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सिंथेटिक जीव विज्ञान पर एक राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग)

संदर्भ 

वर्तमान में केंद्र सरकार सिंथेटिक जीव विज्ञान पर एक राष्ट्रीय नीति बनाने में कार्यरत है। यह एक उभरता हुआ विज्ञान है, जो डिज़ाइनर दवाइयों के निर्माण से लेकर खाद्य पदार्थों तक के अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिये इंजीनियरिंग जीवन रूपों (Engineering Life Forms) से संबंधित है।

नीति की आवयश्कता

  • राष्ट्रीय नीति मुख्यतः उन तत्वों पर आधारित होनी चाहिये जो विज्ञान के उपयोग से संबंधित हो व वैश्विक विचारों और निर्णयों पर भी आधारित हो।
  • यह नीति सिंथेटिक जीव विज्ञान में अनुसंधान और विकास तथा निजी क्षेत्र की भागीदारी के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिंथेटिक जीव विज्ञान से परस्पर प्रतिस्पर्धा को इंगित करेगी।

पूर्व के प्रयास

  • विदित है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के हिस्से के रूप में भारत ने वर्ष 2011 में सिस्टम बायोलॉजी और सिंथेटिक बायोलॉजी रिसर्च पर एक टास्क फोर्स का गठन किया था। इस निकाय ने जैव ईंधन, बायोरेमेडिएशन (Bioremediation), बायोसेंसर (Biosensors), भोजन और स्वास्थ्य में सिंथेटिक बायोटेक्नोलॉजी से संभावित लाभों को रेखांकित किया।
  • टास्क फोर्स ने प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिये इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारत ओपन सोर्स बायोलॉजिकल प्लेटफॉर्मके रक्षक और समर्थक के रूप में एक विश्व अग्रणी बन सकता है।
  • संसद ने अभी तक ‘भारतीय जैव प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण विधेयक, 2013’ को स्वीकृति नहीं दी है। इसमें आनुवंशिक इंजीनियरिंग के अनुसंधान के लिये एक स्वतंत्र नियामक के निर्माण पर विचार किया गया था। 
  • विशेषज्ञों का मानना है कि सिंथेटिक जीव विज्ञान को भी इस विधेयक में शामिल करने की आवश्यकता है। क्योंकि कई राज्यों में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जी.एम.) खाद्य फसलों के क्षेत्र परीक्षण पर और वाणिज्यिक जी.एम बैंगन पर भी प्रतिबंध है।

सिंथेटिक जीव विज्ञान

सिंथेटिक जीव विज्ञान को ‘नई औद्योगिक क्रांति’ के हिस्से के रूप में शीर्ष 10 सफल प्रौद्योगिकियों में से एक के रूप में देखा जाता है। इससे विज्ञान के क्षेत्र में बदलाव की सबसे अधिक संभावना है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये इसके विनिमयन के लाभ और जोखिम दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं।

नियामक चुनौती

  • नियामक चुनौती यह है कि इसके संभावित जोखिमों से बचाव करते हुये इससे प्रत्याशित लाभ कैसे पाया जाए।
  • जैव प्रौद्योगिकी के पारंपरिक उपकरणों और उत्पादों को नियंत्रित करने वाले कानूनों और विनियमों की रूपरेखा के कुछ मायनों में इसे नवजात क्षेत्र पर लागू किया जा सकता है, किंतु सामान्यतया यह सिंथेटिक जीव विज्ञान की उभरती संभावनाओं के लिए पूरी तरह से अनुकूल होने में विफल रहता है। 

सिंथेटिक जीव विज्ञान का उपयोग

  • सिंथेटिक जीव विज्ञान के प्रमुख उदाहरण में क्रिस्पर प्रणाली (CRISPR System) जीन एडिटिंग सिस्टम का उपयोग शामिल है, जो जानवरों, पौधों और यहाँ तक कि लोगों में दोषपूर्ण जीन को पूरी तरह हटाने या बदलने और जैविक परिणामों को नियंत्रित करने में सक्षम बनता है। 
  • ध्यातव्य है कि क्रिस्पर प्रणाली (CRISPR System) की खोज के लिये वैज्ञानिक जेनिफर डौडना और इमैनुएल चारपेंटियर को वर्ष 2020 में रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
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