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समुद्री सुरक्षा चुनौतियों के संबंध में प्रधानमंत्री का संबोधन    

(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 2;  द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना अधिदेश) 

संदर्भ 

हाल ही में, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ‘समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता’ विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) की उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्

  • सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र का एक महत्त्वपूर्ण निकाय है। यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिये उत्तरदायी है। परिषद् में 15 सदस्य हैं। इनमें 5 स्थायी सदस्य एवं 10 अस्थायी सदस्य है।
  • परिषद् के पाँच स्थायी सदस्य चीन, फ्रांस, रुसी संघ, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं। परिषद् के अस्थायी सदस्यों के लिये महासभा द्वारा प्रत्येक वर्ष पाँच अस्थायी सदस्यों के लिये क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के आधार पर चुनाव किया जाता है। अस्थायी सदस्यों का कार्यकाल 2 वर्ष होता है।
  • गौरतलब है कि यू.एन.एस.सी. के अस्थायी सदस्य के रूप में भारत का दो वर्षीय कार्यकाल 1 जनवरी, 2021 से शुरू हुआ है। इस कार्यकाल में यू.एन.एस.सी. में यह भारत की पहली अध्यक्षता है।

ारतीय सामुद्रिक परम्पराएँ

  • भारतीय प्रायद्वीप के पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर एवं दक्षिण में हिंद महासागर स्थित है। इसकी तट रेखा की लंबाई 7516 किमी. है। देश का लगभग 90 प्रतिशत व्यापार तथा लगभग 90 प्रतिशत तेल आयात समुद्र के माध्यम से होता है।
  • भारत की जलीय सीमा बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान, थाईलैंड आदि देशों से लगती है। भारत की इस विशेष स्थिति के कारण सामुद्रिक क्षेत्र की सुरक्षा आर्थिक एवं सामरिक दोनों ही दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
  • सुरक्षा परिषद् में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से समुद्री सुरक्षा के लिये सहकारी और समावेशी ढाँचा विकसित करने का आग्रह किया। यह अबाधित व्यापार एवं वाणिज्य के लिये नितांत आवश्यक है।
  • विदित है कि वैश्विक व्यापार का लगभग 90 प्रतिशत समुद्री मार्गों द्वारा संपन्न होता है। इसका प्रमुख कारण समुद्री परिवहन का लागत प्रभावी होना है।
  • समुद्री मार्गों के बाधित होने के वैश्विक प्रभाव हैं। इस वर्ष के प्रारंभ में स्वेज नहर में आए अवरोध के कारण अरबों डॉलर का व्यापार प्रवाह बाधित हुआ। वर्ष 1956 में मिस्त्र द्वारा स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण किये जाने का विश्व की सभी महत्त्वपूर्ण शक्तियों द्वारा  विरोध किया गया। वर्तमान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में किसी भी प्रकार की नौसैनिक नाकेबंदी विनाशकारी साबित हो सकती है।
  • नौवहन की स्वतंत्रता एवं बाधा रहित व्यापार-वाणिज्य समृद्धि का मूल तत्त्व है। आपूर्ति शृंखला खुले समुद्र की अवधारणा पर निर्भर है। दक्षिण चीन सागर में बंद समुद्र की नव-औपनिवेशिक अवधारणा वैश्विक अर्थव्यवस्था के भविष्य के लिये अभिशाप सिद्ध हो सकती है।

