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पॉस्को अधिनियम (POCSO ACT)

(प्रारंभिक परीक्षा के लिए – पॉस्को अधिनियम)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:2 - केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)

संदर्भ

  • पॉस्को अधिनियम का प्रवर्तन, नीलगिरि क्षेत्र में रहने वाले कई आदिवासियों के लिए समस्याग्रस्त हो गया है, क्योंकि 18 वर्ष से कम आयु के कई व्यक्ति, जो इस कानून के प्रावधानों से अनभिज्ञ है, उन्हे इस अधिनियम के कड़े प्रावधानों के तहत आरोपी बना दिया गया है।
  • गुडालूर और पंडालूर तालुकों के आदिवासी समुदायों के कई व्यक्तियों के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम, बाल विवाह निषेध अधिनियम, और अपहरण की विभिन्न धाराओं के तहत अदालतों में मामले लंबित है।
  • नीलगिरी में रहने वाले कुछ आदिवासी समूहों में बाल विवाह प्रचलित है, जिसके कारण भी अधिकांश आरोपी और पीड़ित कानूनों से परिचित नहीं थे।

पॉस्को अधिनियम

  • इस अधिनियम का प्रमुख उद्देशय, बच्चों को यौन उत्पीड़न, और अश्लील साहित्य के अपराधों से बचाने तथा संबंधित मामलों और घटनाओं के परीक्षण के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना करना है।
  • यह अधिनियम, भारत द्वारा हस्ताक्षरित, संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकारों पर कन्वेंशन, 1989 के प्रावधानों से भी सुसंगत है।
  • विभिन्न अपराधों के लिए सजा प्रावधानों को कठोर बनाने के लिए 2019 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया था।

मुख्य प्रावधान

  • पॉस्को अधिनियम, 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन शोषण, और बाल पोर्नोग्राफी से बचाने के लिए बनाया गया था।
  • इस अधिनियम के तहत, 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति की सहमति भी अप्रासंगिक है।
  • पॉस्को अधिनियम के अनुसार, एक यौन हमले को और अधिक गंभीर माना जाना चाहिए, यदि -
    • प्रताड़ित बच्चा मानसिक रूप से बीमार है।
    • अपराध निम्नलिखित व्यक्तियों में से किसी के द्वारा किया गया है -
      • सशस्त्र बलों या सुरक्षा बलों का सदस्य।
      • एक लोक सेवक।
      • बच्चे के भरोसे या अधिकार की स्थिति में एक व्यक्ति, जैसे परिवार का सदस्य, पुलिस अधिकारी, शिक्षक, या डॉक्टर या अस्पताल का कोई व्यक्ति-प्रबंधन या कर्मचारी, चाहे वह सरकारी हो या निजी।
  • अधिनियम में 2019 के संसोधन द्वारा, अधिक गंभीर यौन हमले के लिए न्यूनतम सजा को दस साल से बढ़ाकर 20 साल और अधिकतम सजा के रूप में मृत्युदंड का प्रावधान कर दिया गया है।
  • अधिनियम में अपराधों और इससे संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान है।
  • अधिनियम में कहा गया है, कि ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए जो जांच प्रक्रिया को यथासंभव बाल-सुलभ बना दें, और अपराध की सूचना देने की तारीख से एक वर्ष के भीतर मामले का निपटारा कर दिया जाए।
  • न्यायिक प्रणाली के हाथों बच्चे के पुन: शिकार से बचने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए गए है, अधिनियम जांच प्रक्रिया के दौरान एक पुलिसकर्मी को बाल रक्षक की भूमिका सौंपता है।
  • अधिनियम ऐसे मामलों की रिपोर्ट करना भी अनिवार्य बनाता है, यह यौन शोषण की रिपोर्ट करने के लिए अपराध से अवगत व्यक्ति का कानूनी कर्तव्य बनाता है। यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो व्यक्ति को छह महीने के कारावास या जुर्माना से दंडित किया जा सकता है।
  • यह उन लोगों के लिए भी सजा का प्रावधान करता है, जो यौन उद्देश्यों के लिए बच्चों की तस्करी करते है।
  • अधिनियम में झूठी शिकायतों या असत्य जानकारी के लिए भी दंड का प्रावधान किया गया है।
  • बाल पोर्नोग्राफी पर अंकुश लगाने के लिए अधिनियम में प्रावधान है, कि जो लोग अश्लील उद्देश्यों के लिए बच्चे का उपयोग करते हैं, उन्हें पांच साल तक की कैद और जुर्माने से दंडित किया जाना चाहिए।
  • अधिनियम की धारा 42 ए में प्रावधान है, कि किसी अन्य कानून के प्रावधानों के साथ असंगति के मामले में, पॉक्सो अधिनियम ऐसे प्रावधानों को ओवरराइड करेगा।
  • अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) को नामित प्राधिकारी बनाया गया है।
  • अधिनियम की धारा 45 के तहत नियम बनाने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है।

