हो जनजाति
हो समाज युवा महासभा (AHSYM) ने आदिवासी समुदाय से 1 व 2 जनवरी को पिकनिक जैसे आयोजनों से दूर रहने तथा इन तिथियों को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने की अपील की है।
हो जनजाति के बारे में
- ‘हो’ (या कोल्हा) भारत का एक प्रमुख ऑस्ट्रोएशियाई मुंडा जातीय समूह है। अपनी भाषा में वे स्वयं को ‘हो’, ‘होडोको’ या ‘होरो’ कहते हैं जिसका शाब्दिक अर्थ ‘मानव’ होता है।
- ये मुख्यत: झारखंड एवं ओडिशा के कोल्हान क्षेत्र में बसे हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार ये झारखंड की कुल अनुसूचित जनजाति आबादी का लगभग 10.7% और ओडिशा का 7.3% हिस्सा हैं।
- इसके अलावा ये पश्चिम बंगाल, बिहार एवं पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश व नेपाल में भी निवास करते हैं। ये ‘हो’ भाषा बोलते हैं जो मुंडारी भाषा से काफी समानता रखती है।
- इस समुदाय का मुख्य आधार कृषि है जहाँ वे भूस्वामी या खेतिहर मजदूर के रूप में कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त, एक बड़ी आबादी खनन कार्यों से भी जुड़ी हुई है।
सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताएँ
- जीवनशैली: इस समुदाय के स्त्री एवं पुरुष अत्यंत सरल पहनावा धारण करते हैं। महिलाएँ पारंपरिक आभूषणों की शौकीन होती हैं और समाज में उन्हें उच्च दर्जा प्राप्त है।
- नृत्य एवं संगीत: हो संस्कृति में नृत्य का विशेष स्थान है। प्रत्येक गाँव में नृत्य के लिए एक समर्पित स्थान होता है जिसे ‘अखरा’ कहा जाता है।
- वाद्य यंत्र: संगीत के लिए ये दामा (ढोल), ढोलक, दुमेंग(मंदर) एवं ऋतु (बांसुरी) जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग करते हैं।
- धर्म: ‘हो’ जनजाति के अधिकांश लोग सरनावाद (प्रकृति पूजा) को मानते हैं जो उनके अनुसार प्रचलित हिंदू धर्म से भिन्न और प्रकृति पर आधारित है।
- पुजारी: उनके धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न कराने वाले ग्राम पुजारी को ‘देउरी’ कहा जाता है।