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पिछड़ों का उत्थान : क्या कहता है संविधान !

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन – 2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ

मराठा आरक्षण को असंवैधानिक घोषित करते हुए उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों (Socially and Educationally Backward ClassesSEBC) को चिह्नित करने तथा उन्हें आरक्षण लाभ का देने के लिये केंद्रीय सूची में शामिल करने का ‘एकमात्र अधिकार’ केंद्र सरकार के पास है। 

102वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2018

  • अनुच्छेद 338ख (1) के अनुसार, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिये एक आयोग होगा, जो ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ के नाम से जाना जाएगा। इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होंगे।
  • आयोग का कर्तव्य होगा कि वह सामजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिये संविधान या किसी अन्य कानून या सरकार के किसी आदेश के अधीन उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन पर निगरानी रखे तथा ऐसे रक्षोपायों के क्रियान्वयन का मूल्यांकन करे।
  • अनुच्छेद 342क (1) के अनुसार, राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में और जहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श के करने के पश्चात् लोक अधिसूचना द्वारा, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े ऐसे वर्गों को विर्निदिष्ट कर सकेगा, जिन्हें संविधान के प्रयोजनों के लिये, यथास्थिति, उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ा वर्ग समझा जाएगा।
  • अनुच्छेद 342क (2) के अनुसार, संसद विधि द्वारा, किसी सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को केंद्रीय सूची में शामिल कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित (Exclude) कर सकेगी। 

उच्चतम न्यायालय का निर्णय

  • उच्चतम ने 3:2 के बहुमत से निर्णय दिया कि ‘102वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2018’ के पारित होने के बाद राज्यों के पास एस.ई.बी.सी.को चिह्नित करने की कोई शक्ति नहीं है।
  • न्यायालय ने अनुच्छेद 342क की व्याख्या करते हुए कहा कि इस उपबंध से आशय है कि केवल राष्ट्रपति ही प्रत्येक राज्य के संबंध में पिछड़े वर्गों की सूची प्रकाशित कर सकता है तथा केवल संसद ही इन्हें सम्मिलित या अपवर्जित कर सकती है।
  • अनुच्छेद 342क का प्रारूप ठीक उसी भाषा में तैयार किया गया है, जो अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों की सूची से संबंधित है। इसलिये न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि संसद का इरादा भी पिछड़े वर्गों के संबंध में इसी प्रक्रिया को ‘दोहराने’ का ही है।
  • न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 342क में शामिल परिभाषा संबंधी उपबंध, जिसमें कहा गया है कि यह ‘संविधान के प्रयोजनों’ के लिये है। अर्थात् इसे संवैधानिक उपबंधों को क्रियान्वित करने के लिये अंतःस्थापित किया गया है, जिसमें अनुच्छेद 15(4) तथा 16(4) के प्रावधान शामिल है। ध्यातव्य है कि ये अनुच्छेद पिछड़े वर्गों के विशेष प्रावधानों से संबंधित है, जिन्हें राज्यों द्वारा भी क्रियान्वित किया जाता है।
  • गौरतलब है कि मराठा आरक्षण को विभिन्न आधारों पर बंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। जिसमें एक आधार यह भी था कि राज्य के अधिनियम में मराठा से संबंधित एक एस.ई.बी.सी. नामक श्रेणी बनाई गई थी। इसी आधार पर मराठा आरक्षण को न्यायालय में चुनौती दी गई थी कि 102 वाँ संविधान संशोधन अस्तित्व में आने के पश्चात् राज्य विधायिका के पास किसी भी नए वर्ग को पिछड़े वर्ग के रूप में चिह्नित करने की शक्ति नहीं है।
  • इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका के माध्यम से 102वें संविधान संशोधन अधिनियम की वैधता को भी चुनौती दी गई थी। इस याचिका में कहा गया था कि इस यह संशोधन संघीय ढाँचे का उल्लंघन करता है क्योंकि यह राज्यों को उनकी शक्तियों से वंचित करता है। हालाँकि उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में इस संशोधन अधिनियम को विधि घोषित किया। 

निष्कर्ष

  • उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह प्रत्येक राज्य और संघ राज्यक्षेत्र के लिये एस.ई.बी.सी. सूची अधिसूचित करे। जब तक यह कार्य पूर्ण नहीं होता, तब तक राज्य सूची का प्रयोग किया जाए।
  • वर्तमान में सारी ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार पर है, या तो वह उक्त निर्णय का अनुपालन करे या एक संशोधन के माध्यम से इस स्थिति को स्पष्ट करे कि उसका उद्देश्य राज्यों की शक्तियों को कम करना नहीं है।
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