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टी.बी. : स्थिति एवं उपाय

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : सामाजिक न्याय एवं कल्याण)

संदर्भ

विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्ष 2021 आँकड़ों के अनुसार, तपेदिक रोग (टी.बी.) के कारण वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष लगभग 15 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है, जबकि विश्व की तपेदिक राजधानी कहे जाने वाले भारत में इस बीमारी के कारण प्रतिदिन लगभग 1400 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है।

क्या है टी.बी.

यह रोग फेफड़ों से सम्बंधित होता है। इस रोग का मुख्य कारण ‘माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्यूलोसिस’ नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) है। समय से उपचार न किये जाने के कारण यह जीवाणु शरीर के अन्य अंगों, जैसे- गुर्दा, मस्तिष्क इत्यादि को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। इसे क्षय रोग तथा यक्ष्मा रोग भी कहते है।

टी.बी. के कारण और लक्षण 

  • टी.बी. एक संक्रामक बीमारी है, जो सामान्यत: किसी टी.बी. रोगी के संपर्क में आने, साथ खाना खाने, छीकने, खांसने इत्यादि से फैलती है।
  • तीन हफ्ते से अधिक खांसी, भूख न लगना, थकान, कमजोरी, दर्द, बुखार इत्यादि इसके संभावित लक्षण हो सकते हैं।
  • भारत में इसके उपचार के लिये निश्चित समयावधि छह माह है। इसके लिये भिन्न-भिन्न एंटीबायोटिक्स/एंटीबैक्टीरियल दवाओं का प्रयोग किया जाता है।

बीसीजी (BCG)  वैक्सीन

  • टी.बी. के लिये बी.सी.जी. वैक्सीन का प्रयोग किया जाता है। इसे दो फ्राँसीसी वैज्ञानिकों अल्बर्ट कैलमेट और केमिली गुएरिन ने विकसित किया था।
  • बी.सी.जी. वर्ष 1962 में भारत में राष्ट्रीय टी.बी. नियंत्रण कार्यक्रम का एक हिस्सा बन गया।
  • प्राय: विषुवत रेखा से दूरी बढ़ने के साथ-साथ ‘बी.सी.जी. वैक्सीन’ की प्रभावकारिता भी बढ़ती जाती है।
  • यूनाइटेड किंगडम, नॉर्वे, स्वीडन और डेनमार्क में यह अधिक प्रभावी है तथा विषुवत रेखा एवं उसके आस-पास स्थित देशों- भारत, केन्या एवं मलावी में इसकी प्रभावकारिता बहुत कम या नगण्य है।

वैश्विक स्थिति 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन वर्ष 1997 से प्रत्येक वर्ष विश्व टी.बी. रिपोर्ट जारी करता है। अक्टूबर 2021 में जारी रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं-
    • दुनिया भर में तपेदिक रोग मृत्यु का 13वां प्रमुख कारण है और कोविड-19 के बाद यह दूसरा प्रमुख संक्रामक रोग है। वर्ष 2020 में लगभग 1 करोड़ लोग (11 लाख बच्चे) टी.बी. से रोगग्रस्त हुए।
    • इसके कुल मामलों के लगभग दो-तिहाई के लिये विश्व के आठ देशों को जिम्मेदार माना जाता है, जिसमें भारत, चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, पाकिस्तान, नाइज़ीरिया, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं।
    • विभिन्न प्रयासों के माध्यम से वर्तमान में टी.बी. उन्मूलन की दर दो प्रतिशत प्रतिवर्ष तक पहुँच पाई है, हालाँकि इसकी वृद्धि के लिये निरंतर नई पहलों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
    • वर्ष 2015-2020 के लिये इसकी उन्मूलन दर 20% निर्धारित की गयी थी जबकि इसमें केवल 11% की सफलता हासिल हुई।
    • अनुमानत: वर्ष 2000 से 2020 के बीच टी.बी. की पहचान और उपचार के मध्यम से लगभग 66 मिलियन लोगों का जीवन बचाया गया है।
    • वर्ष 2022 में टी.बी. की रोकथाम, निदान, उपचार और देखभाल के लिये 13 अरब यूएस डॉलर का अनुमानित व्यय निर्धारित किया गया है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने लक्ष्यों के अंतर्गत टी.बी. से होने वाली कुल मौतों में 95% तक कमी करने का लक्ष्य वर्ष 2035 तक तय किया है।
    • संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास लक्ष्यों में टी.बी. महामारी के उन्मूलन के लिये वर्ष 2030 की समय-सीमा निर्धारित की है।

