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भारतीय शास्त्रीय नृत्य (Indian Classical Dances)

भारतीय कला परंपरा में नृत्य केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभूति, सांस्कृतिक निरंतरता और सौंदर्यशास्त्र का जीवंत रूप है। भारत में शास्त्रीय नृत्य की अवधारणा “नाट्यशास्त्र” पर आधारित है, जिसे महर्षि भरतमुनि ने लगभग 2वीं शताब्दी ई.पू. में लिखा था। नाट्यशास्त्र नृत्य, संगीत, अभिनय और अभिव्यक्ति का पहला वैज्ञानिक ग्रंथ माना जाता है।

भारत सरकार द्वारा(भारत की राष्ट्रीय प्रदर्शन कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी द्वारा) मान्यता प्राप्त 8 शास्त्रीय नृत्य हैं—

  1. भरतनाट्यम
  2. कुचिपुड़ी
  3. कथक
  4. कथकली
  5. मोहिनीयाट्टम
  6. ओडिशी
  7. मणिपुरी
  8. सत्त्रिया

शास्त्रीय नृत्य की मूल विशेषताएँ

  1. शास्त्रीय आधार (Classical Scripture Base):- प्रत्येक शास्त्रीय नृत्य का आधार नाट्यशास्त्र, अभिनय दर्पण, संगम साहित्य या स्थानीय ग्रंथों में मिलता है।
  2. नृत्त, नृत्य और नाट्य सम्मिलन
    • नृत्त शुद्ध तकनीकी नृत्य
    • नृत्यभाव एवं अभिव्यक्ति-प्रधान प्रस्तुति
    • नाट्यअभिनय के माध्यम से कथा कथन
  3. राग-रागिनी एवं ताल प्रणाली:-प्रत्येक नृत्य में क्षेत्रीय संगीत परंपरा का प्रयोग (कर्नाटक संगीत / हिंदुस्तानी संगीत)।
  4. हस्त-मुद्राएँ:-हस्त-मुद्राएँ नाट्यशास्त्र एवं अभिनय दर्पण पर आधारित।
  5. गुरु-शिष्य परंपरा:-प्रशिक्षण का मूलाधार।

1.भरतनाट्यम (तमिलनाडु)

Bharatanatyam

उत्पत्ति

तमिलनाडु के शिव मंदिरों से विकसित, देवदासी परंपरा से जुड़ा।
भरतनाट्यम शब्द—
भा (भाव), (राग), (ताल) + नाट्यम

विशेषताएँ

  • अत्यंत ज्यामितीय, कठोर एवं संतुलित मुद्रा
  • अलारिप्पु, जतीस्वरम, वर्णम, पदम, तिल्लाना—मुख्य चरण
  • मुख्यतः कर्नाटक संगीत
  • कॉस्ट्यूम में प्लीटेड (Folded) साड़ी, आभूषण, जटिल पायल

मुख्य कलाकार

रुक्मिणी देवी अरुंडेल, बालासरस्वती।

2. कुचिपुड़ी (आंध्र प्रदेश)

Kuchipudi

उत्पत्ति

कृष्णा जिले के ‘कुचेलापुरम/कुचिपुड़ी’ गाँव से; भागवत मेला परंपरा से विकसित।

विशेषताएँ

  • नृत्य–नाटिका शैली
  • संवाद, गायन और नृत्य का मिश्रण
  • तांबे की प्लेट पर नृत्य (टारंगम) प्रसिद्ध
  • कर्नाटक संगीत आधारित

मुख्य कलाकार

वेम्पति चिन्ना सत्यम्।

3. कथक (उत्तर भारत)

kathak

उत्पत्ति

उत्तर भारत के मंदिरों के कथावाचकों (कथक) से विकसित; बाद में मुगल दरबार में विकसित।

विशेषताएँ

  • अधिकतर घूमर (Chakkars)
  • जटिल तिहाई, परन, अमद, कदम
  • अभिव्यक्ति में रामायण/कृष्ण कथाएँ
  • हिंदुस्तानी संगीत
  • दो घराने – जयपुर, लखनऊ, बनारस, रायगढ़ (कुल 4)

मुख्य कलाकार

बिरजू महाराज, सितारा देवी।

4. कथकली (केरल)

Kathakali

उत्पत्ति

केरल की ‘कोडियाट्टम’ व ‘कृष्णनाट्टम’ से विकसित; 17वीं शताब्दी।

विशेषताएँ

  • भारी मेकअप और ग्रीन फेस (पच्चा)
  • विस्तृत वेशभूषा
  • पूरी तरह नाट्य-प्रधान
  • संगीत—सोफ्ट केरल परंपरा
  • कहानियाँ—महाभारत, रामायण