मुद्री विवादों का निपटारा

  • प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार, समुद्री विवादों के शांतिपूर्ण समाधान पर बल दिया। विवादों के शांतिपूर्ण तरीके से समाधान का विचार भारत के शांति और अहिंसा के मूल्यों में निहित है।
  • वर्ष 2014 में भारत बांग्लादेश के मध्य समुद्री विवाद के संबंध में संयुक्त राष्ट्र न्यायाधिकरण के निर्णय को भारत ने स्वीकृति दी तथा दोनों देशों ने आपसी संबंधो को और अधिक घनिष्ठ बनाने का प्रयास किया, जबकि वर्ष 2016 में, चीन ने फिलीपींस के पक्ष में अदालत के निर्णय को मानने से इनकार कर दिया था।
  • वर्तमान में प्राकृतिक आपदाओं और समुद्री खतरों में तेज़ी से वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री ने वैश्विक समुदाय से चक्रवात, सुनामी और समुद्री प्रदुषण के कहर से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये एकजुट होने का आह्व्हान किया।
  • हिंद महासागर क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के साथ ही राहत कार्यवाई में भी भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है। भारत ने प्रत्येक मोर्चे पर, चाहे वह समुद्री डकैतियों पर अंकुश लगाना हो या वर्ष 20 04 में बॉक्सिंग डे सुनामी के बाद राहत पहुँचाना हो, महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • वर्तमान में पर्यावरणीय खतरों और समुद्री डकैती से निपटने में भारतीय तटरक्षक बल की क्षमता में काफी सुधार हुआ है। एशिया में जहाजों के खिलाफ समुद्री डकैती का मुकाबला करने के लिये क्षेत्रीय सहयोग समझौते के कार्यकारी निदेशक के रूप में भारतीय तटरक्षक के महानिदेशक का चुनाव इस क्षेत्र में भारत के योगदान को दर्शाता है।

ैश्विक समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये पाँच सिद्धांत

  • प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में वैश्विक समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये पाँच सिद्धांतों का प्रस्ताव दिया है –

मुद्री व्यापार के लिये बाधाओं को दूर करना
◆ समुद्री विवादों का अंतर्राष्ट्रीय कानून के आधार पर निपटारा
◆ प्राकृतिक आपदाओं एवं आतंकी संगठनों द्वारा उत्पन्न समस्याओं का सामना वैश्विक समुदाय द्वारा मिलजुल कर किया जाना
◆  पर्यावरण और संसाधनों का संरक्षण
◆ समुद्री संपर्क को प्रोत्साहित करना।

पर्यावरणीय चिंताएँ

  • प्रधानमंत्री ने समुद्री पर्यावरण और उसके संसाधनों के संरक्षण के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए महासागरों को मानव की जीवन रेखा कहा।
  • प्रधानमंत्री ने समुद्र में बढ़ते प्लास्टिक कचरे पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इससे खाद्य शृंखला प्रभावित होती है और लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ता है।

ामुद्रिक क्षेत्र में भारत की चुनौतियाँ

  • भारत की सीमा से लगे होने के कारण हिंद महासागर का भारतीय संदर्भ में विशेष महत्त्व है भारत के लिये इसका आर्थिक के साथ-साथ भू सामरिक महत्त्व भी है।
  • भारत को इस क्षेत्र में समुद्री डकैती, आतंकवाद, मानव तस्करी, ड्रग्स तस्करी, मछुआरों की समस्या, चीन की उपस्थिति सहित कई सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

ुनौतियों के समाधान के लिये भारत के प्रयास

  • हिंद महासागर एवं हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं कानून व्यवस्था को बनाए रखने एवं व्यापार के निर्बाध संचालन के लिये भारत प्रतिबद्ध है इस क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 मेंसागर’ (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फ़ॉर आल इन रीजन) की शुरुआत की गई।
  • इसके अंतर्गत भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ उनकी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं के विकास में सहायता करना है। इससे हिंद महासागर क्षेत्र को अधिक खुला, सहयोगी और अंतर्राष्ट्रीय कानून को मानने वाला क्षेत्र बनाया जा सकेगा।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को रोकने तथा व्यापार-वाणिज्य के निर्बाध संचलन के लिये क्वाड का गठन किया गया है। इस संगठन में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

िष्कर्ष  

हिंद महासागर एवं हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के व्यापक हित हैं। भारत के लिये यह आवश्यक है कि इन क्षेत्रों में कानून व्यवस्था स्थापित हो तथा वाणिज्य-व्यापार का निर्बाध संचलन संभव हो। सुरक्षा परिषद् के माध्यम से समुद्री क्षेत्रों की सुरक्षा को बढ़ावा देने का भारत का यह प्रयास निश्चित रूप से एक स्थिर और स्थायी समुद्री वातावरण की संभावनाओ को बढ़ावा देगा।

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