New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM Festive Month Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 30th Oct., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM Festive Month Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 30th Oct., 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM

औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने की राज्यों की शक्ति

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ।)

संदर्भ 

नौ न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने 8:1 बहुमत के फैसले में औद्योगिक शराब को विनियमित करने के राज्यों के अधिकार को बरकरार रखा।

क्या है औद्योगिक अल्कोहल

  • औद्योगिक अल्कोहल अनिवार्य रूप से अशुद्ध अल्कोहल है जिसका उपयोग औद्योगिक विलायक के रूप में किया जाता है।
  • अनाज, फल, गुड़ आदि को किण्वित करके निर्मित इथेनॉल में बेंजीन, पाइरीडीन, गैसोलीन आदि जैसे रसायनों को मिलाकर औद्योगिक अल्कोहल का निर्माण किया जाता है। 
    • यह अल्कोहल मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त होता है और इसकी कीमत काफी कम होती है।

उपयोग 

  • उद्योग इस अशुद्ध अल्कोहल का उपयोग फार्मास्यूटिकल्स, परफ्यूम, कॉस्मेटिक्स और सफाई करने वाले तरल पदार्थों सहित कई उत्पादों के निर्माण के लिए करते हैं।
  • इसी औद्योगिक या विकृत अल्कोहल का उपयोग कभी-कभी अवैध शराब, सस्ते और खतरनाक नशीले पदार्थ बनाने के लिए किया जाता है। 
    • जिनके सेवन से अंधापन और मृत्यु सहित गंभीर जोखिम होते हैं।

राज्यों के तर्क 

  • कई राज्यों ने औद्योगिक शराब पर केंद्र के विशेष नियंत्रण की स्थिति को चुनौती दी थी।
  • नौ न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ में संदर्भित प्राथमिक प्रश्नों में यह शामिल था कि  : 
    • क्या संघ सूची में प्रविष्टि 52 राज्य सूची की प्रविष्टि 8 को ओवरराइड करती है?
    •  क्या राज्य सूची की प्रविष्टि 8 में ‘मादक शराब’ की अभिव्यक्ति में पीने योग्य शराब के अलावा अन्य शराब भी शामिल है।
  • राज्यों ने तर्क दिया कि औद्योगिक अल्कोहल का दुरुपयोग अवैध रूप से उपभोग योग्य अल्कोहल के उत्पादन के लिए किया जा सकता है, जिसके लिए उन्हें कानून बनाने की आवश्यकता पड़ी।
  • इस मामले का मूल संदर्भ शराब उत्पादन और इस पर कर लगाने की शक्ति को लेकर संघ और राज्यों के बीच टकराव था। 

केंद्र सरकार का पक्ष 

  • केंद्र ने दावा किया था कि औद्योगिक शराब एक 'उद्योग' है जिसे संसदीय कानून, उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम 1951 के तहत सार्वजनिक हित में केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है। 
    • ऐसा उद्योग संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ सूची की प्रविष्टि 52 के अंतर्गत शामिल है।
    • इसमें उन उद्योगों का उल्लेख किया गया है जिनका नियंत्रण संघ द्वारा संसदीय विधि के माध्यम से सार्वजनिक हित में समीचीन घोषित किया गया है।
  • केंद्र ने तर्क दिया कि औद्योगिक अल्कोहल के विनियमन के संदर्भ में केंद्र का एकाधिकार है और राज्य इस विषय को विनियमित नहीं कर सकते।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India : CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने माना कि संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची की प्रविष्टि 8 में 'मादक शराब' वाक्यांश के दायरे में औद्योगिक शराब भी शामिल होगी।
    • प्रविष्टि 8 राज्यों को मादक शराब के उत्पादन, निर्माण, कब्जे, परिवहन, खरीद और बिक्री को विनियमित करने की शक्ति देती है।
  • राज्य सूची की प्रविष्टि 8 सार्वजनिक हित पर आधारित है। यह निर्णय प्रविष्टि के दायरे को पीने योग्य शराब से परे बढ़ाने का प्रयास करता है। 
    • प्रविष्टि में 'मादक' वाक्यांश और अन्य संगत शब्दों के उपयोग से यह अनुमान लगाया जा सकता है। 
  • प्रविष्टि 8 में शामिल शराब स्वाभाविक रूप से एक हानिकारक पदार्थ है जिसका दुरुपयोग बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने के लिए किया जा सकता है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने माना कि प्रविष्टि 8 राज्य सूची में उद्योग-आधारित और उत्पाद-आधारित दोनों प्रविष्टि है। 
    • इसमें कच्चे माल से लेकर 'मादक शराब' के सेवन तक प्रत्येक चीज का विनियमन शामिल है। 
  • मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने निर्णय दिया कि संसद संघ सूची की प्रविष्टि 52 के तहत घोषणा जारी करके पूरे उद्योग के क्षेत्र पर कब्जा नहीं कर सकती है।
  • मुख्य न्यायाधीश के अनुसार प्रविष्टि 8 में 'मादक शराब' शब्द को यथासंभव व्यापक परिभाषा दी जानी चाहिए। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार जब सातवीं अनुसूची में दो प्रविष्टियाँ ‘अतिव्यापी’ हो तब दो व्याख्याएँ संभव हैं: 
    • राज्यों को मादक शराब को विनियमित करने की शक्ति दी जा सकती है।  
    • संसद को संघ सूची की प्रविष्टि 52 के तहत कानून पारित करके मादक शराब उद्योग पर पूर्ण नियंत्रण लेने की अनुमति दी जा सकती है।
    • उपरोक्त के संबंध में संवैधानिक पीठ ने माना कि जब प्रविष्टियों की दो संभावित व्याख्याएँ होती हैं, तो न्यायालय को वह चुनना चाहिए जो संघीय संतुलन बनाए रखे।

असहमति

  • न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने पीठ की राय पर असहमति व्यक्त करते हुए टिपण्णी की कि ‘औद्योगिक शराब’ को प्रविष्टि 8 में ‘मादक शराब’ के दायरे में नहीं लाया जा सकता। 
    • उनके अनुसार राज्यों के पास औद्योगिक शराब या विकृत शराब को विनियमित करने की विधायी क्षमता नहीं है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का प्रभाव

  • पेय योग्य शराब पर लगाया जाने वाला उत्पाद शुल्क अधिकांश राज्यों द्वारा अर्जित राजस्व का एक प्रमुख घटक है। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय राज्यों के खजाने में इज़ाफा करेगा।
    • राज्य सरकारें प्राय: आय बढ़ाने के लिए शराब की खपत पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क जोड़ती हैं। 
    • उदाहरण के लिए वर्ष 2023 में कर्नाटक ने भारतीय निर्मित शराब (IML) पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (AED) में 20% की वृद्धि की।
  • शराब से राजस्व उत्पन्न करने की राज्यों की क्षमता पर प्रभाव के अलावा यह फैसला उद्योगों पर नियंत्रण के मामले में केंद्र-राज्य संबंधों पर भी स्पष्टता प्रदान करता है। 
  • यह निर्णय केंद्र को समग्र रूप से 'उद्योगों' के नियंत्रण के संबंध में व्यापक शक्तियाँ देने के बावज़ूद राज्यों को राज्य सूची में विषयों पर कानून पारित करने की शक्ति की पुष्टि करता है।
  • इस फैसले ने सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के 1990 के फैसले को भी खारिज कर दिया। 
    • इस निर्णय में कहा गया था कि "नशीली शराब" केवल पीने योग्य शराब को संदर्भित करती है और इसलिए राज्य औद्योगिक शराब पर कर नहीं लगा सकते।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X