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प्री-एक्लेमप्सिया

प्रत्येक वर्ष 22 मई को ‘विश्व प्री-एक्लेमप्सिया दिवस’ और मई माह को ‘प्री-एक्लेमप्सिया रोकथाम माह’ के रूप में मनाया जाता है। 

प्री-एक्लेमप्सिया (Pre-eclampsia) के बारे में 

  • क्या है : महिलाओं में उच्च रक्तचाप एवं मूत्र में उच्च प्रोटीन स्तर जैसी गर्भावस्था जटिलता 
    • ये जटिलता गुर्दे (प्रोटीन्यूरिया) या अंग क्षति के लक्षणों का संकेत है। 
  • अवधि : गर्भावस्था के बीसवें सप्ताह के बाद शुरू और प्रसवोत्तर छठे सप्ताह तक ठीक।
    • बच्चे के जन्म के बाद भी प्रीक्लेम्पसिया विकसित हो सकता है। इस स्थिति को प्रसवोत्तर प्रीक्लेम्पसिया कहा जाता है।
  • कारण : अस्पष्ट  
    • हालाँकि, ऐसा माना जाता है कि यह रक्त वाहिकाओं में समस्या के कारण प्लेसेंटा के ठीक से विकसित न होने से होता है। 
  • प्रमुख लक्षण : थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (रक्त में प्लेटलेट्स स्तर में कमी), लिवर एंजाइमों में वृद्धि (लिवर की समस्याओं का संकेत), गंभीर सिरदर्द, दृष्टि से संबंधित समस्याएं। 
  • उपचार : केवल बच्चे के जन्म के बाद ही ठीक करना संभव।

क्या आप जानते हैं?

  • स्वस्थ गर्भधारण के दौरान वजन बढ़ना एवं सूजन (एडिमा) सामान्य है। हालाँकि, अचानक वजन बढ़ना या एडिमा का अचानक प्रकट होना (विशेष रूप से आपके चेहरे और हाथों में) प्रीक्लेम्पसिया का संकेत हो सकता है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप संबंधी विकार मातृ मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।
    • प्रसवकालीन मृत्यु दर प्रति 1,000 गर्भधारण पर 32 है जबकि 1,000 जीवित जन्मों पर नवजात मृत्यु दर 25 है।
  • इंडियन रेडियोलॉजिकल एंड इमेजिंग एसोसिएशन (IRIA) ने अपने प्रमुख कार्यक्रम ‘समरक्षण’ (Samrakshan) के माध्यम से भारत के सभी जिलों में सुरक्षित मातृत्व की दिशा में काम कर रहा है।

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