कुटिया कंधा जनजाति में पीढ़ियों से चली आ रही महिलाओं द्वारा मुंह पर टैटू गुदवाने की प्रथा अब लगभग पूरी तरह से समाप्त हो गई है।
कुटिया कंधा जनजाति के बारे में
- परिचय : यह जनजाति विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) कंधा का एक प्रमुख हिस्सा है जो कुई व कुवी द्रविड़ भाषाएँ बोलते हैं।
- वे सबसे प्राचीन स्वदेशी PVTG में से एक हैं जिन्होंने अपनी विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं को बरकरार रखा है।
- जनसंख्या : 2011 की जनगणना के अनुसार, कंधा जनजाति की कुल जनसंख्या लगभग 17.43 लाख है जिनमें से 93.35% ओडिशा में, 5.92% आंध्र प्रदेश में और लगभग 10,000 छत्तीसगढ़ में निवास करते हैं।
- निवास : यह जनजाति मुख्य रूप से ओडिशा के दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्रों, जैसे- कंधमाल, रायगड़ा, कालाहांडी एवं कोरापुट जिलों में पाई जाती है।
- कुछ कंधा आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम, विजयनगरम एवं विशाखनगरम जिलों में भी निवास करते हैं।
- कुटिया कंधा अपनी सरल पेंटिंग, विशेष रूप से महिलाओं द्वारा बनाई गई ‘टिकंगा कुडा’ के लिए जानी जाती हैं जो चावल के आटे व प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती हैं।

टैटू गुदवाने की प्रथा
- पीढ़ियों से कंधा महिलाएँ अपने चेहरे पर स्पष्ट व ज्यामितीय डिज़ाइनों के टैटू गुदवाती रही हैं जिसका उद्देश्य सजावट नहीं बल्कि सुरक्षा होता है।
- उनका इरादा कम आकर्षक दिखना था ताकि वे ज़मींदारों, स्थानीय राजघरानों व ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा यौन शोषण से बच सकें।
- कंधा लड़कियों को 10 वर्ष की आयु में चेहरे पर टैटू बनवाने के लिए मजबूर किया जाता था।
- टैटू एक समान पैटर्न में होते थे, जो चेहरे के सभी हिस्सों को कवर करते थे।
- आधुनिकता के कारण युवा लड़कियों ने इस प्रथा को खत्म कर दिया है और यह दर्दनाक परंपरा अगली पीढ़ी तक नहीं पहुँच रही है।