New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 6th June 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 6th June 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM

हाइब्रिड फसलों के दौर में देशज किस्म के बीजों का संरक्षण

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की समसामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3, प्रौद्योगिकी, विविधता, पर्यावरण ; मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न)

संदर्भ

  • हाल ही में, महाराष्ट्र की आदिवासी महिला श्रीमती राहीबाई पोपरे को ग्रामीण स्तर पर 154 किस्म की देशज बीज प्रजातियों (Landraces) के संरक्षण के लिये पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है इन्हें ‘बीज माता’ या ‘सीड मदर’ के नाम से भी जाना जाता है
  • इनके सराहनीय कार्यों से अकादमिक स्तर पर देशज बनाम संकर प्रजाति की फसलों के विमर्श को फिर से बल मिला है।

 ‘लैंड्रेस’ का अभिप्राय

  • यह शब्द प्राकृतिक रूप से उगाई जाने वाली फसलों की विभिन्न प्रजातियों के बीजों को संदर्भित करता है, इन फसलों को संकर प्रजाति तथा जी.एम. प्रजाति के विपरीत विशुद्ध प्राकृतिक चयन प्रक्रिया द्वारा उगाया जाता है।
  • विदित है कि, बीजों की संकर प्रजातियों को प्राप्त करने के लिये चयनात्मक प्रजनन तकनीक का प्रयोग किया जाता है तथा जी.एम. प्रजाति की फसलों को आनुवंशिक अभियांत्रिकी (निश्चित विशेषता व्यक्त करने वाली तकनीक) के माध्यम से उगाया किया जाता है।

हाइब्रिड और जी. एम. फसलों के संबंध में चिंताएँ

  • धान और गेहूँ के चयनात्मक प्रजनन ने वैज्ञानिकों को ऐसी किस्में विकसित करने की अनुमति दी है जिससे उच्च उत्पादकता के साथ अन्य वांछित गुणों को प्राप्त किया जा सकता है। परिणामस्वरूप, कई वर्षों से किसान अधिक लाभ अर्जन के उद्देश्य से इन किस्मों की खेती कर रहे हैं। साथ ही, ऐसी उन्नत फसलों पर किसानों की निर्भरता भी  बढ़ी है।
  • बैफ (BAIF) डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन, पुणे का मानना है कि कई दशकों से चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से फसल सुधार ने अधिकांश फसलों के आनुवंशिक आधार को संकुचित कर दिया है।
  • गौरतलब है की जैव विविधता फसलों को चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने के लिये लक्षण विकास का प्राकृतिक तंत्र सुलभ कराती हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर मानवीय हस्तक्षेप द्वारा प्रजनन के कारण अधिकांश व्यावसायिक फसलों में अनुकूलन की क्षमता नष्ट हो रही है जो कि चिंता का विषय है।
  • जलवायु परिवर्तन के खतरों के बीच, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के सामने एक चुनौती ऐसी किस्मों को विकसित करने की है जो अजैविक और जैविक संकटों का सामना कर सकें।

‘लैंड्रेस’ के संभावित लाभ

  • चूँकि, आनुवंशिक विविधता प्रकृति के अस्तित्व का आधार है, इसलिये वैज्ञानिकों का मानना है कि फसल का जीन पूल जितना व्यापक होगा, किसी विशेषता को विकसित करने की संभावना भी उतनी ही अधिक होगी, जो चरम जलवायुवीय घटनाओं से बचने में फसल की मदद कर सकता है।
  • बैफ के अनुसार, ‘लैंड्रेस’ में हाइब्रिड चावल की तुलना में जलवायु प्रतिरोधकता अधिक होती है और यह बाढ़ या सूखे को बेहतर ढंग से झेलने में सक्षम है।
  • एक आम गलत धारणा यह है कि संकर प्रजातियों की तुलना में ‘लैंड्रेस’ की पैदावार कम होती है, जबकि ‘लैंड्रेस’ उचित कृषि पद्धतियों द्वारा कम लागत के साथ बेहतर उपज दे सकती है।

सामुदायिक नेतृत्व कार्यक्रम

  • वर्तमान समय में ‘लैंड्रेस’ कुछ ही ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में जीवित हैं, वे भी उचित संरक्षण के अभाव में समाप्त हो रही हैं। इस संदर्भ में बैफ ने वर्ष 2008 में ‘लैंड्रेस’ के संरक्षण के लिये एक ‘सामुदायिक नेतृत्व कार्यक्रम’ की शुरुआत की है।
  • ‘लैंड्रेस’ को उगाने कि विधि क्या हो और इन बीजों का कैसे संरक्षित किया जाए इस बारे में पारंपरिक ज्ञान धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है। इसलिये ‘बैफ’ द्वारा शुरू किया गया कार्यक्रम इस समृद्ध जैव विविधता को बचाने में स्थानिक समुदायों की मदद ले रहा है।
  • ‘बैफ’ द्वारा वर्ष 2008 में इस कार्यक्रम की शुरुआत पालघर ज़िले के जवाहर तालुका से की गई थी; वर्तमान में यह कार्यक्रम महाराष्ट्र के 94 गाँवों के साथ उत्तराखंड और गुजरात तक संचालित है।
  • इसका उद्देश्य उपलब्ध जर्मप्लाज़्म की पहचान करना और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से बीज बैंक बनाना है। विगत वर्षों के दौरान इस कार्यक्रम ने विभिन्न फसलों के 595 नमूनों (सैंपल) का दस्तावेजीकरण किया है और खाद्य फसलों के लिये पाँच बीज बैंक विकसित किये हैं। 
  • साथ ही, 259 फसल किस्मों का मोर्फोलॉजिकल (रूपात्मक) अध्ययन और 112 फसल किस्मों का आणविक अध्ययन भी किया गया है।
  • कार्यक्रम ने ‘नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्स’ में धान, फिंगर बाजरा, और छोटे आकार के बाजरे के 150 ‘लैंड्रेस’ जमा किये हैं, साथ ही, सोरघम की पाँच किस्मों के लिये पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त किया है। इस कार्यक्रम ने 5,000 बीज बचतकर्ताओं का एक नेटवर्क भी विकसित किया है।

सीड मदर की भूमिका

  • पोपरे कलसुबाई परिसर बियाने संवर्द्धन सामाजिक संस्था ‘अकोले’ का हिस्सा रही हैं जो ‘बैफ’ के द्वारा समर्थित है। अकोले के आदिवासी प्रखंड में कार्यरत यह संस्था चावल, छोटा बाजरा, जलकुंभी की फलियों, बाजरा और स्थानीय सब्जियों की ‘लैंड्रेस’ को बचाने के प्रयास में सबसे अग्रणी रही है।
  • संस्था ने 40 फसलों की 114 प्रजातियों को संरक्षित किया है। इसके लिये संस्था को ‘नेशनल प्लांट जीनोम सेवियर कम्युनिटी अवॉर्ड’ से नवाजा गया है।

आगे का रास्ता

  • ‘लैंड्रेस’ जलवायु अनुकूल कृषि में भूमिका निभाते हुए, पोषक तत्त्वों की कमियों को दुरुस्त करने में योगदान दे सकते हैं।
  • ध्यातव्य है कि, कई ‘लैंड्रेस’ ऐसी हैं जो पोषक तत्त्वों में उन्नत किस्मों से अधिक परिपूर्ण हैं।
  • ‘लैंड्रेस’ के जर्मप्लाज़्म के बारे में अनुसंधान कार्य को और अधिक विस्तार देने की आवश्यकता है, इस संदर्भ में सरकार की भूमिका विशेष महत्त्व रखती है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR