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टू-फिंगर टेस्ट

(प्रारंभिक परीक्षा- अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे)

संदर्भ 

उच्चतम न्यायालय के अनुसार, कथित बलात्कार पीड़ितों का ‘टू-फिंगर टेस्ट’ करने वालों को कदाचार का दोषी माना जाएगा। इससे पूर्व भी उच्चतम न्यायालय ने टू-फिंगर टेस्ट को लेकर नाराजगी जताई है। यौन उत्पीड़न के शिकार लोगों की जांच को लेकर केंद्र सरकार का दिशा-निर्देश भी इसका निषेध करता हैं, किंतु यह प्रथा जारी है।

क्या है टू-फिंगर टेस्ट 

  • यौन उत्पीड़न की शिकार किसी महिला के स्वास्थ्य एवं चिकित्सीय जरूरतों का पता लगाने तथा साक्ष्य एकत्र करने आदि के लिये एक चिकित्सा परीक्षण से गुजरना पड़ता है।
  • इस टू-फिंगर टेस्ट में चिकित्सक द्वारा दो उंगलियाँ के माध्यम से पीड़ित महिला की योनि की माँसपेशियों की शिथिलता और हाइमन का आकलन किया जाता है ताकि संभोग के प्रति उसकी आदत का निर्धारण किया जा सके।
  • साथ ही, उच्चतम न्यायालय ने मेडिकल कॉलेजों के पाठ्यक्रम से ‘टू-फिंगर टेस्ट’ को हटाने का भी आदेश दिया है।

सरकारी दिशा-निर्देश 

  • वर्ष 2014 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ‘यौन हिंसा पीड़ितों के लिये चिकित्सीय एवं क़ानूनी देखभाल दिशा-निर्देश तथा प्रोटोकॉल’ शीर्षक से एक दस्तावेज़ जारी किया था।
  • इसके अनुसार, प्रति-योनि (Per-Vaginum) परीक्षण को आमतौर पर टू-फिंगर टेस्ट के रूप में संदर्भित किया जाता है और इसका प्रयोग बलात्कार/यौन हिंसा की पुष्टि के लिये नहीं किया जाना चाहिये। 
    • प्रति-योनि परीक्षण चिकित्सकीय रूप से आवश्यक होने पर केवल वयस्क महिलाओं में ही किया जा सकता है।
  • दिशा-निर्देशों के अनुसार किसी भी चिकित्सकीय जाँच के लिये बलात्कार पीड़िता (नाबालिग या मानसिक रूप से अक्षम होने की स्थिति में उसके अभिभावक) की सहमति आवश्यक है।
  • हालाँकि, उपरोक्त दिशा-निर्देश कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं।

आलोचना 

  • यह तरीका अवैज्ञानिक है और इससे कोई निश्चित जानकारी नहीं प्राप्त होती है। साथ ही, ऐसी जानकारी का बलात्कार के आरोप से कोई संबंध नहीं है।
  • साथ ही, यह परीक्षण इस गलत धारणा पर आधारित है कि यौन रूप से सक्रिय किसी महिला का बलात्कार नहीं हो सकता है।
    • इस प्रकार, बलात्कार की पुष्टि के लिये किसी महिला के यौन संबंधों का इतिहास पूरी तरह से महत्त्वहीन है।
  • इससे महिला के केवल यौन रूप से सक्रिय होने का पता चल सकता है और इससे जबरन संबंध बनाया जाना सिद्ध नहीं होता है।
  • यह परीक्षण सेक्सिस्ट और पितृसत्तात्मक है। साथ ही, यह महिला के निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
  • इसके अतिरिक्त, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी कौमार्य परीक्षण तथा टू-फिंगर टेस्ट को अनैतिक मानते हुए इसकी वैज्ञानिक वैधता को नकारता है। टू-फिंगर टेस्ट मानवाधिकार उल्लंघन के साथ ही पीड़िता के लिये दर्द का कारण बन सकता है जो यौन हिंसा की तरह है।
  • भारत समेत ज्यादातर देशों में टू-फिंगर टेस्ट प्रतिबंधित है। साथ ही, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और इंडोनेशिया जैसे देशों ने टू-फिंगर टेस्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है। संयुक्त राष्ट्र भी इस परीक्षण को मान्यता नहीं देता है

उच्चतम न्यायालय का मत

  • मई 2013 में उच्चतम न्यायालय ने टू-फिंगर टेस्ट को एक महिला के निजता के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए सरकार से यौन उत्पीड़न की पुष्टि के लिये बेहतर चिकित्सा प्रक्रिया अपनाने को कहा था। 
    • वर्ष 2013 में लिलु राजेश बनाम हरियाणा राज्‍य मामले में उच्चतम न्यायालय ने टू-फिंगर टेस्‍ट को असंवैधानिक करार दिया था।
  • आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र, 1966 और शक्ति के दुरुपयोग तथा अपराध पीड़ितों के लिये न्याय के बुनियादी सिद्धांतों की संयुक्त राष्ट्र घोषणा 1985 का आह्वान करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि बलात्कार पीड़ित ऐसी कानूनी मदद के हकदार हैं जो उन्हें फिर से आघात न पहुँचाता हो तथा उनकी शारीरिक या मानसिक पवित्रता व गरिमा का उल्लंघन न करता हो।

टू-फिंगर टेस्ट को रोकने के अन्य प्रयास 

  • इस वर्ष अप्रैल में मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य को टू-फिंगर टेस्ट पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया था। 
  • इसी वर्ष अगस्त में देश के शीर्ष चिकित्सा शिक्षा नियामक- राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने टू-फिंगर टेस्ट संबंधी दिशा-निर्देश सहित फोरेंसिक चिकित्सा पर मॉड्यूल को संशोधित किया हैं। 
    • इसके अनुसार, छात्रों को इन परीक्षणों के अवैज्ञानिक आधार के बारे में अदालतों को सूचित करने के लिये प्रशिक्षित किया जाएगा।
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