भारतीय कठपुतली कला देश की प्राचीन परंपरा का अभिन्न अंग है। यह केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश, लोककथाएँ, धार्मिक प्रसंग और सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने का माध्यम है। भारत में कठपुतली की विविध शैलियाँ चार मुख्य श्रेणियों में विभाजित की जाती हैं—धागा (String), छाया (Shadow), दस्ताना (Glove), और छड़ (Rod) पुतली।

धागा पुतली (String Puppets / Marionettes)
धागा पुतलियों में संयुक्त अंग (Jointed Limbs) होते हैं जिन्हें धागों से नियंत्रित किया जाता है। इनकी लचक, अभिव्यक्ति और गति उन्हें सबसे मुखर और जीवंत कठपुतली रूप बनाती है।

क्षेत्र
- राजस्थान
- ओडिशा
- कर्नाटक
- तमिलनाडु
उदाहरण
- कठपुतली – राजस्थान
- भारत की सबसे प्रसिद्ध शैली
- रंगीन पोशाक, लकड़ी का सिर, लंबे धागे
- राजपूत वीरता, लोककथाएँ मुख्य विषय
- गोम्बेयेट्टा – कर्नाटक
- यक्षगान शैली का प्रभाव
- लकड़ी और धागों का खूबसूरत संयोजन
- बोम्मलट्टम – तमिलनाडु
- छड़ + धागा पुतली का अनोखा मिश्रण
- बड़े आकार की कठपुतलियाँ
- तमिल लोककथाएँ, पुराण कथाएँ
- कुंढेई (Kundhei) – ओडिशा
- लकड़ी की हल्की पुतली, धागों से नियंत्रण
- जात्रा संगीत का प्रभाव
छाया पुतली (Shadow Puppets)
छाया पुतलियाँ चपटी, आमतौर पर चमड़े से निर्मित होती हैं। उन्हें पारभासी (Translucent) बनाने के लिए विशेष रूप से संसाधित किया जाता है। प्रकाश के स्रोत और पर्दे के बीच रखकर इनका प्रदर्शन किया जाता है।

क्षेत्र
- ओडिशा
- केरल
- आंध्र प्रदेश
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- तमिलनाडु
उदाहरण
- रावणछाया – ओडिशा
- बिना जोड़ वाली सपाट काली छाया
- रामायण प्रसंग
- तोगालुगोम्बेयट्टा – कर्नाटक
- चमड़े से बनी रंगीन पुतलियाँ
- पौराणिक कथाएँ
- तोलू बोम्मालट्टा – आंध्र प्रदेश
- चमड़े की गुड़ियों का नृत्य
- गोदावरी क्षेत्र में प्रसिद्ध
तोलू बोम्मालट्टा - आंध्र प्रदेश के गोदावरी क्षेत्र

इसे “चमड़े की गुड़ियों का नृत्य” कहा जाता है।
- पुतलियाँ बकरी की खाल से बनती हैं।
- प्रदर्शन रंगीन पारदर्शी स्क्रीन पर किया जाता है।
- प्रमुख पात्र – जानवर, पक्षी, देवता, राक्षस
- मुख्य विषय – रामायण और महाभारत
3. दस्ताना पुतली (Glove Puppets)
दस्ताना पुतली को भुजा/कर/हाथ पुतली भी कहा जाता है। कलाकार इसे अपनी उंगलियों और हथेली में पहनकर संचालित करता है।

क्षेत्र और रूप
- उत्तर प्रदेश – सामाजिक विषयों पर आधारित नाटक
- ओडिशा – राधा–कृष्ण कथाएँ प्रमुख
- केरल – लोककथाएँ और मंदिर परंपरा
छड़ पुतली (Rod Puppets)

छड़ पुतली आकार में बड़ी होती है और नीचे लगे छड़ों के सहारे नियंत्रित होती है। इसे दस्ताना पुतली का उन्नत रूप माना जाता है।
क्षेत्र
उदाहरण
- पुतुल नाच – पश्चिम बंगाल
- 3–4 फीट ऊँची पुतलियाँ
- बंगाली लोककथाएँ
- यमपुरी – बिहार
- पौराणिक कथाओं व लोकनाट्य परंपरा का मिश्रण
कठपुतली कला का सांस्कृतिक महत्व
- लोककथाओं और महाकाव्यों का संरक्षण
- सामाजिक जागरूकता का प्रभावी माध्यम
- स्थानीय संगीत, भाषा और पोशाकों का जीवंत प्रदर्शन
- बच्चे, ग्रामीण समाज और उत्सवों में लोकप्रिय
सरकारी प्रयास
- संगीत नाटक अकादमी – प्रशिक्षण व फंड
- राष्ट्रीय कठपुतली संस्थान (दिल्ली)
- कला–एकीकृत शिक्षा (NEP 2020)
- पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय द्वारा फेस्टिवल प्रोत्साहन
चुनौतियाँ
- आधुनिक मनोरंजन के कारण लोकप्रियता में कमी
- कलाकारों की सीमित आय
- कच्चे माल की लागत
- युवा कलाकारों की कम भागीदारी
निष्कर्ष
भारतीय कठपुतली कला भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण अंग है। तकनीकी युग में इसके संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए प्रशिक्षण, डिजिटल मंच और सरकारी सहयोग अत्यंत आवश्यक हैं।