New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 22nd August, 3:00 PM Independence Day Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 15th Aug 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 24th August, 5:30 PM Independence Day Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 15th Aug 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 22nd August, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 24th August, 5:30 PM

प्रकृति के साथ शांति स्थापित करना

(प्रारंभिकक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता संबंधित मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र 3 – संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, आपदा एवं आपदा प्रबंधन से संबंधित मुद्दे)

संदर्भ

  • औद्योगिक क्रांति के पश्चात् मानव द्वारा किये गए प्रकृति के दोहन ने मानव सभ्यता के लिये विभिन्न समस्याओं एवं बीमारियों को जन्म दिया है। 
  • कोविड-19 महामारी को भी क्षतिग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र के संदर्भ में ही देखा जा सकता है। साथ ही, ज़ूनोटिक रोगजनक वायरस के वन्यजीवों से मानव में स्थानांतरण की दर में वृद्धि भी इसी का परिणाम है।   

बदलाव की शुरुआत 

  • पारिस्थितिक तंत्र के विनाश की प्रक्रिया दशकों पुरानी है, जिसे रातोंरात बदला नहीं जा सकता है। किंतु, इसकी शुरुआत कुछ क्षेत्रों में बदलाव के साथ की जा सकती है, जिसमें शामिल हैं-
    • कृषि पैटर्न 
    • मृदा उपयोग
    • तटीय एवं समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के दोहन के प्रकार 
    • वन प्रबंधन 
  • यही कारण है कि विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर परसंयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रमतथासंयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठनने प्रत्येक महाद्वीप एवं महासागर में पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण को रोकने और उसके उत्क्रम के लिये पारिस्थतिकी तंत्र की बहाली परसंयुक्त राष्ट्र दशककी शुरुआत की।    

संयुक्त राष्ट्र दशक की भारत के लिये उपयोगिता    

यह दशक पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा और उसे पुनर्जीवित करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। दस वर्षीय कार्य योजना देश में आजीविका संवर्द्धन, कार्बन भंडार के पुनर्भरण, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और वन्यजीवों के लिये आवासों के पुनर्निर्माण द्वारा जैव विविधता के क्षरण को रोकने में मदद करेगी। 

भारत द्वारा पर्यावरण की बहाली के लिये उठाए गए कदम 

  • प्रधानमंत्री ने वन भूमि को वर्ष 2030 तक 21 से 26 मिलियन हेक्टेयर तक बढ़ाने की घोषणा की है। 
  • इस प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिये विभिन्न कदम अपेक्षित हैं -  
    • कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के लिये ठोस प्रयास। 
    • जलवायु परिवर्तन मनुष्यों के साथ-साथ नाज़ुक पारिस्थितिक तंत्र के लिये भी खतरनाक है। 
    • विश्व स्तर पर, हमें वर्ष 2010 की तुलना में वर्ष 2030 तक शुद्ध कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 45% तक कम करना चाहिये और पेरिस समझौते में निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य को प्राप्त करने की आशा रखने के लिये हमें वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन स्तर को प्राप्त करना  चाहिये। 
    • भारत को ऊर्जा प्रणालियों, भूमि उपयोग, कृषि, वन संरक्षण, शहरी विकास, बुनियादी ढाँचे और जीवन-शैली में बदलाव लाकर इस दिशा में कार्य करने की ज़रूरत है। 
    • इसे जैव विविधता संरक्षण एवं पुनर्स्थापना और वायु जल प्रदूषण तथा कचरे को कम करने के साथ जोड़ना होगा। प्रकृति की परस्पर संबद्धता को देखते हुए सभी समस्याओं से एक-साथ निपटना होगा। 
    • भारत को अपनी आर्थिक, वित्तीय और उत्पादन प्रणालियों में स्थिरता लाने की आवश्यकता है।

आगे की राह 

  • नीति-निर्माण में प्राकृतिक पूँजी को शामिल करना, पर्यावरण की दृष्टि से हानिकारक सब्सिडी को समाप्त करना और कम कार्बन एवं प्रकृति के अनुकूल प्रौद्योगिकियों में निवेश को सुनिश्चित करना प्रमुख हैं। 
  • सतत् विकास में निवेश को वित्तीय रूप से आकर्षक बनाकर, वित्तीय प्रवाह और निवेश पैटर्न को स्थिरता की ओर स्थानांतरित किया जा सकता है।
  • भारत को ऐसी खाद्य प्रणालियाँ विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जो प्रकृति के लिये हितकारी हों, कचरे को कम करें और परिवर्तन के अनुकूल हों।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X