जयपुर के निकट अरावली पहाड़ियों के चट्टानी एवं अर्ध-शुष्क परिदृश्य में पोर्टुलाका भारत (Portulaca bharat) नामक एक नई फूलदार पौधे की प्रजाति की खोज की गई है।
पोर्टुलाका भारत के बारे में
- परिचय : पोर्टुलाका वंश (Genus) से संबंधित ये पौधे अपनी कठोरता, जल-भंडारण ऊतकों एवं चरम पर्यावरण अनुकूलन क्षमता के लिए जाने जाते हैं।
- नामकरण : पौधे का यह नाम भारत की समृद्ध जैव-विविधता के महत्व के कारण रखा गया है।
- शामिल प्रजातियाँ एवं विस्तार : पोर्टुलाका वंश के अंतर्गत विश्व स्तर पर लगभग 153 प्रजातियाँ शामिल हैं जो मुख्यत: उष्णकटिबंधीय व उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
- भारत में वर्तमान में कुल 11 ज्ञात प्रजातियाँ हैं जिनमें चार स्थानिक हैं और अधिकांशत: शुष्क व अर्ध-शुष्क आवासों में वितरित हैं।

- खोज स्थल : यह प्रजाति वर्तमान में केवल गलताजी पहाड़ियों (जयपुर) पर पाई गई है जहाँ केवल 10 पौधे देखे गए हैं।
- प्रमुख विशेषताएँ
- पत्तियाँ : विपरीत, संकुचित एवं थोड़ी अवतल (Concave) आकार में
- फूल : इसके फूल हल्के पीले रंग के होते हैं जो शीर्ष की ओर क्रीम-सफ़ेद हो जाते हैं।
- अन्य : पुंकेसर के तंतुओं पर ग्रंथिल रोम (Glandular Hairs) और मोटी जड़ें होती हैं।
- IUCN स्थिति : इस पौधे को IUCN रेड लिस्ट में प्रारंभिक रूप से ‘आँकड़ें पर्याप्त नहीं’ (Data Deficient) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- प्रमुख जोखिम : इसकी संकीर्ण स्थानिकता एवं विशिष्ट आवास आवश्यकताओं के कारण यह प्रजाति पर्यावास क्षरण व जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। यह इसकी संवेदनशीलता एवं तत्काल संरक्षण की आवश्यकता को दर्शाता है।
अरावली में खोज का महत्त्व
- अरावली पर्वतमाला पृथ्वी की सबसे पुरानी भूवैज्ञानिक संरचनाओं में से एक है जो कई सूक्ष्म-स्थानिक प्रजातियों एवं पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण आवासों का आश्रय स्थल है।
- पोर्टुलाका भारत की खोज इस शुष्क पर्णपाती पारिस्थितिकी तंत्र की छिपी जैव विविधता को उजागर करती है।
- शोधकर्ताओं के अनुसार यह खोज अरावली जैसे उपेक्षित शुष्क क्षेत्रों में व्यापक क्षेत्रीय सर्वेक्षण, आवास संरक्षण और बाह्य-स्थाने (ex situ) संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
अरावली पर्वत श्रृंखला के बारे में
- परिचय : अरावली भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला है जिसकी उत्पत्ति आज से लगभग 1.8 अरब वर्ष पूर्व हुई थी।
- विस्तार : राजस्थान के अमरपुरा हिल्स (गुजरात सीमा के पास) से शुरू होकर हरियाणा एवं दिल्ली तक
- लंबाई : लगभग 692 किमी.
- उच्चतम शिखर : माउंट आबू (राजस्थान) में स्थित गुरु शिखर (ऊँचाई लगभग 1,722 मीटर)
- भौगोलिक विशेषताएँ : यह श्रृंखला पश्चिमी राजस्थान के शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्र और पूर्वी उपजाऊ मैदानों के बीच एक प्राकृतिक जल-विभाजक के रूप में कार्य करती है।
- पारिस्थितिकीय महत्त्व : अरावली दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा एवं गुजरात में जलवायु संतुलन, वर्षा संरक्षण व भूजल पुनर्भरण में योगदान देती है।
- यहाँ अनेक प्रकार के देशी वनस्पति एवं जीव-जंतु पाए जाते हैं जिनमें लेपर्ड, नीलगाय, सियार, सरीसृप, कई दुर्लभ पक्षी प्रजातियाँ आदि शामिल हैं।
- संरक्षण पहल : अरावली ग्रीन वॉल परियोजना का उद्देश्य अरावली पर्वतमाला के क्षरणशील पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार करते हुए उत्तर-पश्चिम भारत में हरित आवरण को सघन बनाना और मरुस्थलीकरण को रोकना है।
- यह अफ्रीका की ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ परियोजना से प्रेरित है जिसका लक्ष्य साहेल क्षेत्र में मरुस्थलीकरण को रोकना है।
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