New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 14th July 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 14th July 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM

पोर्टुलाका भारत

जयपुर के निकट अरावली पहाड़ियों के चट्टानी एवं अर्ध-शुष्क परिदृश्य में पोर्टुलाका भारत (Portulaca bharat) नामक एक नई फूलदार पौधे की प्रजाति की खोज की गई है।

पोर्टुलाका भारत के बारे में 

  • परिचय : पोर्टुलाका वंश (Genus) से संबंधित ये पौधे अपनी कठोरता, जल-भंडारण ऊतकों एवं चरम पर्यावरण अनुकूलन क्षमता के लिए जाने जाते हैं।
  • नामकरण : पौधे का यह नाम भारत की समृद्ध जैव-विविधता के महत्व के कारण रखा गया है।  
  • शामिल प्रजातियाँ एवं विस्तार : पोर्टुलाका वंश के अंतर्गत विश्व स्तर पर लगभग 153 प्रजातियाँ शामिल हैं जो मुख्यत: उष्णकटिबंधीय व उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। 
    • भारत में वर्तमान में कुल 11 ज्ञात प्रजातियाँ हैं जिनमें चार स्थानिक हैं और अधिकांशत: शुष्क व अर्ध-शुष्क आवासों में वितरित हैं। 

  • खोज स्थल : यह प्रजाति वर्तमान में केवल गलताजी पहाड़ियों (जयपुर) पर पाई गई है जहाँ केवल 10 पौधे देखे गए हैं। 
  • प्रमुख विशेषताएँ
    • पत्तियाँ : विपरीत, संकुचित एवं थोड़ी अवतल (Concave) आकार में 
    • फूल : इसके फूल हल्के पीले रंग के होते हैं जो शीर्ष की ओर क्रीम-सफ़ेद हो जाते हैं।  
    • अन्य : पुंकेसर के तंतुओं पर ग्रंथिल रोम (Glandular Hairs) और मोटी जड़ें होती हैं।
  • IUCN स्थिति : इस पौधे को IUCN रेड लिस्ट में प्रारंभिक रूप से ‘आँकड़ें पर्याप्त नहीं’ (Data Deficient) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 
  • प्रमुख जोखिम : इसकी संकीर्ण स्थानिकता एवं विशिष्ट आवास आवश्यकताओं के कारण यह प्रजाति पर्यावास क्षरण व जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। यह इसकी संवेदनशीलता एवं तत्काल संरक्षण की आवश्यकता को दर्शाता है। 

अरावली में खोज का महत्त्व 

  • अरावली पर्वतमाला पृथ्वी की सबसे पुरानी भूवैज्ञानिक संरचनाओं में से एक है जो कई सूक्ष्म-स्थानिक प्रजातियों एवं पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण आवासों का आश्रय स्थल है। 
  • पोर्टुलाका भारत की खोज इस शुष्क पर्णपाती पारिस्थितिकी तंत्र की छिपी जैव विविधता को उजागर करती है। 
  • शोधकर्ताओं के अनुसार यह खोज अरावली जैसे उपेक्षित शुष्क क्षेत्रों में व्यापक क्षेत्रीय सर्वेक्षण, आवास संरक्षण और बाह्य-स्थाने (ex situ) संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करती है। 

अरावली पर्वत श्रृंखला के बारे में

  • परिचय : अरावली भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला है जिसकी उत्पत्ति आज से लगभग 1.8 अरब वर्ष पूर्व हुई थी।
  • विस्तार : राजस्थान के अमरपुरा हिल्स (गुजरात सीमा के पास) से शुरू होकर हरियाणा एवं दिल्ली तक
  • लंबाई : लगभग 692 किमी.
  • उच्चतम शिखर : माउंट आबू (राजस्थान) में स्थित गुरु शिखर (ऊँचाई लगभग 1,722 मीटर)
  • भौगोलिक विशेषताएँ : यह श्रृंखला पश्चिमी राजस्थान के शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्र और पूर्वी उपजाऊ मैदानों के बीच एक प्राकृतिक जल-विभाजक के रूप में कार्य करती है।
  • पारिस्थितिकीय महत्त्व : अरावली दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा एवं गुजरात में जलवायु संतुलन, वर्षा संरक्षण व भूजल पुनर्भरण में योगदान देती है।
    • यहाँ अनेक प्रकार के देशी वनस्पति एवं जीव-जंतु पाए जाते हैं जिनमें लेपर्ड, नीलगाय, सियार, सरीसृप, कई दुर्लभ पक्षी प्रजातियाँ आदि शामिल हैं।
  • संरक्षण पहल : अरावली ग्रीन वॉल परियोजना का उद्देश्य अरावली पर्वतमाला के क्षरणशील पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार करते हुए उत्तर-पश्चिम भारत में हरित आवरण को सघन बनाना और मरुस्थलीकरण को रोकना है।
    • यह अफ्रीका की ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ परियोजना से प्रेरित है जिसका लक्ष्य साहेल क्षेत्र में मरुस्थलीकरण को रोकना है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR