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थलाईवेट्टी मुनियप्पन

चर्चा में क्यों

हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के सलेम के पेरियारी गाँव में स्थित थलाईवेट्टी मुनियप्पन मंदिर को एक बौद्ध स्थल के रूप में पुनर्स्थापित करने का निर्णय दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • एक विशेषज्ञ समिति ने सलेम के पास थलाईवेट्टी मुनियप्पन मंदिर का निरीक्षण कर यह निष्कर्ष निकाला कि यह 'मूर्तिकला बुद्ध के कई महालक्षणों’ (प्रमुख विशेषताओं) को दर्शाती है।
  • अभी तक इस स्थल पर हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार एक स्थानीय देवता की पूजा की जाती है किंतु उच्च न्यायालय के आदेश के पश्चात इसे बौद्ध मंदिर माना जाएगा।
  • न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत एक विशेषज्ञ समिति की निरीक्षण रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करने वाली मौजूदा मंदिर संरचना आधुनिक मूल की है।
  • निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार कठोर पत्थर से निर्मित यह मूर्ति कमल के आसन पर 'अर्धपद्मासन' की स्थिति में थी। साथ ही, हाथ 'ध्यान मुद्रा' में हैं। 
  • सिर में बुद्ध के लक्षण जैसे घुंघराले बाल, उष्निसा और लम्बी कर्णपाली दिखाई देती है। माथे पर उरना (Urna) दिखाई नहीं दे रहा है और सिर धड़ से अलग हो गया था जिसे पुन: चिपका दिया गया था।
  •  अर्धपद्मासन मुद्रा में छवि की ऊंचाई लगभग 108 सेमी. है। साथ ही, मूर्तिकला का पिछला भाग बिना किसी कलात्मक कार्य के सपाट था।
  • तकनीकी और वैज्ञानिक निरीक्षण पर आधारित यह आदेश दक्षिण भारत में ऐसे कई मंदिरों की उत्पत्ति पर बहस को पुनर्जीवित कर सकता है
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