मेघालय के नोंगखाइलेम वन्यजीव अभयारण्य (Nongkhyllem Wildlife Sanctuary) में प्रस्तावित इकोटूरिज्म विकास परियोजना का विरोध किया जा रहा है जोकि पारिस्थितिकी बनाम विकास का एक प्रमुख मुद्दा है।
परियोजना के बारे में
- परिचय : यह एक प्रस्तावित ईको-पर्यटन परियोजना है जिसके अंतर्गत निम्नलिखित सुविधाओं के निर्माण की योजना है।
- पर्यटकों के लिए आधुनिक आवासीय इकाइयाँ
- ग्लास स्काईवॉक (Glass Skywalk)
- जल क्रीड़ा (Water Sports) क्षेत्र
- अन्य पर्यटक अनुकूल सुविधाएँ
- उद्देश्य : ईको-पर्यटन को बढ़ावा देना और स्थानीय आर्थिक विकास करना
- प्रस्तावित परिव्यय : ₹23.7 करोड़ रुपए
विरोध का कारण
- संरक्षित पारिस्थितिकी पर खतरा : यह अभयारण्य एक संवेदनशील पारिस्थितिकी वाला क्षेत्र है जहाँ पर्यटक गतिविधियों से जानवरों, पक्षियों, सरीसृपों, कीटों व पौधों की जैव -विविधता को गंभीर क्षति पहुँच सकती है।
- छोटा आकार : पर्यावरणविदों ने केवल 29 वर्ग किमी. में फैले इस अभयारण्य को संरचनात्मक परियोजनाओं के लिए अनुपयुक्त बताया है। यह क्षेत्र अब तक न्यूनतम मानव हस्तक्षेप के साथ सफलतापूर्वक संरक्षित रहा है।
संभावित सुझाव
- परियोजना संबंधी पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अनिवार्य करना
- स्थानीय समुदायों को योजना निर्माण एवं निगरानी में शामिल करना
- न्यूनतम संरचनात्मक हस्तक्षेप के लिए समुदाय केंद्रित इको पर्यटन (Community-based Ecotourism) मॉडल अपनाना
- आजीविका एवं रोजगार के लिए बुनियादी ढांचा परियोजना की बजाय आसपास के समुदायों के विकास के लिए धन का उपयोग करना
नोंगखाइलेम वन्यजीव अभयारण्य
- अवस्थिति : मेघालय के पर्वतीय एवं वनाच्छादित भूभाग में स्थित
- ऊँचाई : समुद्र तल से 400–800 मीटर तक
- यह मेघालय के सबसे महत्वपूर्ण एवं जैव-विविधता समृद्ध संरक्षित क्षेत्रों में से एक है।
- स्थापना : वर्ष 1981
- भौगोलिक विशेषताएँ : उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, मिश्रित पर्णपाती वन व बांस की झाड़ियाँ
- जैव विविधता : प्रमुख वन्यजीवों में एशियाई हाथी, भारतीय तेंदुआ, सांभर, माउंटेन बकरी, जंगली सूअर आदि शामिल हैं।
- यहाँ 400 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें रूफ्स-नेक्ड हॉर्नबिल, गोल्डन थ्रश, हिल माईना, ड्रोंगो, ट्रीपाई, वुडपैकर आदि शामिल हैं।
- डिप्टेरोकार्पस, फाइकस, साल, बांस एवं ऑर्किड की प्रचुरता पाई जाती है।
- संरक्षण स्थिति और उपलब्धियाँ:
- वर्ष 2021 की ‘प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन (MEE)’ रिपोर्ट में इसे पूर्वोत्तर भारत का सर्वश्रेष्ठ संरक्षित क्षेत्र माना गया।
- यहाँ वन अधिकारियों एवं स्थानीय समुदायों के सहयोग से न्यूनतम मानव हस्तक्षेप सुनिश्चित किया गया है।
- जैव विविधता निगरानी कार्यक्रम और नियमित रूप से वन्यजीव जनगणना होती है।
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