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त्रिशूर पूरम उत्सव

केरल में भव्य मंदिर उत्सव त्रिशूर पूरम उत्सव ‘उपाचारम चोली पिरियाल’ अनुष्ठान के साथ संपन्न हुआ। यह एशिया के सबसे बड़े उत्सवों में से एक है। 

त्रिशूर पूरम उत्सव के बारे में 

  • परिचय : त्रिशूर पूरम केरल का एक वार्षिक मंदिर उत्सव है जिसे व्यापक रूप से "सभी पूरमों की जननी" के रूप में माना जाता है।यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक समारोह का उदाहरण है। 
  • स्थल : यह उत्सव वडक्कुनाथन मंदिर, त्रिशूर के चारों ओर आयोजित होता है।  
  • आयोजन : इसका आयोजन मलयालम महीने मेदम (अप्रैल-मई) में किया जाता है। 
  • आरंभ : उत्सव की शुरुआत लगभग 200 वर्ष पूर्व कोचीन राज्य के तत्कालीन महाराजा शक्तन थंपुरान (Shakthan Thampuran) द्वारा की गई थी।

उत्सव की प्रमुख विशेषताएँ

  • कोडियेट्टम (Kodiyettam) उत्सव की शुरुआत ध्वजारोहण समारोह के साथ होती है जिसे कोडियेट्टम कहा जाता है, जिसमें भाग लेने वाले मंदिर अपने मंदिरों में ध्वज फहराते हैं। 
  • कुडामट्टम (Kudamattam): यह उत्सव का मुख्य आकर्षण होता है, जिसमें सजे हुए हाथियों की पंक्तियाँ आमने-सामने खड़ी होती हैं, और उन पर सवार लोग रंग-बिरंगी छतरियों (umbrellas) का अद्भुत आदान-प्रदान करते हैं।
  • इलंजीथारा मेलम (Ilanjithara Melam) : यह पारंपरिक वाद्ययंत्रों से सुसज्जित संगीत का प्रदर्शन होता है। जिनमें मुख्य रूप से चेंडा (ढोल) वादक होते हैं। उनके साथ कुरुमकुज़ल, कोम्बु और एलथलम जैसे वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है। 
  • अनुशासित कार्यक्रम व्यवस्था : त्रिशूर पूरम एक सुसंगठित उत्सव है, जिसकी 36 घंटे की निरंतर कार्यक्रम श्रृंखला होती है। प्रत्येक मंदिर की शोभायात्रा और प्रदर्शन पूर्व निर्धारित समयानुसार होते हैं, जिससे उत्सव में ऊर्जा और निरंतरता बनी रहती है।

उत्सव का महत्व 

त्रिशूर पूरम केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक एकता और धार्मिक समरसता का प्रतीक है। इसमें हर जाति, धर्म और वर्ग के लोग बिना भेदभाव के भाग लेते हैं। यह उत्सव केरल की जीवंत सांस्कृतिक विरासत का सजीव उदाहरण है।

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