(प्रारंभिक परीक्षा : योजनाएं एवं कार्यक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र- 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय) |
संदर्भ
नवीन पेट्रोकेमिकल्स योजना की छत्रक योजना के अंतर्गत भारत सरकार का रसायन एवं पेट्रो-रसायन विभाग प्लास्टिक पार्क योजना को क्रियान्वित कर रहा है।
प्लास्टिक पार्क योजना के बारे में
- परिचय : यह देश के प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग को संगठित करने, निवेश, उत्पादन एवं निर्यात को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित क्लस्टर आधारित योजना है।
- क्या हैं प्लास्टिक पार्क : प्लास्टिक पार्क एक ऐसा विशेष औद्योगिक क्षेत्र होता है जिसे विशेषतौर पर प्लास्टिक से जुड़े उद्योगों के लिए विकसित किया गया है।
- यहाँ अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे के साथ-साथ सामान्य सुविधाएँ, जैसे- अपशिष्ट प्रबंधन, पुनर्चक्रण केंद्र, जल उपचार संयंत्र आदि उपलब्ध कराए जाते हैं।
- ये पार्क क्लस्टर विकास मॉडल पर आधारित होते हैं जिससे संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो सके और उद्योगों को लागत में लाभ मिले।
- नोडल निकाय : इस योजना को रसायन एवं पेट्रो-रसायन विभाग द्वारा संचालित किया जाता है।
- राज्य सरकारें विशेष प्रयोजन इकाई (SPV) के माध्यम से इस योजना के कार्यान्वयन में भाग लेती हैं।
- वित्तीय आवंटन : केंद्र सरकार प्रत्येक प्लास्टिक पार्क परियोजना को अधिकतम ₹40 करोड़ तक की वित्तीय सहायता प्रदान करती है जो कुल परियोजना लागत का अधिकतम 50% हो सकता है। यह अनुदान साझा अवसंरचना के निर्माण के लिए होता है।
- विभिन्न राज्यों में प्लास्टिक पार्क : अब तक विभिन्न राज्यों में 10 प्लास्टिक पार्कों को मंजूरी दी गई है।
योजना के प्रमुख उद्देश्य
- प्रतिस्पर्धात्मकता और गुणवत्ता में सुधार : आधुनिक तकनीक व अनुसंधान के ज़रिए घरेलू प्लास्टिक उद्योग को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना।
- निवेश और निर्यात में बढ़ोतरी : बेहतर सुविधाओं के साथ निवेश को आकर्षित करना और निर्यात क्षमता बढ़ाना।
- पर्यावरणीय स्थिरता : अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देकर पर्यावरण अनुकूल विकास सुनिश्चित करना।
- क्लस्टर विकास मॉडल : संसाधनों का संयुक्त उपयोग और लागत में कमी सुनिश्चित करने के लिए क्लस्टर आधारित विकास।
प्लास्टिक पार्क स्थापित करने की प्रक्रिया
- राज्य सरकारें प्रस्तावित स्थान, वित्तीय विवरण आदि के साथ प्रारंभिक प्रस्ताव भेजती हैं।
- योजना संचालन समिति से सैद्धांतिक स्वीकृति मिलने के बाद विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) प्रस्तुत की जाती है।
- विशेषज्ञ समिति द्वारा मूल्यांकन के बाद अंतिम मंजूरी दी जाती है।
योजना के लाभ
- प्लास्टिक उद्योग को एकीकृत और संगठित करने में सहायक
- छोटे एवं मध्यम उद्योगों को बेहतर सुविधाएँ
- निवेश और रोजगार के अवसरों मे वृद्धि
- अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण की सुविधाओं से पर्यावरणीय लाभ
भारत में प्लास्टिक उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए अन्य पहलें
- उत्कृष्टता केंद्र (Centres of Excellence- CoE): देशभर में 13 उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए हैं जो प्लास्टिक व पॉलिमर में अनुसंधान, सतत विकास एवं नवाचार को बढ़ावा देते हैं।
- कार्यबल का कौशल विकास: सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPET) प्लास्टिक तकनीक में अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करता है।
- पर्यावरणीय पहल:
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) नियमों के तहत प्लास्टिक पैकेजिंग में पुनर्चक्रण एवं पुन: उपयोग को बढ़ावा।
- एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन जिसमें पुनर्चक्रण एवं बायोडिग्रेडेबल विकल्पों का उपयोग शामिल है।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत WTO, UNEP एवं ISO जैसे संगठनों के साथ समन्वय में कार्य कर रहा है ताकि अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार टिकाऊ विकास सुनिश्चित किया जा सके।