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अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय का पर्यावरण एजेंसी पर निर्णय

चर्चा में क्यों 

हाल ही में, अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने हरितगृह गैसों के उत्सर्जन को विनियमित करने के लिये पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) की क्षमताओं पर अंकुश लगा दिया है।

हालिया निर्णय

  • अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने स्वच्छ वायु अधिनियम के तहत कोयले और गैस से चलने वाले बिजली संयंत्रों से हरितगृह गैस उत्सर्जन को विनियमित करने के लिये ई.पी.ए. के मौजूदा अधिकार को वापस ले लिया है। 
  • वेस्ट वर्जीनिया बनाम पर्यावरण संरक्षण एजेंसी मामले में तर्क दिया गया कि संघीय एजेंसी के रूप में ई.पी.ए. के गैर-निर्वाचित नौकरशाहों को ऐसे नियम पारित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये जो अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं। गौरतलब है कि वेस्ट वर्जीनिया अमेरिका में दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक राज्य है।

स्वच्छ वायु अधिनियम, 1963 

  • इस कानून का उद्देश्य गतिशील एवं स्थिर स्रोतों से वायु प्रदूषण को सीमित करके सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ाना है। इसके द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य, लोक कल्याण की सुरक्षा और खतरनाक वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन को विनियमित करने तथा राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों को स्थापित करने के लिये ई.पी.ए. को अधिकृत किया गया है।
  • अमेरिका में प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये इस कानून को एक महत्त्वपूर्ण उपकरण माना जाता है, जो अपने उद्देश्य में काफी हद तक सफल रहा है।
  • हरितगृह गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने वाले अन्य कानून के निर्माण में विफल रहने और ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों की ओर संक्रमण के लिये भी आगे चलकर ई.पी.ए. को अधिकृत किया गया।
  • हालाँकि, इसके कारण राजस्व, रोजगार और आर्थिक स्थिरता के लिये कोयला खनन पर निर्भर रहने वाले राज्यों (जैसे वेस्ट वर्जीनिया) को भारी कीमत चुकाने के लिये मजबूर होना पड़ा।

चुनौतियाँ

  • इस फैसले को जलवायु संकट का सामना करने और स्वच्छ ईंधन की ओर संक्रमण के अमेरिकी प्रयासों के विरुद्ध झटका माना जा रहा है ।
  • इससे जीवाश्म ईंधन में कटौती और स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के अभियान में संघीय एजेंसियों की सहायता लेना मुश्किल हो सकता है।
  • यह निर्णय न केवल जलवायु कार्रवाई से निपटने के उपायों को ही प्रभावित करता है बल्कि सरकार के कार्य करने के तरीके को भी बदलने का प्रयास करता है।
  • इससे जलवायु परिवर्तन से निपटने के भारत सहित वैश्विक प्रयासों पर भी असर पड़ेगा क्योंकि अमेरिका एक बड़ा हरितगृह गैस उत्सर्जक देश है।  
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