(मुख्या परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा व बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय) |
संदर्भ
मानव तस्करी (Human Trafficking) भारत की एक गंभीर सामाजिक समस्या बनी हुई है। यह केवल एक आपराधिक कृत्य ही नहीं है, बल्कि मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन भी है। यह अपराध विशेषकर महिलाओं, बच्चों एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को प्रभावित करता है।
भारत में मानव तस्करी की वर्तमान स्थिति
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष तस्करी के हज़ारों मामले दर्ज होते हैं किंतु वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक मानी जाती है क्योंकि कई मामले रिपोर्ट ही नहीं होते हैं।
प्रमुख राज्य और पीड़ितों की संख्या
- मानव तस्करी से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु शामिल हैं।
- वर्ष 2022 में ओडिशा में मानव तस्करी के सर्वाधिक पीड़ितों की संख्या (1,120) दर्ज की गई जिनमें अधिकांश महिलाएँ व बच्चे शामिल थे।
- महाराष्ट्र 805 पीड़ितों के साथ दूसरे स्थान पर था।
- इसी वर्ष तेलंगाना में मानव तस्करी के 391 मामले दर्ज किए गए, जो इस राज्य में मानव तस्करी के खिलाफ सख्त कार्रवाई को दर्शाता है।
कानूनी प्रक्रिया और सजा दर
मानव तस्करी के मामलों में सजा दर चिंताजनक रूप से कम है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2020 में सजा दर केवल 10.6% थी जबकि वर्ष 2016 में 27.8% थी।
मानव तस्करी के प्रमुख उद्देश्य
- यौन शोषण
- बाल श्रम
- जबरन विवाह
- घरेलू नौकर के रूप में शोषण
- अवैध अंग व्यापार
- भिक्षावृत्ति
मानव तस्करी के प्रमुख कारण
- आर्थिक असमानता एवं गरीबी
- बेरोजगारी एवं आजीविका के अवसरों की कमी
- शिक्षा एवं जागरूकता की कमी
- लोगों को अधिकारों व खतरों के प्रति जानकारी न होना
- लिंग आधारित भेदभाव
- अपराध सिंडिकेट एवं कमजोर कानून प्रवर्तन
- प्राकृतिक आपदाएँ व आंतरिक विस्थापन
समाधान
कानूनी एवं संस्थागत सुधार
- मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण एवं पुनर्वास) विधेयक को शीघ्र पारित कर प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।
- सभी राज्यों में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTUs) को सशक्त करना।
जागरूकता और शिक्षा
- गांवों व शहरी बस्तियों में जागरूकता अभियान चलाना।
- स्कूली पाठ्यक्रमों में जीवन कौशल व आत्मरक्षा प्रशिक्षण शामिल करना।
पीड़ितों का पुनर्वास
आश्रय गृह, मनोवैज्ञानिक सहायता एवं आजीविका कार्यक्रमों के माध्यम से पीड़ितों को पुनर्स्थापित करना।
सामुदायिक भागीदारी
पंचायत, महिला मंडल एवं स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों की भागीदारी से निगरानी तंत्र को सुदृढ़ बनाना।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
सीमावर्ती देशों (जैसे- नेपाल, बांग्लादेश) के साथ मिलकर सीमा पर आसूचना एवं निगरानी को बढ़ावा देना।