विश्व टी.बी. दिवस

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 24 मार्च को विश्व टी.बी. दिवस के रूप में घोषित किया है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य टी.बी. के संबंध में सामाजिक जागरूकता को बढ़ाना तथा इसकी समाप्ति के लिये सभी संभावित उपायों को अपनाना है।
  • वर्ष 2022 के लिये इसकी थीम ‘इन्वेस्ट टू इंड टी.बी., सेव लाइव्स’ (Invest to End T.B., Save Lives) है।

भारत की स्थिति 

  • वर्ष 2021 की विश्व टी.बी. रिपोर्ट के अनुसार, टी.बी. के सर्वाधिक मामले भारत में पाए गए हैं। 24 मार्च, 2022 को भारत टी.बी. रिपोर्ट, 2022 जारी की गई, जिसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं-
    • भारत में टी.बी के मामलों में पिछले वर्ष की तुलना में 19% की वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 2020 में टी.बी. के मरीजों की कुल संख्या 16,28,161 थी, जो वर्ष 2021 में बढ़कर 19,33,381 हो गई।
    • भारत में टी.बी. के सभी रूपों का प्रसार वर्ष 2021 में प्रति एक लाख जनसंख्या पर 312 था। यह प्रसार दिल्ली में सर्वाधिक 747 प्रति एक लाख था जबकि सबसे कम गुजरात में 137 प्रति एक लाख जनसंख्या था।
    • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2019 और वर्ष 2020 के बीच सभी प्रकार के तपेदिक से होने वाली मृत्यु में 11% की वृद्धि हुई है। वर्ष 2020 में टी.बी. से होने वाली मृत्यु की कुल संख्या लगभग 4.93 लाख थी
    • भारत सरकार ने वर्ष 2025 तक देश को टी.बी. मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
    • भारत सरकार ने वर्ष 1962 में देश को टी.बी. महामारी से निजात दिलाने के लिये ‘राष्ट्रीय टी.बी. नियंत्रण कार्यक्रम’ का शुभारम्भ किया था। इसके माध्यम से प्रशासन ने कई क्षेत्रों में सफलता प्राप्त की है।
  • भारत में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टी.बी. की अधिकतम संख्या मानी जाती है, जो कुल 1.30 लाख ड्रग-रेसिस्टेंट मामलों का 27% है। एम.डी.आर. टी.बी. को लाइलाज माना जाता है।

टी.बी. उन्मूलन के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • उच्च संक्रमण वाले क्षेत्रों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेपों के लिये राज्य एवं जिला विशिष्ट रणनीतिक योजना।
  • टी.बी. रोगियों के लिये नि:शुल्क औषधियों एवं निदान की व्यवस्था।
  • प्रमुख संवेदनशील आबादी में सक्रिय टी.बी. मामलों की जांच (केस फाइंडिंग) के लिये अभियान।
  • उपचार सेवाओं को विकेंद्रीकृत करने के लिये आयुष्मान भारत-स्वास्थ्य  एवं कल्याण केंद्रों का एकीकरण।
  • उप-जिला स्तरों पर आणविक नैदानिक ​​प्रयोगशालाओं का विस्तार करना।
  • टी.बी. रोगियों को निक्षय पोषण योजना के माध्यम से पोषण संबंधी वित्तीय सहायता प्रदान करना।
  • सामुदायिक जागरूकता एवं स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति जागरूकता में वृद्धि करने के लिये गहन आई.ई.सी. अभियान।
  • टी.बी. के अधिसूचित मामलों को वेब-आधारित पोर्टल निक्षय इकोसिस्टम (राष्ट्रीय टी.बी. सूचना प्रणाली) के माध्यम से ट्रैक करना।
  • टी.बी. हारेगा, देश जीतेगा अभियान

