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कितना आवश्यक है नौकरशाही में क्षैतिज प्रवेश?

(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र और शासन)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका)

संदर्भ

हाल ही में, संघ लोक सेवा आयोग ने संयुक्त सचिव और निदेशक के पदों के लिये योग्य एवं प्रतिभाशाली भारतीय नागरिकों से आवेदन आमंत्रित किये हैं। इन पदों को तीन से पाँच वर्ष के अनुबंध पर क्षैतिज प्रवेश (LateralEntry) के माध्यम से भरा जाएगा।

क्या है क्षैतिज प्रवेश?

  • नीति आयोग और और सचिवों के एक समूह ने फरवरी 2017 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में केंद्र सरकार में मध्यवर्ती और उच्च प्रबंधन स्तरों पर कार्मिकों को क्षैतिज प्रवेश के माध्यम से भर्ती करने की सिफारिश की थी।
  • ये सभी अधिकारी कार्मिक केंद्रीय सचिवालय का हिस्सा होंगे। ध्यातव्य है कि सामान्य स्थितियों में इन पदों पर अखिल भारतीय सेवाओं/केंद्रीय सिविल सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है।
  • किसी विभाग में सचिव और अतिरिक्त सचिव के बाद संयुक्त सचिव तीसरे स्तर का पद होता है, जो विभाग में किसी विंग (स्कंध) के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में कार्य करता है, जबकि निदेशक का पद संयुक्त सचिव से एक रैंक नीचे होता है।

क्यों आवश्यक है क्षैतिज प्रवेश?

  • उच्च पदों के लिये विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने समय-समय पर कई नियुक्तियाँ की हैं। डॉ. मनमोहन सिंह, बिमल जालान, विजय केलकर, मोंटेक अहलूवालिया, जयराम रमेश और अरविंद सुब्रमण्यम इसके कुछ बड़े उदाहरण हैं।
  • इसके अलावा, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के पास कुछ विशेष क्षेत्रों, जैसे-नागरिक उड्डयन, रक्षा और शिपिंग आदि में विशेषज्ञता का भी अभाव होता है। उल्लेखनीय है कि द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी उच्च पदों पर क्षैतिज प्रवेश की सिफारिश की थी।
  • 90 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के कारण केंद्रीय कर्मचारियों की आवश्यकता में कमी का अनुमान व्यक्त किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान में मध्यवर्ती स्तर पर 18 से 25 वर्षों के अनुभव वाले वरिष्ठ आधिकारियों की अत्यधिक कमी है।
  • साथ ही, क्षैतिज भर्ती का उद्देश्य नई प्रतिभाओं के प्रवेश के साथ-साथ जनशक्ति की उपलब्धता को बढ़ाना है।

आलोचना से परे नहीं है क्षैतिज प्रवेश

  • पहला विरोध आरक्षण को लेकर है। एस.सी, एस.टी.और ओ.बी.सी. का प्रतिनिधियों ने इन नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान न होने का विरोध किया है।
  • साथ ही, इन नियुक्तियों के कारण संघ लोक सेवा आयोग की चयन प्रक्रिया को लेकर भी सवाल उठाया जा रहा है कि क्या यह संस्था प्रतिभाशाली उम्मीदवारों का चयन करने में सक्षम नहींहै।
  • साथ ही,यह व्यवस्थानए सिविल सेवकों को हतोत्साहित भी करेगी, जिनको समय के साथ पदोन्नति की आशा होती हैं। इसके अतिरिक्त, आगे चलकर इससे संघ लोक सेवा आयोग की भर्तियों की संख्या में भी कमी आएगी।
  • इस प्रक्रिया से प्रत्यक्ष रूप से प्रशासन के राजनीतिकरण को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि इसके माध्यम से सत्ताधारी राजनीतिक दल के प्रति निष्ठावान लोगों के प्रवेश को बढ़ावा मिलेगा, जो प्रशासनिक गठजोड़ और भ्रष्टाचार में वृद्धि कर सकता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब बार इन उच्च पदों पर नियुक्त उम्मीदवार बाद में सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गए हैं।

क्यों नहीं मिल रहा है आरक्षण का लाभ?

  • यद्यपि संविदा नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान है, परंतु कुछ विशेष स्थितियों के चलते इन नियुक्तियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
  • कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के मई 2018 के एक नियम के अनुसार,45 दिनों या उससे अधिक समय तक की केंद्र सरकार की अस्थाई या संविदा नियुक्तियों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ प्रदान किया जाएगा। विदित है कि सितंबर 1968 में गृह मंत्रालय द्वारा इस संबंध में जारी आदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग को शामिल नहीं किया गया था।
  • हालाँकि, इन पदों के अनारक्षित रहने का एक अलग कारण है। वर्तमान में लागू ‘13-सूत्री रोस्टर’ के अनुसार तीन पदों तक की नियुक्तियों में आरक्षण का लाभ प्रदान नहीं दिया जाता है। चूँकि इसके अंतर्गत भरा जाने वाला प्रत्येक पद एकल (प्रत्येक विभाग के लिये एक) है। इसलिये एकल पद संवर्ग (Single PostCadre) के मामले में आरक्षण का नियम लागू नहीं होता है।
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