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पोषण एजेंडे में बदलाव की आवश्यकता

(प्रारम्भिक परीक्षा- राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : जन वितरण प्रणाली, बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा सम्बंधी विषय)

संदर्भ

हाल ही में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के प्रथम चरण के निष्कर्षों के आधार पर 22 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के लिये डाटा फैक्ट शीट जारी की हैं। इन 22 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में कुछ प्रमुख राज्य जैसे तमिलनाडु, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और मध्य प्रदेश शामिल नहीं हैं। फिर भी पोषण के परिणाम चिंतित करने वाली तस्वीर प्रस्तुत करते हैं।

चिंताजनक परिणाम

  • इन 22 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में से 16 में वर्ष 2015-16 में आयोजित एन.एफ़.एच.एस-4 (NFHS-4) की तुलना में गम्भीर कुपोषण के प्रसार में वृद्धि हुई है।
  • हालाँकि, छह राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में कुपोषण के प्रसार में कुछ गिरावट आई है परंतु इसमें केरल और कर्नाटक ही दो बड़े राज्य शामिल हैं।
  • साथ ही, वयस्क कुपोषण जैसे अन्य संकेतकों के प्रसार में भी वृद्धि हुई है। इसे 18.5 किग्रा./मी.2 से कम बॉडी मास इंडेक्स (BMI) के रूप में मापा गया है।

एनीमिया का स्तर

  • अधिकाँश राज्यों में बच्चों के साथ-साथ वयस्क महिलाओं के एनीमिया स्तर में भी वृद्धि हुई है, जबकि केवल चार छोटे राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में एनीमिया में गिरावट देखी गई है।
  • इनमें लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा एवं नगर हवेली, दमन व दीव और मेघालय शामिल हैं।

वजन की समस्या

  • कम भार वाले (Underweight) पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों का प्रतिशत भी 16 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में बढ़ा है।
  • साथ ही, अधिकांश राज्यों/संघ राज्य प्रदेशों में भी बच्चों व वयस्कों में अधिक वजन व मोटापे की प्रवृत्ति में वृद्धि देखी जा रही है।
  • यह दोनों स्थितियाँ गुणवत्ता और मात्रा के स्तर पर भारत में आहार की अपर्याप्तता की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं।

बाल्यावस्था/शैशवकालीन बौनापन (Childhood Stunting)

  • एन.एफ़.एच.एस-4 के आँकड़ों की तुलना में 22 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में से 13 में शैशवकालीन बौनेपन की समस्या में वृद्धि देखी गई है।
  • साथ ही, शेष नौ में से पाँच राज्यों में पिछले पाँच वर्ष की अवधि के दौरान 1 प्रतिशतांक से भी कम का सुधार देखा गया है। यद्यपि सिक्किम, मणिपुर, बिहार और असम राज्यों में कुछ सुधार देखा गया है, हालाँकि ये सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यों से कम है।
  • विदित है कि वर्ष 2017 में शुरू किये गए पोषण अभियान का उद्देश्य बौनेपन में प्रति वर्ष 2 प्रतिशतांक की कमी के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
  • विदित है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन बौनेपन को ‘मानव विकास असमानताओं का एक सूचक’ मानता है। साथ ही, शैशवकालीन बौनेपन को चिरकालिक कुपोषण के साथ-साथ समग्र स्वास्थ्य का एक सूक्ष्म संकेतक भी माना जाता है।

स्वच्छता की स्थिति

  • स्वास्थ्य, पोषण और अन्य सामाजिक-आर्थिक संकेतकों से सम्बंधित आँकड़ों को पेश करने वाली एन.एफ़.एच.एस-5 फैक्ट शीट में कुछ सकारात्मक प्रवृत्तियाँ भी दिखाई पड़ती हैं।
  • कुपोषण के निर्धारकों तत्त्वों, जैसे- स्वच्छता तक पहुँच, खाना पकाने हेतु स्वच्छ ईंधन और महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार देखने को मिला है।
  • साथ ही, महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा में कमी और बैंक खातों तक महिलाओं की अधिक पहुँच भी सकारात्मक संकेत हैं। हालाँकि, इनमें भी अंतराल बना हुआ है और कुछ राज्य दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।

