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सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय और लैंगिक न्याय

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)

संदर्भ 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता को बरकरार रखा है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 375 का अपवाद 2

  • पति अपनी पत्नी (जिसकी आयु 18 वर्ष से अधिक हो) के साथ सहमति के बिना यौन संबंध स्थापित करता है तो यह बलात्कार नहीं माना जाएगा।
    • अर्थात, विवाहिता और 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिला के मामले में पति को बलात्कार के अपराध से छूट दी गई है।
  • इस प्रावधान को वैवाहिक बलात्कार अपवाद (Marital Rape Exception) के नाम से जाना जाता है।
  • 18 वर्ष से कम आयु की पत्नी के साथ यौन संबंध धारा 375 के तहत बलात्कार माना जाएगा (SC के Independent Thought vs Union of India, 2017 निर्णय के अनुसार)।

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय 

बहुमत का पक्ष  (2:1)

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 375 का अपवाद 2 विधायी नीति का विषय है, इसे न्यायपालिका द्वारा खारिज नहीं किया जा सकता है।
  • वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के व्यापक सामाजिक परिणाम हो सकते हैं, जिसके लिए संसदीय बहस की आवश्यकता होगी।

अल्पमत का पक्ष (न्यायमूर्ति नागरत्ना)

  • यह अपवाद अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव न करना) और 21 (गरिमा एवं शारीरिक स्वायत्तता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
  • विवाह का अर्थ अपरिवर्तनीय सहमति नहीं है।

संवैधानिक मुद्दे 

  • लैंगिक समानता : यौन उत्पीड़न कानून में विवाहित एवं अविवाहित महिलाओं के साथ अलग-अलग व्यवहार करना कानून के समक्ष समानता का उल्लंघन है।
  • शारीरिक स्वायत्तता : अनुच्छेद 21 वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं यौन स्वायत्तता की रक्षा करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय दायित्व : महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (CEDAW) और अन्य मानवाधिकार संधियाँ वैवाहिक बलात्कार से छूट को समाप्त करने का आह्वान करती हैं।

अपवाद को बनाए रखने के पक्ष व विपक्ष में तर्क 

पक्ष 

  • वैवाहिक विवादों में कानून का संभावित दुरुपयोग
  • विवाह एवं पारिवारिक संस्था की पवित्रता पर प्रभाव
  • घरेलू हिंसा कानूनों के तहत नागरिक उपचारों की उपलब्धता

विपक्ष 

  • विवाह यौन हिंसा का बचाव नहीं हो सकता।
  • वर्तमान कानून महिलाओं के शरीर पर वैवाहिक अधिकारों की पितृसत्तात्मक धारणा को कायम रखता है।
  • अधिकांश राष्ट्रमंडल देशों सहित कई देशों ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर दिया है।

आगे की राह

  • विधायी कार्रवाई: संसद को संवैधानिक नैतिकता और लैंगिक न्याय के आलोक में धारा 375 पर पुनर्विचार करना चाहिए।
  • व्यापक सुधार : यौन हिंसा कानूनों को मजबूत करना, दुरुपयोग के खिलाफ सुरक्षा सुनिश्चित करना और लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देना चाहिए।
  • सार्वजनिक चर्चा : विवाह में जबरन यौन संबंध को सामान्य मानने वाले सामाजिक दृष्टिकोण को चुनौती देने की आवश्यकता है।
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