मुख्य कलाकार

कलामंडलम कृष्णन नायर।

5. मोहिनीयाट्टम (केरल)

Mohiniyattam

उत्पत्ति

‘मोहिनी’—विष्णु का रूप; स्त्री नृत्य शैली।

विशेषताएँ

  • कोमल, मृदु, गोलाकार गतियाँ
  • सफेद कासवु साड़ी
  • लास्य प्रधान
  • कर्नाटक संगीत

मुख्य कलाकार

कलामंडलम सुगंधा।

6. ओडिशी (ओडिसा)

Odishi

उत्पत्ति

जगन्नाथ मंदिर (पुरी) की महारी और गोटीपुआ परंपरा।

विशेषताएँ

  • त्रिभंगी मुद्रा—
    • सिर
    • वक्ष
    • कटी (कमर)
  • मूर्ति जैसी स्थिरता—‘चौक’ व ‘त्रिभंग’
  • राग—उड़िया संगीत परंपरा
  • जाह्नवी कुमारी देवी, केलुचरण महापात्र प्रसिद्ध गुरु

7. मणिपुरी (मणिपुर)

Manipuri

उत्पत्ति

वैष्णव भक्ति आंदोलन से प्रभावित; रासलीला प्रमुख आधार।

विशेषताएँ

  • अत्यंत कोमल, गोलाकार गतियाँ
  • स्त्रियाँ घंटाधारी स्कर्ट पहनती हैं
  • ढोलक, मंजीरा, पखावज
  • कृष्ण–राधा विषय प्रमुख

मुख्य कलाकार

मातृभूमि देवी, गुरु बिपिन सिंह।

8. सत्त्रिया (असम)

Sattriya

उत्पत्ति

असम के महान संत शंकरदेव द्वारा 15वीं शताब्दी में विकसित; ‘सत्रों’ (वैष्णव मठ) से नाम पड़ा।

विशेषताएँ

  • नृत्य + नाट्य + संगीत
  • राधा–कृष्ण तथा रामायण आधारित
  • ढोल, ताल, बांसुरी
  • 2000 में शास्त्रीय नृत्य का दर्जा

इसके अतिरिक्त भारतीय संस्कृति मंत्रालय ने अपनी सूची में छऊ को अर्ध-शास्त्रीय भारतीय नृत्य के रूप में  शामिल किया है

Chhau-Dance

छऊ नृत्य (Chhau Dance)

छऊ, जिसे छौ भी कहा जाता है, एक अर्ध-शास्त्रीय भारतीय नृत्य है जिसमें मार्शल और लोक परंपराओं का मिश्रण पाया जाता है।

प्रमुख विशेषताएँ:

  1. शैलियाँ और क्षेत्र:
    • पुरुलिया छऊपश्चिम बंगाल
    • सेराइकेला छऊ झारखंड
    • मयूरभंज छऊ ओडिशा
    • छऊ तीन मुख्य शैलियों में प्रचलित है, जिनका नाम उनके क्षेत्र के अनुसार रखा गया है:
  2. विषय और प्रदर्शन:
    • नृत्य के विषय लोक उत्सव, मार्शल आर्ट, कलाबाज़ी और एथलेटिक्स से लेकर धार्मिक कथाओं तक फैले हैं।
    • शैव, शक्ति और वैष्णव धर्म की कथाएँ, हिंदू महाकाव्य रामायण और महाभारत, पुराणों और अन्य भारतीय साहित्य की कहानियों को भी प्रदर्शित किया जाता है।
  3. वेशभूषा और मुखौटे:
    • वेशभूषा क्षेत्रीय शैली अनुसार अलग-अलग होती है।
    • पुरुलिया और सेराइकेला में पात्रों की पहचान के लिए मुखौटे का उपयोग किया जाता है।
  4. प्रदर्शन और सामाजिक पहलू:
    • यह पारंपरिक रूप से केवल पुरुषों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
    • नृत्य का आयोजन क्षेत्रीय स्तर पर विशेष रूप से वसंत के दौरान होता है।
    • छऊ नृत्य शास्त्रीय हिंदू नृत्यों और प्राचीन जनजातीय परंपराओं का समन्वय है।
    • यह सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से जुड़े लोगों को उत्सव और धार्मिक भावना के माध्यम से एक साथ लाता है।
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