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पारंपरिक कथकली कोप्पू 

चर्चा में क्यों?

‘कथकली कोप्पू’ के एक मात्र संरक्षणकर्ता केरल के पलक्कड़ ज़िले के कोथाविल बंधुओं ने महामारी के दौरान पारंपरिक कथकली कोप्पू के लघु रूपों (Miniatures) को तैयार किया है।

प्रमुख बिंदु
Miniatures

  • कोथाविल बंधुओं ने स्मारिका और उपहार वस्तु के रूप में नृत्य एवं नाटकों में प्रयुक्त आदमकद कोप्पुओं को केवल 30 इंच के आकार तक सीमित कर दिया है। यह प्रयास कला के संरक्षण तथा उसे समकालीन बनाने में मददगार साबित होगा।
  • कोथाविल बंधु, प्रदर्शन कला के अन्य रूपों, जैसे- कूडियट्टम, कृष्णट्टम, ओथंथुलाल, चकियारकुथु, नंगियारकुथु जिनमें पात्र मुखौटे पहनते हैं, उनके लिये सहायक उपकरण या पोषक बनाते हैं। साथ ही, ये पूथम और थारा जैसे लोक नृत्य जिनमें पात्र ‘किरीदम’ नामक मुकुट भी पहनते हैं, उन्हें भी तैयार करते हैं।
  • कथकली कोप्पू के अंतर्गत अलंकृत मुखौटे, आभूषण और मुकुट शामिल होते हैं। प्रायः कथकली कोप्पू के निर्माण में ‘कुमिज़ु’ नामक नरम लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। 
  • निर्मित आभूषणों में चेविप्पोवु, थोडा, कथिला (कान के लिये), परुथिक्कयमणि, हस्तकदकम, वाला (हाथ और कलाई के लिये), थोलपुट्टु (कंधे के लिये), पदियारंजनम इलासु और मणि (कमर के लिये) तथा कोरलाराम / मुला कोरलाराम (गर्दन / सीने के लिये) शामिल हैं।
  • वस्तुतः कुट्टी चमारम दुष्ट चरित्र द्वारा पहना जाने वाला मुखौटा होता है, इन्हें भी लघु रूप में निर्मित किया गया है। वहीं नायकों द्वारा पहने जाने वाले मुखौटे को आद्यस्तन किरीदम या आद्यवासना किरीदम  कहा जाता है।
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