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सूक्ष्म उद्यमों के नवीन वर्गीकरण की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : आर्थिक विकास, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा उद्योग संबंधित विषय)

संदर्भ

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम की नई परिभाषाओं से उत्पन्न अस्पष्टता व व्यवस्थित डाटा की कमी को कम करने के लिए सूक्ष्म उद्यमों के वर्गीकरण की समीक्षा करना एवं इसके अंतर्गत उद्यमों का उप-वर्गीकरण करना वर्तमान आर्थिक दृष्टिकोण के अनुकूल है। एक संसदीय पैनल भी सूक्ष्म उद्यमों की श्रेणी को बड़े एम.एस.एम.ई. क्षेत्र से अलग करने पर विचार कर रहा था।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) की वर्तमान परिभाषा 

  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 के प्रावधानों के अनुसार, एम.एस.एम.ई. को दो वर्गों अर्थात् विनिर्माण उद्यम और सेवा उद्यम में वर्गीकृत किया गया है। 
  • हालाँकि, वर्ष 2020 में उद्यमों को वार्षिक कारोबार और उपकरणों में निवेश के आधार पर वर्गीकृत किया गया। 

वर्गीकरण

सूक्ष्म

लघु

मध्यम

विनिर्माण उद्यम और सेवाएं प्रदान करने वाले उद्यम

संयंत्र एवं मशीनरी या उपकरण में निवेश : 1 करोड़ रुपए से अधिक नहीं, 

वार्षिक कारोबार (Turn over) : 5 करोड़ रुपए से अधिक नहीं।

संयंत्र एवं मशीनरी या उपकरण में निवेश : 10 करोड़ रुपए से अधिक नहीं,  

वार्षिक कारोबार (Turn over) :  50 करोड़ रुपए से अधिक नहीं।

संयंत्र एवं मशीनरी या उपकरण में निवेश : 50 करोड़ रुपए से अधिक नहीं, वार्षिक कारोबार (Turn over) : 250 करोड़ रुपए से अधिक नहीं।

परिभाषा में सुधार की आवश्यकता क्यों 

  • अदृश्य विषमता : वर्ष 2020 में सूक्ष्म-उद्यमों की परिभाषा को बदलकर 5 करोड़ रुपए के वार्षिक कारोबार के तहत सभी को सूक्ष्म-उद्यमों के रूप में शामिल किया गया, जो कि 50 लाख रुपए की पिछली सीमा से काफी अधिक है। 
    • इसका उद्देश्य राज्य द्वारा सूक्ष्म उद्यमों को प्रदान किए जाने वाले लाभों एवं प्रोत्साहनों को बनाए रखते हुए कंपनियों को कम राजस्व को रिपोर्ट करने से हतोत्साहित करना था। हालाँकि, नई परिभाषा से वितरण में व्याप्त महत्वपूर्ण विषमता अदृश्य हो जाती है।
  • कम राजस्व की प्राप्ति : राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) असंगठित उद्यम सर्वेक्षण, 2016 के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल 95% उद्यमों ने प्रतिवर्ष 50 लाख रुपए से कम राजस्व की जानकारी दी है। 
    • 98% से अधिक एम.एस.एम.ई. आकार में ‘सूक्ष्म’ हैंइस श्रेणी में 50 लाख रुपए एवं उससे कम (श्रेणी 1) के वार्षिक राजस्व की रिपोर्ट करने वालों की संख्या 50 लाख से 5 करोड़ रुपए (श्रेणी 2) के वार्षिक राजस्व की रिपोर्ट करने वालों से काफी अधिक है।
  • व्यवस्थित डाटा की कमी : वर्ष 2016 के बाद से उन उद्यमों पर व्यवस्थित डाटा उपलब्ध नहीं है जो फैक्ट्री अधिनियम के तहत पंजीकृत नहीं हैं और उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) के तहत शामिल हैं। 
    • किंतु वर्ष 2022 के जी.एस.टी. डाटा के अनुसार, लगभग 63% कंपनियां 50 लाख रुपए से कम की श्रेणी से संबंधित हैं और सूक्ष्म श्रेणी में कुल उद्यमों का 30% 10 लाख रुपए से कम वार्षिक राजस्व खंड से संबंधित हैं। जी.एस.टी. डाटा अनुलोम विषमता (Rightward Skewness) की पुष्टि करता है।
  • उद्यम के आकार से संबंध : नियोजित श्रमिकों की संख्या का उद्यम के आकार से सीधा संबंध होता है। राजस्व का आकार बढ़ने के साथ-साथ औपचारिक श्रमिकों से लेकर अनौपचारिक श्रमिकों की संख्या भी बढ़ती है। 
    • हालाँकि, निम्न राजस्व वाले उद्यमों को नज़रअंदाज़ करने से उनके कर्मचारी की संख्या नगण्य मान ली जाती है और नीति-निर्माण में समस्या होती है।

MSME की वर्तमान परिभाषा से होने वाली समस्या  

  • एम.एस.एम.ई. को समय पर भुगतान की समस्या 
  • अल्पावधि में छोटे उद्यमों का हाशिए पर जाना
  • उद्यमों के संचालन के लिए पूंजी उधार लेने में कमी
  • श्रमिकों के लिए सामाजिक-आर्थिक नीति नियमन में समस्या  

निष्कर्ष 

भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्यमों की सबसे बड़ी श्रेणी की कार्यप्रणाली की कमज़ोर समझ के कारण प्रभावी हस्तक्षेपों को डिज़ाइन करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) के दायरे में आने वाले सूक्ष्म उद्यमों के महत्व पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है। साथ ही, इनकी श्रेणी को बड़े एम.एस.एम.ई. पैमाने से अलग करने पर विचार करना चाहिए। इसके लिए संसद की स्थायी समिति ने हर पांच वर्ष में इसके परिभाषा में नियमित संशोधन की सिफारिश की है।

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