्ध होता है किंतु इसमें सिलिकॉन की मात्रा कम पाई जाती है। कार्बोनेटाइट मैग्मा सामान्य पानी की तरह प्रवाहित होता है। इस ज्वालामुखी के एक से अधिक सक्रिय केंद्र हैं। ओल डोइन्यो लेंगाई के उपजाऊ निचले क्षेत्रों पर अंगूर एवं खट्टे फलों के बागान स्थित हैं।
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