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अवैध रेत खनन (Illegal Sand Mining) — पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से विश्लेषण

(GS Paper 3 — Environment)

रेत (Sand) — जिसे अक्सर “छोटी चीज़” समझा जाता है — वास्तव में आधुनिक सभ्यता की रीढ़ है। यह निर्माण उद्योग (Construction Sector), कंक्रीट, ग्लास, सड़क और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की मूलभूत सामग्री है।लेकिन बढ़ती मांग और सीमित प्राकृतिक आपूर्ति ने रेत कोसफेद सोना (White Gold) बना दिया है। भारत सहित कई देशों में यह अब अवैध खनन (Illegal Sand Mining), माफिया नेटवर्क, और पर्यावरणीय विनाश का प्रतीक बन चुकी है।

रेत खनन की वैधता बनाम अवैधता

पहलू

वैध खनन

अवैध खनन

लाइसेंसिंग

सरकार द्वारा अनुमोदित खदानें और कोटा प्रणाली

बिना अनुमति या लाइसेंस के खनन

राजस्व

राज्य सरकार को रॉयल्टी और टैक्स मिलता है

कोई राजस्व नहीं; सीधा नुकसान

पर्यावरणीय प्रबंधन

पर्यावरण मंजूरी (EC) और पुनर्भरण नियम

बिना EIA या संरक्षण उपायों के खनन

निगरानी

जिला खनन अधिकारी, SPCB, पुलिस

स्थानीय नेटवर्क, रात में खनन, हिंसा और रिश्वत

भारत में रेत की मांग और आपूर्ति

  • भारत में निर्माण क्षेत्र GDP का ~9% योगदान देता है।
  • हर वर्ष लगभग 700 मिलियन टन रेत की आवश्यकता होती है।
  • कानूनी आपूर्ति ≈ 400 मिलियन टन → घाटा ~300 मिलियन टन, जिसे अवैध खनन द्वारा पूरा किया जाता है।
  • इससे उत्पन्न होता है “Sand Mafia Economy”, जिसका वार्षिक मूल्य 40,000–50,000 करोड़ आंका गया है।

अवैध रेत खनन के प्रमुख क्षेत्र (Hotspots)

राज्य

प्रमुख प्रभावित क्षेत्र

उत्तर प्रदेश

यमुना, केन, बेतवा, सोन, गंगा नदी घाटी

मध्य प्रदेश

नर्मदा, चंबल और ताप्ती घाटी

महाराष्ट्र

गोदावरी, भीमा नदी

तमिलनाडु

वेल्लार, कोलार, कावेरी नदी तट

बिहार

सोन और गंडक नदी

ओडिशा

ब्राह्मणी और महानदी क्षेत्र

हरियाणा-पंजाब

यमुना और सतलुज घाटी

अवैध रेत खनन के कारण

  1. निर्माण क्षेत्र में तेजी से शहरीकरण और मांग में वृद्धि।
  2. खनन नीति और अनुमतियों की जटिल प्रक्रिया।
  3. स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार और प्रशासनिक मिलीभगत।
  4. राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए राजनीतिक संरक्षण।
  5. प्राकृतिक वैकल्पिक रेत (M-sand) की अपर्याप्त उपलब्धता।

पर्यावरणीय प्रभाव

प्रभाव

विवरण

नदी पारिस्थितिकी का क्षरण

नदी तलों की गहराई बढ़ने से भूजल स्तर घटता है, जलधाराएँ सूखती हैं।

कटाव और तटीय क्षरण

नदी किनारे बस्तियाँ और कृषि भूमि कटाव का शिकार।

जैव विविधता को नुकसान

मछलियों, कछुओं, पक्षियों के आवास नष्ट।

जल प्रदूषण

नदी में गाद (silt) असंतुलन, पारदर्शिता घटती है।

जलवायु प्रभाव

नमी घटने से स्थानीय तापमान और धूल प्रदूषण बढ़ता है।

चंबल अभयारण्य, जो घड़ियालों का घर है, अवैध खनन से गंभीर संकट में है।

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

  • ग्रामीणों और पत्रकारों की हत्या — रेत माफिया हिंसा का बढ़ता खतरा
  • स्थानीय जीविकोपार्जन (मछुआरे, किसान) पर असर
  • राज्य सरकारों को हर वर्ष हजारों करोड़ का राजस्व नुकसान
  • कानून-व्यवस्था की चुनौतीअवैध माफिया नेटवर्क का राजनीतिककरण

