(प्रारंभिक परीक्षा : कला एवं संस्कृति) |
चर्चा में क्यों
प्रधानमंत्री मोदी ने 24 मई 2025 को राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित देशनोक में करणी माता मंदिर का दौरा किया।
करणी माता मंदिर के बारे में
- परिचय : यह मंदिर करणी माता को समर्पित एक हिंदू मंदिर है, जिन्हें शक्ति और विजय की देवी माना जाता है।
- चूहों का मंदिर : यह मंदिर अपने पवित्र चूहों (काबा) और लोकमान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है, इसलिए इसे ‘चूहों का मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है।
- मंदिर में लगभग 20,000 से 25,000 काले चूहे रहते हैं, जिन्हें "काबा" कहा जाता है। इन्हें करणी माता के वंशज माना जाता है।
- किवदंतियों के अनुसार अपने सौतेले बेटे लक्ष्मण की डूबने से मृत्यु के बाद करणी माता ने यमराज से उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए कहा, जिसके बाद उनके वंश के अन्य सदस्यों ने चूहों के रूप में पुनर्जन्म लिया।
- स्थान : राजस्थान के बीकानेर शहर से लगभग 30 किमी. दूर देशनोक में स्थित।
- निर्माण : 20वीं शताब्दी के आरंभ में बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह द्वारा।
- वास्तुकला शैली : इस मंदिर की वास्तुकला में राजस्थानी, मुगल और स्थानीय कलात्मक शैलियों का समन्वय है।
- मंदिर का मुख्य द्वार राजस्थानी हवेली शैली में निर्मित है, जिसमें बारीक नक्काशीदार संगमरमर (मार्बल) का प्रयोग किया गया है।
- मुगल शैली के मेहराब, पंखुड़ी-आकार की छतरियाँ, और जालीदार खिड़कियाँ इस द्वार को भव्यता प्रदान करती हैं।
- मंदिर के अंदर हज़ारों चूहों (काबा) के निवास के अनुसार विशेष डिजाइन किया गया है।
- परिसर में छोटे छेद, सुरंगनुमा मार्ग, और अनाज रखने की जगहें बनाईं गई हैं, जिससे चूहों को रहने और घूमने में सुविधा हो।
- सांस्कृतिक महत्व: यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है।
इसे भी जानिए!
करणी माता के बारे में
- जन्म : लगभग 2 अक्टूबर 1387 को जोधपुर के सुआप गाँव में चारण परिवार में हुआ था।
- मूल नाम : रिघुबाई (रिध्दीबाई)
- संन्यास : विवाह के बाद उन्होंने सांसारिक जीवन त्यागकर तपस्वी जीवन अपनाया और लोगों की भलाई के लिए कार्य किया।
- कुल देवी : इन्हें माँ दुर्गा और हिंगलाज देवी का अवतार माना जाता है। वे चारण समुदाय और बीकानेर व जोधपुर के राठौड़ राजवंश की कुलदेवी हैं।
- ऐतिहासिक योगदान: करणी माता ने बीकानेर और जोधपुर के किलों (मेहरानगढ़ और बीकानेर किला) की नींव रखी, जिससे राजपूत शासन को मजबूती मिली।
- मृत्यु और समाधि: 23 मार्च 1538 को करणी माता ने देशनोक में समाधि ली। माना जाता है कि वे 151 वर्ष तक जीवित रहीं।
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