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CMS-03 उपग्रह: नौसेना संचार आत्मनिर्भरता में महत्त्वपूर्ण कदम

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास।)

संदर्भ

2 नवंबर 2025 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपना अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह CMS-03, जिसे GSAT-7R भी कहा जाता है, को LVM3-M5 रॉकेट के माध्यम से श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया।

CMS-03 के बारे में

  • परिचय : CMS-03 एक अगली पीढ़ी का बहु-बैंड संचार सैन्य उपग्रह है, जिसे भारत की रक्षा, समुद्री, और सरकारी संचार क्षमताओं को सुरक्षित और सशक्त बनाने के लिए विकसित किया गया है।
  • विकासकर्ता: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
  • वजन: 4,410 किलोग्राम (अब तक भारत से प्रक्षेपित सबसे भारी संचार उपग्रह)
  • मिशन जीवनकाल: 15 वर्ष
  • उद्देश्य:
    • नौसेना, तटरक्षक बल और रक्षा सेवाओं के लिए सुरक्षित व उच्च गति की संचार सुविधा उपलब्ध कराना
    • भारत के समुद्री क्षेत्र में वास्तविक समय में सूचना आदान-प्रदान को सशक्त बनाना
    • प्राकृतिक आपदा प्रबंधन, आपातकालीन संचार और डिजिटल नेटवर्क को मजबूत करना

मुख्य विशेषताएँ

  • बहु-बैंड पेलोड्स : इसमें C, एक्सटेंडेड C, और Ku बैंड शामिल हैं, जो आवाज़, डाटा और वीडियो संचार को बेहतर और सुरक्षित बनाते हैं।
  • विस्तृत कवरेज : यह उपग्रह भारत के मुख्य भूभाग के साथ-साथ हिंद महासागर के विस्तृत क्षेत्र को भी कवर करता है।
  • नौसेना के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन : यह भारतीय नौसेना के जहाज़ों, पनडुब्बियों, विमान और तटीय कमांड केंद्रों को जोड़ने वाला प्रमुख संचार नोड बनेगा।
  • पुराने उपग्रह का स्थान लेगा: यह GSAT-7 “रुक्मिणी” (सितम्बर 2013 से कार्यरत) की जगह लेगा, जिसमें सीमित बैंडविड्थ थी।
  • उन्नत एन्क्रिप्शन तकनीक : संचार को अत्यधिक सुरक्षित बनाती है ताकि संवेदनशील सैन्य डेटा संरक्षित रहे।

भारत की समुद्री सुरक्षा में भूमिका

  • यह उपग्रह नौसेना के नेटवर्क-केंद्रित अभियानों  को सक्षम बनाएगा।
  • इससे भारतीय नौसेना को समुद्री क्षेत्रों में बेहतर सिचुएशनल अवेयरनेस मिलेगी।
  • उपग्रह का डेटा नेटवर्क मेरीटाइम डोमेन अवेयरनेस ग्रिड (Maritime Domain Awareness Grid) का मुख्य हिस्सा बनेगा, जो समुद्री खतरों के प्रति समन्वित प्रतिक्रिया में मदद करेगा।
  • इससे भारत की ‘ब्लू वॉटर नेवी’ बनने की क्षमता को बल मिलेगा।
    • ब्लू-वॉटर नेवी की विशेषताएँ लंबी दूरी की तैनाती, जल-थल युद्ध क्षमताएं, शक्तिशाली विमानवाहक पोत और वैश्विक रसद समर्थन हैं।

LVM3-M5 प्रक्षेपण यान के बारे में

  • पूरा नाम: लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3)
  • उपनाम: "बाहुबली रॉकेट" – भारत का सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान
  • वजन: 641 टन
  • ऊँचाई: 43.5 मीटर
  • क्षमता:
    • 4 टन तक के उपग्रहों को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित कर सकता है।
    • 8 टन तक के उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में भेज सकता है।
  • इंजन:
    • दो S200 सॉलिड बूस्टर
    • एक L110 लिक्विड स्टेज
  • एक C25 क्रायोजेनिक अपर स्टेज – जिसे विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र ने स्वदेशी रूप से विकसित किया है।
  • प्रमुख प्रक्षेपण: एल.वी.एम.-3 ने इससे पहले चंद्रयान-3 (2023) और अब सी.एम.एस.-03 (2025) को सफलतापूर्वक लॉन्च कर अपनी विश्वसनीयता साबित की है।

‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में कदम

सी.एम.एस.-03 की सफलता ने भारत की विदेशी उपग्रह प्रणालियों पर निर्भरता को घटाया है। यह मिशन भारत के स्वदेशी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, सुरक्षित संचार, और सैन्य आत्मनिर्भरता को नई दिशा देता है।

आगे की प्रक्रिया

  • उपग्रह अब लिक्विड एपोजी मोटर (LAM) के जरिए कक्षा में धीरे-धीरे स्थापित होगा।
  • लगभग 4–7 दिनों में यह स्थिर भूस्थैतिक (Geostationary) कक्षा में स्थापित होगा।
  • इसके बाद इसे पूरी तरह परिचालित होने में लगभग 4–5 सप्ताह लगेंगे।

निष्कर्ष

सी.एम.एस.-03 उपग्रह का प्रक्षेपण भारत की रक्षा, समुद्री सुरक्षा और अंतरिक्ष तकनीक के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह न केवल भारतीय नौसेना की संचार प्रणाली को सशक्त बनाता है, बल्कि भारत को वैश्विक स्तर पर एक स्वतंत्र, सुरक्षित और तकनीकी रूप से उन्नत अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित करता है।

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