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POCSO पर विधि आयोग का रिपोर्ट

प्रारंभिक परीक्षा- समसमायिकी, विधि आयोग, POCSO एक्ट
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर- 2

संदर्भ-
  • विधि आयोग ने विधि मंत्री को POCSO रिपोर्ट सौपते हुए कहा कि, सहमति की उम्र 18 वर्ष ही रखें, लेकिन 16-18 वर्ष के बच्चों पर थोडा कम ध्यान रखें। यह रिपोर्ट यौन जिज्ञासा को चिह्नित करता है और बच्चों के बीच 'मौन अनुमोदन' होने पर बदलाव का सुझाव देता है।

मुख्य बिंदु-

  • कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाली विधि आयोग ने केंद्रीय विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को 'यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, 2012 के तहत सहमति की आयु' पर अपनी रिपोर्ट सौपी।
  • अपनी रिपोर्ट संख्या 283 में "उन मामलों में स्थिति का समाधान करने के लिए जहां I6-18 वर्ष की आयु के बच्चे की ओर से कानून में सहमति नहीं बल्कि मौन स्वीकृति है" में कुछ संशोधन करने के लिए कहा।
  • विधि आयोग के अनुसार, किशोर यौन कृत्यों को आपराधिक कानून के दायरे से छूट देने के लिए ‘यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण’ (POCSO) अधिनियम के तहत सहमति की मौजूदा उम्र - 18 वर्ष - के साथ छेड़छाड़ करना उचित नहीं है। विधि आयोग ने इसके बजाय 16-18 आयु वर्ग के लोगों से जुड़े मामलों में "सजा के मामले में निर्देशित न्यायिक विवेक" शुरू करने का समर्थन किया है। इसमें कहा गया है, "इससे यह सुनिश्चित होगा कि कानून संतुलित है, इस प्रकार बच्चे के सर्वोत्तम हितों की रक्षा होगी"।
  • इसमें कहा गया है, "ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारी राय में ऐसे मामलों को उसी गंभीरता से निपटाए जाने की आवश्यकता नहीं है, जिन मामलों को आदर्श रूप से POCSO अधिनियम के तहत लाने की कल्पना की गई थी।"
  • आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "हालांकि इस मुद्दे को कैसे हल किया जाए, इस पर विचारों में व्यापक मतभेद है, लेकिन जब POCSO अधिनियम के पहलू की बात आती है, तो यह उन बच्चों के खिलाफ काम करता है, जिनकी रक्षा के लिए इसे लागू करना चाहिए।" 
  • हालांकि इसका उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा करना है, किंतु एक बच्चे के बीच और उसके साथ यौन गतिविधियों को पूरी तरह से अपराधीकरण करना तथा उन युवा लड़कों और लड़कियों को जेल में डाल दिया जाता है, जो यौन जिज्ञासा और अन्वेषण की आवश्यकता के परिणामस्वरूप ऐसी गतिविधियों में संलग्न होते हैं जबकि एक किशोर के लिए ये कुछ हद तक मानक हो सकते हैं. 
  • वर्तमान समय में एक सामाजिक लागत भी जुड़ी हुई है, जिसमें बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव के साथ-साथ जांच एजेंसियों और अदालतों पर बोझ भी शामिल है, जो वास्तविक और आवश्यक मामलों से ध्यान हटा देता है। 
  • बच्चों को मानसिक आघात और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जो इस तरह के सहमति से किए गए कार्य में शामिल होने के कारण POCSO अधिनियम के दायरे में आते हैं, निश्चित रूप से चिंता का विषय है। 
  • इस प्रकार, स्पष्ट रूप से पहले से विद्यमान कानून में संशोधन करने के लिए कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