राष्ट्रीय टी.बी. नियंत्रण कार्यक्रम

  • सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत राष्ट्रीय टी.बी. उन्मूलन कार्यक्रम लागू किया है।
  • इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर निर्धारित लक्ष्य (वर्ष 2030) से पांच वर्ष पूर्व 2025 तक टी.बी. से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना है। 
  • इसके माध्यम से निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ एक राष्ट्रीय रणनीतिक योजना लागू की गई है :
  • टी.बी. रोगियों का शीघ्र निदान, गुणवत्तापूर्ण दवाओं का प्रयोग एवं आहार संबंधी नियमों का पालन।
  • उच्च जोखिम/संवेदनशील आबादी में सक्रिय मामले का पता लगाने तथा संपर्क अनुरेखण (ट्रेसिंग) सहित रोकथाम रणनीतियाँ।
  • वायु जनित संक्रमण पर नियंत्रण।
  • सामाजिक निर्धारकों के समाधान के लिये बहु-क्षेत्रीय प्रतिक्रिया।

भारत में टी.बी. नियंत्रण कार्यक्रम की कमियां

  • राष्ट्रीय टी.बी. नियंत्रण कार्यक्रम की मुख्य कमी एक ‘प्रहरी निगरानी' (Sentinel Surveillance) पद्धति का अभाव है।
  • भारत में टी.बी. रोगियों की व्यक्तिगत उपचार व्यवस्था के कारण अनेक नकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर हुए हैं, क्योंकि एक विशाल जनसंख्या वाले देश में व्यक्ति एक समुदाय के संपर्क में रहकर अन्य लोगों को भी ऐसी संक्रामक रोग से प्रभावित कर देता है।
  • भारतीय टी.बी. नियंत्रण कार्यक्रमों के विफल होने का प्रमुख कारण यह है कि यह जनसामान्य का सहयोग प्राप्त करने में भी विफल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप यह कार्यक्रम अपने लक्ष्यों को पूर्णत: प्राप्त नहीं कर सका है।

भारत में टी.बी. नियंत्रण के लिये उपाए/सुझाव 

  • सर्वप्रथम देश में टी.बी. के लिये एक कुशल प्रहरी निगरानी पद्धति विकसित करने की आवश्यकता है, जिसके माध्यम से विगत परिस्थितियों से सबक लेकर बेहतर भावी रणनीतियों को तैयार किया जा सके।
  • ध्यातव्य है कि टी.बी. एक संक्रामक महामारी है, इसलिये व्यक्तिगत उपचार के स्थान पर विस्तृत उपचार को प्राथमिकता देनी चाहिये एवं रोगी से सम्बंधित व्यक्तियों की भी जाँच व उपचार की व्यवस्था करनी चाहिये।
  • सरकार द्वारा टी.बी. नियंत्रण कार्यक्रम में जनता तथा अन्य कल्याणकारी संस्थानों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि अधिक सकारात्मक परिणाम प्राप्त किया जा सके ।
  • वर्ष 2025 तक भारत को टी.बी. मुक्त राष्ट्र घोषित करने के लिये नई नीतियों एवं कार्यक्रमों को निर्धारित करने की आवश्यकता है, जिससे देश में नए मामलों की रोकथाम की जा सके तथा उनका सफल उपचार संभव हो सके।

निष्कर्ष 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से टी.बी. महामारी के संबंध में अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए गए, जिसके परिणामस्वरूप देश ने टी.बी. से होने वाली मृत्यु के न्यूनीकरण में सफलता प्राप्त की है। तत्कालीन प्रयासों और कार्यक्रमों के आधार पर यह भी अपेक्षित है कि देश वर्ष 2025 तक टी.बी. महामारी की रोकथाम में सफलता प्राप्त कर लेगा।

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