कारण

  • पिछले तीन दशकों के दौरान ऐसे कई मौके आए हैं जब भारत की आर्थिक विकास दर काफी उच्च रही है। हालाँकि, इस अवधि में असमानता में वृद्धि, श्रम बल के अनौपचारिक क्षेत्र में अधिक संलग्नता और रोज़गार लोचशीलता में कमी देखी गई है।
  • मनरेगा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, समेकित बाल विकास योजना (ICDS) और मिड डे मील जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तथा सार्वजनिक कार्यक्रमों में विस्तार ने निरपेक्ष गरीबी में कमी लाने के साथ-साथ पोषण संकेतकों के सुधार में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • हालाँकि, वित्त पोषण में कमी और उपेक्षा के कारण ये तंत्र लगातार कमज़ोर हो रहे हैं। उदाहरणस्वरुप दिसम्बर, 2019 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2017-18 के बाद से पोषण अभियान के लिये जारी धनराशि का केवल 32.5% ही उपयोग किया गया।
  • पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक विकास में मंदी, ग्रामीण मज़दूरी में स्थिरता और बेरोजगारी के उच्च स्तर के कारण भी इन समस्याओं में वृद्धि हुई है। यह प्रवृत्ति देश के विभिन्न हिस्सों में कथित भुखमरी से होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या में परिलक्षित होती है।
  • महामारी और लॉकडाउन से प्रेरित आर्थिक संकट के परिणामस्वरूप स्थिति और भी खराब हो सकती है। 'हंगर वॉच' के सर्वेक्षण में खाद्य असुरक्षा के साथ-साथ भोजन की खपत में बड़े स्तर पर कमी देखी गई है। यह समस्या विशेषकर गरीब और कमज़ोर परिवारों में अधिक है।

दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता

  • यह समस्या पोषण से सम्बंधित कुछ पहलुओं को ही हल करने के दृष्टिकोण का परिणाम है। पूरक पोषण (अच्छी गुणवत्ता के अंडे, फल, आदि), संवृद्धि व विकास की उचित निगरानी जैसे प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के साथ-साथ समेकित बाल विकास योजना एवं स्कूलों में दिये जाने वाले भोजन के माध्यम से खाद्य व्यवहार में परिवर्तन करने और इन्हें अधिक संसाधन प्रदान किये जाने की आवश्यकता है।
  • सार्वभौमिक मातृत्व लाभ (Universal Maternity Entitlements) और बाल देखभाल जैसी सेवाओं के माध्यम से विशेष स्तनपान, शिशु एवं छोटे बच्चों को उचित आहार प्रदान करने के साथ-साथ महिलाओं के अवैतनिक कार्य को मान्यता देने के मुद्दे पर भी प्रगति किये जाने की आवश्यकता है।
  • खाद्य पदार्थों के उत्पादन में पोषण युक्त कृषि प्रणाली को विकसित करने की आवश्यकता है।
  • कुल मिलाकर मुख्य मुद्दा यह है कि कुपोषण के मूल निर्धारकों को लम्बे समय तक नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है। इन निर्धारकों में घरेलू खाद्य सुरक्षा, बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच और न्यायसंगत लैंगिक समानता शामिल हैं।
  • साथ ही, एक रोज़गार केंद्रित विकास रणनीति भी अनिवार्य है जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, खाद्य और सामाजिक सुरक्षा के लिये बुनियादी सेवाओं का सार्वभौमिक प्रावधान शामिल हो।

निष्कर्ष

बाल कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिये न केवल प्रत्यक्ष कार्यक्रम बल्कि देश में प्रारम्भ किये गए आर्थिक विकास के समग्र मॉडल पर भी गम्भीर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है। साथ ही, कुपोषण की चिंताजनक स्थिति इसे दूर करने की दिशा में प्रतिबद्धता और प्राथमिकता के साथ-साथ तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को इंगित करती है।

प्रिलिम्स फैक्ट्स :

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS), मुंबई के समन्वय से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के नेतृत्व में किया जाता है।
  • यह सम्पूर्ण भारत में बड़े पैमाने पर आयोजित होने वाला बहुचक्रीय सर्वेक्षण है। पहला राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-1) वर्ष 1992-93 में आयोजित किया गया था।
  • दूसरा, तीसरा और चौथा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण क्रमश: वर्ष 1998-99, 2005-06 और 2015-16 में आयोजित किया गया था।
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