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

1. नीतिगत उपाय

  • राष्ट्रीय खनिज नीति, 2019 खनन में पारदर्शिता और सतत विकास पर बल।
  • सस्टेनेबल सैंड माइनिंग गाइडलाइंस (SSMG), 2016 पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी दिशा-निर्देश।
  • Enforcement & Monitoring Guidelines for Sand Mining (EMGSM), 2020 – ई-निगरानी, ड्रोन सर्वे और सैटेलाइट ट्रैकिंग का प्रावधान।

2. तकनीकी पहल

  • e-Green Watch Portalपर्यावरण मंजूरी की रीयल-टाइम निगरानी।
  • Drone Mapping & GPS Monitoring खनन स्थल की पहचान।
  • Digital Sand Tracking Systemखनन से लेकर परिवहन तक डिजिटल ट्रैकिंग।

3. कानूनी कार्रवाई

  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएँ: 379 (चोरी), 120B (षड्यंत्र), 420 (धोखाधड़ी)।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और खनिज विकास विनियमन अधिनियम, 1957 के तहत दंडात्मक प्रावधान।
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा समय-समय पर निर्देश — जैसे “Deep Mining Ban in Riverbeds” और “Rehabilitation Plan”

प्रमुख न्यायिक हस्तक्षेप

वर्ष

प्रकरण

न्यायालय का निर्देश

2013

Deepak Kumar v. State of Haryana (SC)

पर्यावरणीय मंजूरी के बिना खनन पूर्णतः अवैध।

2018

NGT बनाम TN Sand Mining Case

रेत परिवहन की डिजिटल मॉनिटरिंग अनिवार्य।

2022

UP Sand Mining PIL

राज्य सरकार को ई-लाइसेंस प्रणाली लागू करने का निर्देश।

वैकल्पिक समाधान

  1. M-Sand (Manufactured Sand):
    • पत्थरों को क्रश कर बनाई गई कृत्रिम रेत।
    • पर्यावरण-अनुकूल और सस्ते विकल्प के रूप में तेजी से लोकप्रिय।
  2. River Replenishment Policy:
    • नदी तल के प्राकृतिक पुनर्भरण की सीमा तय करना।
  3. सामुदायिक भागीदारी:
    • ग्राम पंचायत स्तर पर खनन की निगरानी और रिपोर्टिंग।
  4. Green Construction Innovation:
    • Fly ash, slag, और recycled materials का प्रयोग बढ़ाना।

विश्लेषण

आयाम

विश्लेषण

पर्यावरणीय 

अवैध रेत खनन जलवायु संतुलन, जैव विविधता और नदी पारिस्थितिकी पर गंभीर खतरा है।

आर्थिक 

अवैध खनन से सरकार को राजस्व हानि, परंतु माफिया अर्थव्यवस्था का विस्तार।

शासन 

नीति-क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार और निगरानी की कमी।

सामाजिक 

स्थानीय हिंसा, मानवाधिकार उल्लंघन और पत्रकारों की सुरक्षा का प्रश्न।

संविधानिक आयाम

अनुच्छेद 48A: पर्यावरण संरक्षण का राज्य का दायित्व; 51A(g): नागरिकों का पर्यावरणीय कर्तव्य।

निष्कर्ष

अवैध रेत खनन केवल एक पर्यावरणीय अपराध नहीं, बल्कि यह प्रशासनिक विफलता, सामाजिक हिंसा और आर्थिक असमानता का भी प्रतीक बन चुका है। जब तक सरकार, स्थानीय समुदाय और न्यायपालिका मिलकर पारदर्शी, तकनीक-आधारित और जवाबदेह प्रणाली नहीं बनाते, तब तक यह “रेत की चोरी” हमारी नदियों और समाज दोनों को खोखला करती रहेगी।

“नदियाँ हमारी सभ्यता की आत्मा हैं — और रेत उनका शरीर; यदि शरीर खोखला होगा, तो आत्मा कब तक टिकेगी?”

UPSC MAINS QUESTIONS

  1.  “अवैध रेत खनन भारत में पर्यावरणीय शासन की सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है।” विवेचना करें।
    (GS Paper 3 — Environment)
  2. “अवैध रेत खनन केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक समस्या भी है।” चर्चा करें।
    (Essay / GS Paper 2)
  3. “रेत संसाधनों का सतत उपयोग भारत की जल सुरक्षा से सीधे जुड़ा है।” स्पष्ट करें।
    (GS Paper 3 — Resource Management)
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