अधिनियम की विशेषताएं

  • एक बच्चे को 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति के रूप में परिभाषित करके, यह अधिनियम लिंग के आधार पर बाल यौन शोषण के अपराधियों के बीच भेद नहीं करता है।
  • यह अधिनियम ना केवल यौन शोषण के अपराधी को दंडित करता है, बल्कि उन लोगों को भी दंडित करता है, जो अपराध की रिपोर्ट करने में विफल रहे है।
  • कोई पीड़ित किसी भी समय अपराध की रिपोर्ट कर सकता है, यहां तक ​​कि दुर्व्यवहार किए जाने के कई साल बाद भी।
  • पॉस्को अधिनियम की धारा 23 अधिनियम के तहत स्थापित विशेष अदालतों द्वारा अनुमति के अलावा, यह किसी भी रूप में पीड़ित की पहचान के प्रकटीकरण को प्रतिबंधित करता है।

अधिनियम में जोड़े गए नए नियम, 2020

  • बच्चों को रखने वाली या उनके नियमित संपर्क में आने वाली किसी भी संस्था को बच्चे के संपर्क में आने वाले प्रत्येक कर्मचारी का अनिवार्य रूप से पुलिस सत्यापन कराना होगा।
  • ऐसी संस्था को अपने कर्मचारियों को बाल सुरक्षा और संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए नियमित प्रशिक्षण देना होगा।
  • संस्था को बच्चों के खिलाफ हिंसा को जीरो टॉलरेंस के सिद्धांत पर आधारित बाल संरक्षण नीति अपनानी होगी, इस नीति को उस राज्य सरकार की बाल संरक्षण नीति को प्रतिबिंबित करना चाहिए, जिसमें संगठन संचालित होता है।

पॉस्को अधिनियम के सामान्य सिद्धांत

  • अधिनियम में 12 प्रमुख सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है, जिनका पालन किसी को भी करना है, जिसमें राज्य सरकारें, बाल कल्याण समिति, पुलिस, विशेष न्यायालय, गैर सरकारी संगठन, या परीक्षण के दौरान उपस्थित कोई अन्य पेशेवर शामिल है।
    1. बच्चे को किसी भी तरह के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण और उपेक्षा से बचाना चाहिए।
    2. बच्चे के सर्वोत्तम हित तथा सामंजस्यपूर्ण विकास का ध्यान रखा जाना चाहिये।
    3. बाल पीड़ितों के साथ न्याय प्रक्रिया के दौरान संवेदनशील तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए।
    4. बच्चे के सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई, या सामाजिक अभिविन्यास से परे न्याय प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायपूर्ण होनी चाहिए।
    5. पीड़ित बच्चों के फिर से दुर्व्यवहार होने की संभावना अधिक होती है, इससे बचने के लिए, उन्हें आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
    6. पीड़ित बच्चे या गवाह को कानूनी कार्यवाही के बारे में अच्छी तरह से सूचित किया जाना चाहिए।
    7. प्रत्येक बच्चे को उसे प्रभावित करने वाले मामलों के संबंध में सुनवाई का अधिकार है।
    8. बच्चे को वित्तीय, कानूनी, परामर्श, स्वास्थ्य, सामाजिक और शैक्षिक सेवाएं, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक सेवाएं तथा उपचार के लिए आवश्यक अन्य सेवाएं प्रदान की जानी चाहिए।
    9. प्री-ट्रायल और ट्रायल प्रक्रिया के सभी चरणों में बच्चे की निजता और पहचान की रक्षा की जानी चाहिए।
    10. न्याय प्रक्रिया के दौरान एक बच्चे के लिए माध्यमिक उत्पीड़न या कठिनाइयों को कम किया जाना चाहिए।
    11. एक बाल पीड़ित को न्याय प्रक्रिया से पहले, उसके दौरान और बाद में संरक्षित किया जाना चाहिए।
    12. पीड़ित बच्चे को राहत और पुनर्वास के लिए मुआवजा प्रदान किया जा सकता है।

आगे की राह

सरकार को इस तरह की घटनाओं को अपराध घोषित करने के साथ-साथ,  वर्तमान कानूनों के बारे में जागरूकता बढ़ाने तथा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच प्रदान करने और समुदायों की भौतिक प्रगति सुनिश्चित करने पर अधिक ध्यान देना होगा।

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