भारतीय नौसेना का अनूठा एवं ऐतिहासिक रूप से प्रेरित भारतीय नौसेना नौकायन पोत ‘कौंडिन्य’ (INSV Kaundinya) अपनी पहली अंतर्राष्ट्रीय यात्रा पर रवाना होने जा रहा है। यह पोत भारत की प्राचीन समुद्री परंपराओं और नौवहन कौशल के पुनरुद्धार का एक सजीव प्रतीक माना जा रहा है।
INSV कौंडिन्य की विशेषताएँ
- INSV कौंडिन्य स्टिचिंग (Stitching) तकनीक से निर्मित एक पोत है जिसकी रूपरेखा अजंता गुफाओं की चित्रकला में दर्शाए गए पाँचवीं सदी के प्राचीन भारतीय जहाज से प्रेरित है।
- इस पोत का निर्माण धातु की कीलों के बिना किया गया है जिसमें पारंपरिक समुद्री निर्माण पद्धतियों का प्रयोग हुआ है।
- केरल के कुशल कारीगरों द्वारा तैयार इस पोत में नारियल के रेशे व रस्सियाँ, लकड़ी के जोड़, प्राकृतिक रेज़िन तथा सूती कपड़े जैसी पारंपरिक सामग्रियों का उपयोग किया गया है जो प्राचीन भारतीय जहाज निर्माण कला को जीवंत बनाते हैं।
- यह परियोजना भारतीय नौसेना, संस्कृति मंत्रालय एवं होडी इनोवेशन्स के सहयोग से साकार हुई है।
सांस्कृतिक एवं प्रतीकात्मक तत्व
INSV कौंडिन्य में कई सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक प्रतीक समाहित किए गए हैं:
- गंडाभेरुंडा (दो सिर वाला पौराणिक पक्षी), जो कदंब वंश एवं सूर्य का प्रतीक माना जाता है।
- धनुष (बो) पर सिंह याली का अंकन, जो शक्ति एवं संरक्षण का द्योतक है।
- डेक पर हड़प्पा शैली का पत्थर का लंगर, जो भारत की प्राचीन समुद्री सभ्यता की याद दिलाता है।
महत्व
- INSV कौंडिन्य भारत की समृद्ध एवं प्राचीन समुद्री विरासत को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करता है।
- यह पोत इस तथ्य को रेखांकित करता है कि भारत प्राचीन काल से ही समुद्री व्यापार, सांस्कृतिक संपर्क और अंतर्राष्ट्रीय संपर्कों में अग्रणी रहा है। साथ ही, यह आधुनिक समय में समुद्री कूटनीति (Maritime Diplomacy) के माध्यम से भारत की सॉफ्ट पावर को भी सशक्त करता है।
कौन थे कौंडिन्य
कौंडिन्य एक प्रसिद्ध भारतीय नाविक माने जाते हैं जिन्होंने लगभग दो हजार वर्ष पूर्व भारत से दक्षिण-पूर्व एशिया तक समुद्री यात्रा की थी। ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार, उन्होंने रानी सोमा से विवाह किया और फुनन साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच प्राचीन सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंधों का प्रतीक है।