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(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन पेपर-3)
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क्यों चर्चा में ?
CITES (Convention on International Trade in Endangered Species) की हालिया रिपोर्ट में भारत से कहा गया है कि वह गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों - जैसे गोरिल्ला, ओरंगुटान, चिम्पांजी और हिम तेंदुए - के आयात को तब तक रोक दे, जब तक पर्याप्त जांच और सत्यापन प्रणाली लागू नहीं हो जाती। रिपोर्ट ने झूठे रूप से बंदी-प्रजनित बताई गई जंगली प्रजातियों के अवैध व्यापार की चेतावनी भी दी है।

भारत और CITES:
भारत 1976 से CITES का सदस्य है। सभी अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव आयात-निर्यात के लिए सीआईटीईएस परमिट अनिवार्य है। इसकी निगरानी वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अंतर्गत की जाती है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- आयात किए गए जानवरों के स्रोत और उत्पत्ति संदिग्ध पाए गए।
- वाणिज्यिक प्रजनन केंद्रों से आए जानवरों को चिड़ियाघरों के जानवर बताकर गलत लेबलिंग।
- अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और मध्य पूर्व से आयातित जानवरों की उत्पत्ति की विश्वसनीयता संदिग्ध।
CITES की सिफारिशें:
- आयात प्रक्रियाओं की समीक्षा और कड़ी निगरानी।
- स्रोत देशों के साथ सभी आयातों की पुष्टि।
- झूठे बंदी-प्रजनन दावों के खिलाफ कार्रवाई।
- 90 दिनों के भीतर विस्तृत अनुपालन रिपोर्ट पेश करना।
आगे की प्रक्रिया:
23 नवंबर 2025 को उज्बेकिस्तान में CITES स्थायी समिति की बैठक में भारत का मामला समीक्षा के लिए पेश होगा।
वन्य जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES)

- CITES एक अंतर्राष्ट्रीय संधि (International Agreement) है,
- इसका उद्देश्य लुप्तप्राय वन्यजीवों और वनस्पतियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित और नियमित करना है,
- ताकि इन प्रजातियों को अत्यधिक शोषण से बचाया जा सके।
- यह समझौता 3 मार्च 1973 को वॉशिंगटन डी.सी. (USA) में अपनाया गया था और 1 जुलाई 1975 को प्रभावी हुआ।
सदस्यता:
- वर्तमान में 185 देश CITES के सदस्य (Parties) हैं।
- भारत 1976 में इसका सदस्य बना।
- यह संयुक्त राष्ट्र की किसी एजेंसी का हिस्सा नहीं है,
- लेकिन UNEP (United Nations Environment Programme) इसका प्रशासनिक समर्थन करता है।
उद्देश्य:
- अवैध वन्यजीव व्यापार को रोकना।
- लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण सुनिश्चित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में पारदर्शिता और वैधता बनाए रखना।
- सदस्य देशों के बीच सहयोग और सूचना-साझा प्रणाली विकसित करना।
संरचना और तंत्र:
CITES में संरक्षित प्रजातियों को तीन परिशिष्टों (Appendices) में वर्गीकृत किया गया है
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परिशिष्ट
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विवरण
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व्यापार की स्थिति
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Appendix I
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वे प्रजातियाँ जो विलुप्ति के खतरे में हैं।
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व्यापार केवल असाधारण परिस्थितियों में अनुमति प्राप्त है।
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Appendix II
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ऐसी प्रजातियाँ जो वर्तमान में संकटग्रस्त नहीं हैं, लेकिन यदि व्यापार नियंत्रित न किया जाए तो खतरा बढ़ सकता है।
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नियंत्रित व्यापार की अनुमति।
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Appendix III
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वे प्रजातियाँ जो किसी एक देश में संरक्षित हैं और जिनके लिए अन्य देशों से सहयोग मांगा गया है।
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सीमित और प्रमाणित व्यापार की अनुमति।
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कार्यप्रणाली:
- प्रत्येक सदस्य देश को CITES Management Authority और Scientific Authority नियुक्त करनी होती है।
- इन संस्थाओं का कार्य है -
- आयात-निर्यात परमिट जारी करना,
- व्यापार की वैधता और स्रोत की जांच करना,
- रिपोर्टिंग और निगरानी प्रणाली लागू करना।
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भारत में इसका प्रबंधन पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अधीन वन्यजीव संरक्षण निदेशालय द्वारा किया जाता है।
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भारत में CITES का कार्यान्वयन
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के माध्यम से लागू।
- भारत में किसी भी CITES-सूचीबद्ध प्रजाति का आयात, निर्यात या व्यापार बिना परमिट कानूनी अपराध है।
- वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) इसके प्रवर्तन में प्रमुख भूमिका निभाता है।
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