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व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य 

(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 व 3  शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय; आर्थिक विकास: औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव)

संदर्भ

हाल ही में, सेफ इन इंडिया द्वारा जारी क्रश्ड रिपोर्ट 2021 में ऑटोमोबाइल क्षेत्र में व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (Occupational Safety and Health) से जुड़े मामलों की निराशाजनक तस्वीर को प्रस्तुत किया गया है। 

व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे

  • व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य एक प्रमुख मानव एवं श्रम अधिकार है लेकिन फिर भी भारत के कानून निर्माताओं एवं ट्रेड यूनियनों ने इस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। 
  • कार्यस्थल में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सुधारात्मक कार्रवाइयों और नीतियों के निर्माण हेतु एक मजबूत निगरानी (निरीक्षण) तंत्र और व्यापक डाटाबेस प्राथमिक अनिवार्यता है। 
  • औद्योगिक दुर्घटनाओं से संबंधित आंकड़े श्रम ब्यूरो द्वारा तैयार किये जाते हैं, जिनमें कई खामियां विद्यमान हैं। ब्यूरो केवल सीमित क्षेत्रों (कारखानों, खदानों, रेलवे, डॉक और बंदरगाहों) से संबंधित औद्योगिक दुर्घटनाओं के आँकड़ों को ही संकलित एवं प्रकाशित करता है, जबकि निर्माण, सेवा आदि क्षेत्रों से जुड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं के आँकड़े एकत्रित नहीं किये जाते हैं।

राज्यों से जुड़े आँकड़े

  • श्रम ब्यूरो द्वारा संकलित आँकड़े भारत की वास्तविक स्थिति का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं क्योंकि कई राज्यों द्वारा आँकड़ों को उपलब्ध कराने में त्रुटियाँ की जाती हैं। उदाहरण के लिये वर्ष 2013-14 के दौरान, दिल्ली, गुजरात, केरल, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि प्रमुख राज्यों ने अपने आँकड़े अपेक्षाकृत घटा कर प्रस्तुत किये, जिसका प्रभाव अखिल भारतीय आँकड़ों पर भी पड़ा। 
  • श्रम ब्यूरो द्वारा भारतीय श्रम सांख्यिकी में प्रकाशित औद्योगिक दुर्घटनाओं से संबंधित आँकड़ों के अनुसार, 2004 से 2014 के बीच गुजरात, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र के आंकड़ों में अत्यधिक उतार चढ़ाव देखा गया है। उदाहरण के लिये वर्ष 2004 के कुल घातक और गैर-घातक दुर्घटनाओं में महाराष्ट्र की भागीदारी 25.65% और 36.78% थी, जो वर्ष 2014 में क्रमशः 12.62% और 57% हो गई।
  • राज्यों द्वारा श्रम ब्यूरो को भेजे गए आँकड़ों के अनुसार घातक दुर्घटनाओं की तुलना में गैर-घातक दुर्घटनाओं की कम रिपोर्टिंग की जाती है। 

कारखाना निरीक्षकों की कमी 

  • एक अनुमान के अनुसार, भारत में कारखाना निरीक्षकों के स्वीकृत पदों पर नियुक्तियों का अनुपात 70.60% है। वहीं दूसरी तरफ, महाराष्ट्र (38.93%), गुजरात (57.52%), तमिलनाडु (58.33%), और बिहार (47.62%) जैसे राज्यों में निरीक्षकों की नियुक्ति दर अधिक चिंताजनक है। 
  • वर्ष 2019 में देश में प्रत्येक 487 पंजीकृत कारखानों के लिये एक निरीक्षक नियुक्त था, जिससे निरीक्षकों पर कार्य के दबाव का अनुमान लगाया जा सकता है। कारखानों में कार्यरत प्रति 1,000 श्रमिकों पर मात्र 0.04 निरीक्षक नियुक्त है अर्थात् प्रत्येक 25,415 श्रमिकों के लिये एक निरीक्षक है।
  • अखिल भारतीय स्तर पर पंजीकृत कारखानों (निरीक्षण दर) का निरीक्षण अनुपात वर्ष 2008-2011 के बीच 36.23%, वर्ष 2012-2015 के बीच 34.65% और बाद के वर्षों में घटकर 24.76% हो गया है। 

आगे की राह

  • उपर्युक्त आँकड़ों के अध्ययन से कानून और श्रम नीति पहलुओं से संबंधित दो प्रमुख चिंताएँ प्रकट होती हैं। पहला, निरीक्षण प्रणाली का अतार्किक उदारीकरण और राज्यों द्वारा औद्योगिक दुर्घटनाओं के सही आँकड़े प्रस्तुत न करना। 
  • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के सम्मेलनों, श्रम निरीक्षण सम्मेलन, 1947 और श्रम सांख्यिकी सम्मेलन, 1985 पर स्वीकृति प्रदान की है जो देश की औद्योगिक दुर्घटनाओं के सही आकलन के लिये नैतिक दबाव के रूप में कार्य करता हैं। 
  • इसके अतिरिक्त देश में श्रम संहिताओं, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य कोड, निरीक्षण और श्रम सांख्यिकीय प्रणालियों की समीक्षा की जानी चाहिये ताकि श्रम मंत्रालय के लिये विजन@2047 दस्तावेज को तैयार करने के दौरान औद्योगिक दुर्घटनाओं के सही आँकड़े एकत्रित किये जा सकें।
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