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उत्तर प्रदेश के सात उत्पादों को मिला जीआई टैग

प्रारम्भिक परीक्षा: भौगोलिक संकेतक
मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-3: बौद्धिक सम्पदा अधिकारों से सम्बंधित विषय

चर्चा में क्यों?
  • चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री कार्यालय द्वारा उत्तर प्रदेश के सात विभिन्न उत्पादों को जीआई टैग दिया गया है।

किन्हें मिला है जीआई टैग? 

1.अमरोहा ढोलक :  अमरोहा ढोलक प्राकृतिक लकड़ी से बना एक वाद्ययंत्र है। इसे बनाने के लिए आम, कटहल और सागौन की लकड़ी को प्राथमिकता दी जाती है। इस ढोलक को बनाने के लिए जानवरों की खाल, ज्यादातर बकरी की खाल का उपयोग किया जाता है।

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2.महोबा गौरा पत्थर हस्तशिल्प :  महोबा गौरा पत्थर हस्तशिल्प एक पत्थर शिल्प है। यह बहुत ही अनोखा और मुलायम पत्थर है जिसका वैज्ञानिक नाम 'पाइरो फ़्लाइट स्टोन' है। गौरा पत्थर शिल्प चमकदार सफेद रंग के पत्थर से बना है जो मुख्य रूप से इस क्षेत्र में पाया जाता है। इसका उपयोग शिल्प वस्तुएँ बनाने में किया जाता है।

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3.मैनपुरी तारकशी :  तारकशी, मैनपुरी की एक लोकप्रिय कला है, जो मुख्य रूप से लकड़ी पर पीतल के तार से जड़ा हुआ काम है। इसका उपयोग मुख्य रूप से खड़ाऊ (लकड़ी के सैंडल) के लिए किया जाता था, जो हर घर की एक आवश्यकता थी, क्योंकि चमड़े को अशुद्ध माना जाता था।

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4.संभल हॉर्न क्राफ्ट : संभल हॉर्न क्राफ्ट के लिए कच्चा माल मृत जानवरों से प्राप्त किया जाता है। ये हस्तनिर्मित होते हैं।

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5.बागपत होम फर्निशिंग्स :  बागपत होम फर्निशिंग्स बागपत और मेरठ में अपने विशेष हथकरघा होम फर्निशिंग उत्पाद और पीढ़ियों से सूती धागे से बनने वाले कपड़ों के लिए प्रसिद्ध हैं, और हथकरघा बुनाई प्रक्रिया में केवल सूती धागे का उपयोग किया जाता है।

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6.बाराबंकी हैंडलूम प्रोडक्ट : बाराबंकी हथकरघा उत्पाद, बाराबंकी और आसपास के क्षेत्र में लगभग 50,000 बुनकर और 20,000 करघे हैं।

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7.कालपी हैंडमेड पेपर : कालपी हस्तनिर्मित कागज के ऐतिहासिक विवरण से पता चलता है कि गांधीवादी मुन्नालाल 'खद्दरी' ने 1940 के दशक में औपचारिक रूप से इस शिल्प को यहां पेश किया था, हालांकि कई स्थानीय लोगों के अनुसार कागज बनाने का इतिहास इससे ज्यादा पुराना है। कालपी में हस्तनिर्मित कागज निर्माण का एक विशाल क्लस्टर है, जिसमें 5,000 से अधिक कारीगर और लगभग 200 इकाइयाँ शामिल हैं।

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भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication-GI)

  • भौगोलिक संकेतक मुख्यतया कोई प्राकृतिक, कृषि या निर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प या औद्योगिक) है, जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होता है।
  • आमतौर पर ऐसा नाम गुणवत्ता तथा विशिष्टता का आश्वासन होता है, जो मूल रूप से इसके उत्पत्ति के स्थानीय स्रोत हेतु उत्तरदायी होता है।
  • एक बार भौगोलिक संकेतक संरक्षण प्रदान करने के बाद कोई भी अन्य निर्माता समरूप उत्पादों को बाजार में लाने हेतु नाम का दुरुपयोग नहीं कर सकता है। 
  • यह टैग उपभोक्ताओं को भी उस उत्पाद की प्रमाणिकता के बारे में सुविधा और गारंटी प्रदान करता है।
  • व्यक्तियों, उत्पादकों और कानून के तहत स्थापित संगठन या प्राधिकरणों का कोई भी संघ एक पंजीकृत स्वामी हो सकता है। 
  • भौगोलिक संकेतक के लिये पंजीकरण 10 वर्षों तक वैध रहता है। इस 10 वर्ष के बाद इसे पुनर्नवीनीकृत कराया जा सकता है।
  • 'भौगोलिक संकेतक' और 'ट्रेडमार्क' के बीच अंतर होता है। ट्रेडमार्क एक प्रकार का संकेत या चिन्ह है। इसका प्रयोग एक उपक्रम द्वारा अपने वस्तु और सेवाओं को अन्य उद्यमों से पृथक करता है।
  • भौगोलिक संकेतक का उपयोग उन सभी उत्पादकों द्वारा किया जा सकता है जो अपने उत्पादों को भौगोलिक संकेतक द्वारा निर्दिष्ट स्थान पर उत्पादित करते हैं और जिनके उत्पाद विशिष्ट गुण साझा करते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भौगोलिक संकेतक औद्योगिक सम्पत्ति के संरक्षण हेतु पेरिस समझौते के तहत बौद्धिक सम्पदा अधिकारों (आई.पी.आर.) के एक प्रकार के रूप में शामिल किये गए हैं।
  • भौगोलिक संकेतक विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) के व्यापार सम्बंधित पहलुओं पर बौद्धिक सम्पदा अधिकार (TRIPS-ट्रिप्स) समझौते द्वारा भी शासित होता है।
  • डब्ल्यू.टी.ओ. के सदस्य के रूप में भारत ने ट्रिप्स समझौते का पालन करने के लिये अधिनियम बनाया है। 
  • भारत में भौगोलिक संकेतक पंजीकरण को भौगोलिक संकेतक (वस्तु पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम,1999 द्वारा प्रशासित किया जाता है। 
  • यह अधिनियम सितम्बर 2003 से प्रभावी हुआ। 
  • भारत में पहला भौगोलिक संकेतक प्राप्त उत्पाद वर्ष 2004 में दार्जिलिंग चाय थी।
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