विधि आयोग द्वारा प्रस्तुत समाधान-

  • आयोग ने मुद्दे के विभिन्न पहलुओं विचार करते हुए  तीन संभावित समाधान प्रस्तुत किए हैं-
    1. सहमति की उम्र को 16 साल तक कम करना, जैसा कि POCSO अधिनियम के लागू होने से पहले की स्थिति थी।
    2. 16 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे से जुड़े सहमति से किए गए यौन कृत्य के मामले में सीमित अपवाद की शुरूआत।
    3. किशोरों के बीच या L6 से L8 वर्ष की आयु के किशोरों के साथ सहमति से रोमांटिक संबंध के मामलों में सजा में न्यायिक विवेक का परिचय।
  • सहमति की उम्र घटाकर 16 साल करने से "गंभीर प्रकृति के कई अनपेक्षित परिणाम होंगे, जिससे POCSO अधिनियम एक 'कागजी कानून' में बदल जाएगा।"
  • आयोग के अनुसार,यदि सहमति की रक्षा का दावा करने के बाद स्वचालित रूप से गैर-अपराधीकरण हो जाता है, तो यह ध्यान में रखना चाहिए कि सहमति एक ऐसी चीज है जिसे हमेशा निर्मित किया जा सकता है।
  • इसके अलावा, पुलिस जांच बड़ी संख्या में अपर्याप्तताओं से ग्रस्त है और यदि यह जांच कर रही है जो एजेंसियां यह निर्धारित करती हैं कि सहमति थी या नहीं, तो बहुत सारे वास्तविक मामले जिन पर POCSO अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने की आवश्यकता होती है, उनमें सुनवाई नहीं हो पाती क्योंकि जांच एजेंसियां खुद ही उन्हें सहमति से रोमांटिक यौन संबंध का मामला घोषित कर देती हैं।
  • इसके अलावा, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि सहमति की उम्र कम करने से बाल विवाह और बाल तस्करी के खिलाफ लड़ाई पर सीधा और नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिसके खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी गई है और अभी भी जारी है।
  • 16 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे से जुड़े सहमति से यौन कृत्य के मामले में सीमित अपवाद कहां पेश किया जाना चाहिए, इस पर आयोग का विचार था कि यह भी "समान रूप से चिंताजनक है और दुरुपयोग की संभावना है" जैसा कि "बच्चे की सहमति है या कोई सहमति नहीं और इसे पढ़ना बहुत समस्याग्रस्त होगा"।
  • सभी बच्चे इसी उद्देश्य के लिए बनाए गए विशेष कानून के संरक्षण के पात्र हैं और सहमति की उम्र को कम करने से बाल आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, विशेष रूप से 16 से 18 वर्ष की आयु की युवा लड़कियां, सुरक्षा से वंचित हो जाएंगी और उन्हें अनियंत्रित शोषण का शिकार होना पड़ेगा। 
  • नाबालिगो को सवांरना (grooming) की बढ़ती घटनाएं और सेक्सटॉर्शन जैसे साइबर अपराध इस बात के उत्कृष्ट उदाहरण हैं कि इस कमजोर आयु वर्ग के बच्चों को कैसे फंसाया जा सकता है और उनका शोषण किया जा सकता है। 
  • आयोग ने कहा, भोलापन इन बच्चों को कानून के तहत उच्च सुरक्षा से वंचित करने का कोई कारण नहीं है जिसे संसद ने अपने विवेक से स्थापित करना उचित समझा।
  • युवा लड़कियों को आसानी से प्रेम जाल में फंसाने और फिर तस्करी में बेचे जाने की वास्तविक संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और न ही किया जाना चाहिए। 
  • सहमति के किसी भी तत्व का दुरुपयोग किया जा सकता है और इससे बच्चे वयस्क दुर्व्यवहारियों की दया पर निर्भर हो सकते हैं, जिससे वेश्यावृत्ति और बच्चों का शोषण संभव हो सकता है।
  • सज़ा सुनाने के चरण में सीमित न्यायिक विवेक का प्रावधान करना "समस्या के समाधान के लिए एक नाजुक संतुलन बनाता है और साथ ही बच्चों को यौन शोषण से बचाता है" तथा "यह एक अधिक उचित दृष्टिकोण है"।
  • रिपोर्ट में कहा गया है, "विशेष अदालत को दिया गया ऐसा विवेक उन मामलों में प्रयोग किया जा सकता है, जहां कथित कृत्य के लिए 16 साल से अधिक उम्र के बच्चे की ओर से तथ्यात्मक सहमति प्रतीत होती है।"
  • इसमें उन चिंताओं को "वास्तविक" बताया गया है कि "व्यापक न्यायिक विवेक" की अनुमति देने से मनमानी हो सकती है। 
  • इसमें कहा गया है कि "यह और सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऐसी विवेकाधीन शक्ति इस तरह से प्रदान की जाए कि यह अच्छी तरह से निर्देशित हो और किसी भी संभावित दुरुपयोग से सुरक्षित रहे।
  • " जहां तक संभव हो, सहमति सुनिश्चित करने में विशेष न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति और यदि विवेक का प्रयोग किया ही जाना है, तो इसे सीमित और निर्देशित किया जाना चाहिए ताकि दुरुपयोग को रोका जा सके।''

