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कानून को निरस्त करने की प्रक्रिया

(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारतीय संविधान- विशेषताएँ, संशोधन और महत्त्वपूर्ण प्रावधान)

संदर्भ 

हाल ही में, प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष पारित तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की है। कानूनों को निरस्त करने की विधायी प्रक्रिया आगामी शीतकालीन सत्र में पूरी होगी।

किसी कानून के निरस्त होने का तात्पर्य

  • किसी कानून को निरस्त करना उस कानून को रद्द करने का एक तरीका है। संसद को जब ऐसा महसूस होता है कि उक्त कानून के अस्तित्व की कोई आवश्यकता नहीं है तो उस कानून को वापस (Reverse) ले लिया जाता है।
  • विधि निर्माण में एक ‘सूर्यास्त खंड’ (Sunset Clause) का भी प्रावधान है, जिसके तहत एक विशेष अवधि के बाद उस कानून का अस्तित्व समाप्त माना जाता है। उदाहरणस्वरुप, ‘आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम 1987 (जिसे सामान्यतया ‘टाडा’ कहते है) में एक ‘सूर्यास्त खंड’ का प्रावधान था और संसद द्वारा इस अधिनियम का जीवन काल आगे न बढ़ाए जाने के कारण वर्ष 1995 में यह कानून व्यपगत हो गया था। अधिकांश कानूनों में सूर्यास्त खंड का प्रावधान नहीं होता है।
  • जिन कानूनों में ‘सूर्यास्त खंड’ का प्रावधान नहीं होता है, उन कानूनों को निरस्त करने के लिये संसद को एक अतिरिक्त कानून पारित करना होता है।

किसी कानून को निरस्त करने का प्रावधान

  • संविधान का अनुच्छेद 245 संसद को संपूर्ण भारत या उसके किसी भी हिस्से के लिये कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है और राज्य विधायिकाओं को राज्य के लिये कानून बनाने की शक्ति देता है।
  • संसद को इसी अनुच्छेद के द्वारा ही ‘निरसन और संशोधन अधिनियम’ के माध्यम से कानून को निरस्त करने की भी शक्ति प्राप्त है। निरसन और संशोधन अधिनियम के माध्यम से पहली बार वर्ष 1950 में 72 अधिनियमों को निरस्त किया गया था।
  • आम तौर पर, कानूनों को या तो विसंगतियों को दूर करने के लिये या अपने उद्देश्य की पूर्ति के बाद निरस्त कर दिया जाता है। किसी कानून को पूरी तरह से या आंशिक रूप से या अन्य कानूनों के उल्लंघन या विसंगति की सीमा तक निरस्त किया जा सकता है।
  • जब नए कानून बनाए जाते हैं तो नए कानून में एक निरसन खंड डालकर इस विषय पर पुराने कानूनों को निरस्त कर दिया जाता है।

किसी कानून को निरस्त करने की प्रक्रिया

  • किसी कानून को दो तरीकों से निरस्त किया जा सकता है। पहला, अध्यादेश के माध्यम से और दूसरा, विधि-निर्माण के द्वारा। यदि किसी कानून को निरस्त करने के लिये अध्यादेश का उपयोग किया जाता है, तो उसे छह माह के भीतर संसद द्वारा पारित कानून से प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता होगी। संसद द्वारा अनुमोदित न हो पाने की स्थिति में यदि अध्यादेश व्यपगत हो जाता है तो निरसित कानून को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
  • सरकार तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिये एक ही विधेयक ला सकती है। इसकी प्रक्रिया भी अन्य विधेयकों की तरह ही होगी। इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कराने और राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक होगी। आमतौर पर इसके लिये निरसन और संशोधन शीर्षक वाले विधेयक पेश किये जाते हैं।
  • विदित है कि वर्ष 2014 के बाद से भारत सरकार ने 1,428 से अधिक अप्रचलित क़ानूनों (Statutes) को निरस्त करने के लिये छह निरसन और संशोधन अधिनियम पारित किये हैं।
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