(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।) |
संदर्भ
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एच.एन. नागमोहन दास समिति ने कर्नाटक में अनुसूचित जातियों (SC) के बीच आंतरिक आरक्षण पर अपनी बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसका उद्देश्य SC वर्ग के भीतर आरक्षण लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करना है।
कर्नाटक में SC समुदायों के भीतर वर्गीकरण
- कर्नाटक में 101 अनुसूचित जातियाँ हैं, जिन्हें मोटे तौर पर निम्न समूहों में बाँटा गया है:
- दक्षिणपंथी समुदाय (जैसे, होलेया)
- वामपंथी समुदाय (जैसे, मडिगा)
- इसके अतिरिक्त अन्य छोटे उप-समूह भी विद्यमान हैं।
- ऐतिहासिक रूप से, SC आरक्षण (15%) के लाभों पर कुछ उप-जातियों का ही प्रभुत्व रहा है, जिसके कारण SC के भीतर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए आंतरिक आरक्षण की माँग उठती रही है।
एच.एन. नागमोहन दास समिति का गठन
- वर्ष 2023 में कर्नाटक सरकार ने न्यायमूर्ति एच.एन. नागमोहन दास के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था, जिसका उद्देश्य निम्नलिखित का अध्ययन करना था:
- विभिन्न अनुसूचित जाति उप-समूहों के सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ेपन की सीमा
- 17% अनुसूचित जाति कोटे का समान आवंटन
- यह सिफारिश सर्वोच्च न्यायालय के 1 अगस्त, 2024 के फैसले के आधार पर की गई थी, जिसमें अनुच्छेद 14 के तहत इसकी संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए आंतरिक आरक्षण के लिए रास्ता साफ कर दिया गया था।
समिति की प्रमुख सिफारिशें
- पाँच प्रस्तावित श्रेणियाँ
- समिति ने जातिगत आधार पर पिछड़ेपन के आधार पर पाँच श्रेणियाँ प्रस्तावित की हैं और 17% आरक्षण को उनमें बाँट दिया गया है।
- यह वर्गीकरण वैज्ञानिक है और मंडल आयोग की रिपोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों पर आधारित है।
- आरक्षण को अधिक निष्पक्ष रूप से वितरित करने के लिए अनुसूचित जाति कोटे को आंतरिक श्रेणियों में उप-विभाजित करना
- विभिन्न अनुसूचित जाति समूहों के बीच ऐतिहासिक अन्याय, गरीबी, शिक्षा के स्तर और सरकारी नौकरियों तक पहुँच पर ध्यान केंद्रित करना
- वंचन के स्तर के आधार पर उप-समूहों को वर्गीकृत करने के लिए डाटा-आधारित दृष्टिकोण
रिपोर्ट की प्रासंगिकता
- अनुसूचित जाति के भीतर समानता को बढ़ावा देते हुए यह सुनिश्चित करता है कि अनुसूचित जातियों के भीतर हाशिए पर पड़ी उप-जातियाँ पीछे न छूटें।
- न्यायिक निर्देशों का पालन: अनुसूचित जातियों के भीतर आंतरिक वर्गीकरण की अनुमति देने वाले सर्वोच्च न्यायालय के पिछले फैसलों पर आधारित (उदाहरण के लिए, ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह, 2020 में पुनर्निर्धारित)।
- राजनीतिक संवेदनशीलता: चुनावी गतिशीलता को प्रभावित करने की संभावना, विशेष रूप से जाति-आधारित लामबंदी वाले दक्षिणी राज्यों में।
- प्रशासनिक जटिलता: कार्यान्वयन के लिए विधायी कार्रवाई की आवश्यकता होगी, यदि इसे चुनौती दी जाती है तो संभवतः एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी।
पूर्वे में गठित सदाशिव आयोग की सिफारिशें
- ए.जे. सदाशिव आयोग का गठन वर्ष 2005 में हुआ था और इसने वर्ष 2012 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
- सदाशिव आयोग ने वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों पर ज़्यादा भरोसा किया था, लेकिन दलित अधिकार समूह इन आँकड़ों से सहमत नहीं थे क्योंकि जनगणना में जाति-विशिष्ट आँकड़े शामिल नहीं होते। अंततः, तत्कालीन सरकार ने रिपोर्ट को बंद कर दिया।
- इस वर्गीकरण पर दलित दक्षिणपंथी और अन्य लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसी दौरान सरकार ने वर्ष 2022 में एच.एन. नागमोहन दास आयोग की एक अन्य रिपोर्ट के आधार पर पर अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण 15% से बढ़ाकर 17% और अनुसूचित जनजातियों के लिए 3% से 7% कर दिया।
- इसके साथ ही तत्कालीन सरकार ने 17% आरक्षण को चार श्रेणियों बाँट दिया :
- दलित दक्षिणपंथी (5.5%)
- दलित वामपंथी (6%)
- लम्बानी, भोवी, कोरचा और कोरमा (4.5%)
- अन्य (1%)