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प्रसाद पर्यंत का सिद्धांत

चर्चा में क्यों 

हाल ही में, केरल के राज्यपाल ने राज्य मंत्रिमंडल के एक सदस्य को गैर-जिम्मेदारीपूर्ण टिप्पणी के लिये बर्खास्त करने की माँग की है, जो कि राज्यपाल के प्रसाद पर्यंत पद धारण करते हैं। 

क्या है प्रसाद पर्यंत का सिद्धांत 

  • यह ब्रिटिश कॉमन लॉ से ली गई एक अवधारणा है, जिसके तहत ताज (Crown) अपने अधीन नियोजित किसी भी व्यक्ति को किसी भी समय उसकी सेवाओं से विमुक्त कर सकता है। 
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 310 में प्रावधान है कि प्रत्येक व्यक्ति, जो रक्षा सेवा या संघ की सिविल सेवा या अखिल भारतीय सेवा का सदस्य है, राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद धारण करेंगे और प्रत्येक व्यक्ति, जो राज्य की सिविल सेवा का सदस्य है, राज्यपाल के प्रसाद पर्यंत पद धारण करेंगे।  
    • हालाँकि, अनुच्छेद 311 संघ या राज्य के अधीन नियुक्त किसी सिविल सेवक को पदच्युत करने पर प्रतिबंध लगाता है। यह सिविल सेवकों को आरोपों पर सुनवाई के लिये युक्तियुक्त अवसर प्रदान करता है। 
    • यदि आरोपों की जाँच करना व्यावहारिक नहीं है, या राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में ऐसा करना उचित नहीं है, तो जाँच को समाप्त करने का भी प्रावधान है। 
  • अनुच्छेद 164 के तहत राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की नियुक्ति की जाती है। इस अनुच्छेद के अनुसार अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाती है जो राज्यपाल के प्रसाद पर्यंत पद धारण करते हैं। 
  • विदित है कि राज्य के मंत्रियों को केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर नियुक्त किया जाता है, अतः संदर्भित 'प्रसाद पर्यंत' का अर्थ मुख्यमंत्री द्वारा किसी मंत्री को बर्खास्त करने के अधिकार से है, न कि राज्यपाल के अधिकार से। स्पष्ट है कि किसी राज्य का राज्यपाल बिना मुख्यमंत्री की सलाह के किसी मंत्री को नहीं हटा सकता है।
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