(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) |
चर्चा में क्यों
29 मई, 2025 को श्रीलंका गृहयुद्ध से विस्थापन के दशकों बाद भारत से वापस लौटे ‘शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त’ (United Nations High Commissioner for Refugees: UNHCR) द्वारा प्रमाणित एक श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी को उत्तरी जाफना जिले के पलाली हवाई अड्डे पर श्रीलंकाई अधिकारियों ने बिना वैध पासपोर्ट के देश छोड़ने के आरोप में हिरासत में ले लिया।
शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के बारे में
- परिचय: यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक एजेंसी है जो शरणार्थियों और विस्थापित लोगों की सहायता और सुरक्षा करने के लिए काम करती है।
- स्थापना: 14 दिसंबर 1950 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा
- मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड
- कार्य: शरणार्थियों की सहायता और सुरक्षा, उनके अधिकारों और कल्याण की रक्षा
- नोबेल शांति पुरस्कार: वर्ष 1954 और 1981 में
शरणार्थी के बारे में
- परिभाषा : अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी कानून की धारा 2 के अनुसार, शरणार्थी ऐसे व्यक्ति हैं जो ‘जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या राजनीतिक राय के कारण सताए जाने के भय से, अपनी राष्ट्रीयता के देश से बाहर है और इस डर के कारण उस देश की सुरक्षा का लाभ उठाने में असमर्थ है या ऐसा करने के लिए तैयार नहीं है’।
- अधिकार : UNHCR द्वारा किसी व्यक्ति को शरणार्थी प्रमाणित करने से व्यक्ति को अन्य देश में कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं, जैसे कि कानूनी निवास का अधिकार, काम करने का अधिकार और सामाजिक सेवाओं तक पहुंच का अधिकार।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून
- 1951 शरणार्थी सम्मेलन: यह अंतर्राष्ट्रीय कानून की एक महत्वपूर्ण संधि है जो शरणार्थी की परिभाषा और शरणार्थियों के अधिकारों को निर्धारित करती है।
- 1967 का प्रोटोकॉल: यह 1951 के सम्मेलन का एक संशोधन है जो इसे सभी देशों पर लागू करता है, भले ही उन्होंने इस सम्मेलन को औपचारिक रूप से स्वीकार न किया हो।
भारत की स्थिति
- भारत अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी कानून से संबंधित किसी भी अंतर्राष्ट्रीय समझौते का पक्षकार नहीं है।
- भारत के पास अपना कोई विशेष शरणार्थी कानून नहीं है, लेकिन इसने विदेशी अधिनियम, 1946, विदेशी आदेश, पासपोर्ट अधिनियम आदि जैसे अन्य कानूनों का उपयोग करके शरणार्थियों की रक्षा की है।
इसे भी जानिए!
श्रीलंका गृह युद्ध के बारे में
- समय अवधि: वर्ष 1983 से 2009 तक
- पक्ष: श्रीलंकाई सरकार बनाम लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (एल.टी.टी.ई.)
- कारण: जातीय तनाव, तमिलों के साथ भेदभाव, एल.टी.टी.ई. की अलगाववादी गतिविधियाँ
- परिणाम: लगभग 100,000 लोगों की मौतें, आर्थिक नुकसान, पर्यावरण क्षति
- भारत की भूमिका: भारत ने श्रीलंकाई सरकार का समर्थन किया
- भारतीय शांति सेना द्वारा ऑपरेशन पवन (1987) चलाया गया था।
- वर्तमान में करीब 58,000 श्रीलंकाई शरणार्थी तमिलनाडु में शिविरों में रह रहे हैं।
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