आयोग का सुझाव-

  • विधि आयोग की रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि यदि सहमति से किया गया कार्य POCSO अधिनियम के दायरे में आता है तो बच्चों को मानसिक आघात और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
  •  यह कहते हुए कि यह चिंता का विषय है, पैनल ने कानून के कामकाज द्वारा बनाई गई इस विषम स्थिति को संशोधित करने के लिए कदम उठाने का सुझाव दिया है।
  • तदनुसार, आयोग ने सिफारिश की कि POCSO अधिनियम की धारा 4 और 8 में क्रमशः प्रवेशन यौन उत्पीड़न और यौन उत्पीड़न के लिए सजा से संबंधित संशोधन किए जाएं, ताकि विशेष अदालत को उन मामलों में कम सजा देने की अनुमति मिल सके जहां बच्चा वयस्क है अर्थात 16 या उससे ऊपर, एक चेकलिस्ट के अधीन।
  • इसने किशोर न्याय अधिनियम की धारा 18 में "कानून के उल्लंघन में पाए गए बच्चे के संबंध में आदेश" और आईपीसी की धारा 375 और 376 में संबंधित विषयों में बदलाव करने का भी सुझाव दिया।
  • कानून की वर्तमान स्थिति के अनुसार, पति, प्रेमी या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी बच्ची के साथ यौन संबंध बनाना आईपीसी की धारा 375 के साथ-साथ POCSO अधिनियम के तहत अपराध है। 
  • हालाँकि, यदि किशोरों के रोमांटिक संबंधों के मामलों में POCSO अधिनियम के तहत आरोपी को कुछ राहत देने की मांग की जाती है (जैसा कि इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई है), तो धारा 376 के तहत दंडनीय धारा 375 में संबंधित संशोधन के बिना यह अर्थहीन होगा। 
  • आई.पी.सी. में ऐसा इसलिए है क्योंकि POCSO अधिनियम के तहत राहत का दावा लड़की के प्रेमी द्वारा किया जा सकता है, लेकिन कथित अपराध के लिए लड़की के प्रेमी या पति दोनों को धारा 375 के तहत दंडित किया जाता रहेगा।
  • आयोग ने बाल यौन शोषण, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के साथ-साथ POCSO अधिनियम के प्रावधानों के बारे में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया और कहा, “व्यापक और आयु-उपयुक्त यौन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम और सरकारी कार्यक्रमों का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाना चाहिए।”
  • राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम का उपयोग भारत की किशोर आबादी को सूचित करने और सशक्त बनाने के लिए किया जाना चाहिए।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- 'यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, 2012 के तहत सहमति की आयु' पर रिपोर्ट सौंपने वाले विधि आयोग के अध्यक्ष कौन थे?

(a) सतीश चन्द्र शर्मा

(b) प्रीतिंकर दिवाकर

(c) रितु राज अवस्थी

(d) रंजन गोगोई

उत्तर- (c)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- हाल ही में विधि आयोग द्वारा प्रस्तुत 'यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, 2012 के तहत सहमति की आयु' पर रिपोर्ट की समीक्षा करें।

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