- पेरुम्बिडुगु मुथारैयार द्वितीय, जिन्हें सुवरन मारन और शत्रुभयंकर भी कहा जाता है, 8वीं शताब्दी (लगभग 705–745 ईस्वी) के एक प्रभावशाली दक्षिण भारतीय शासक थे।
- ये मुथारैयार वंश से संबंधित थे, जो प्रारम्भ में पल्लवों के सामंत रहे, लेकिन पल्लव शक्ति के कमजोर पड़ने पर स्वतंत्र और प्रभावशाली शासक के रूप में उभरे।
- उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन द्वारा उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।
- इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें दूरदृष्टि, बुद्धिमत्ता और रणनीतिक प्रतिभा से संपन्न कुशल प्रशासक बताया और युवाओं से उनके जीवन को पढ़ने का आह्वान किया।

पेरुम्बिडुगु मुथारैयार
शक्तिशाली प्रशासक और योद्धा
- ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, सुवरन मारन ने पल्लव राजा नंदिवर्मन के साथ कई युद्धों में वीरतापूर्वक भाग लिया।
- समय के साथ उन्होंने तंजावुर, पुदुक्कोट्टई, पेरम्बलुर, तिरुचिरापल्ली और कावेरी नदी घाटी के बड़े हिस्सों पर अधिकार स्थापित किया।
- उनकी प्रशासनिक क्षमता और सैन्य शक्ति के कारण उन्हें “शत्रुभयंकर” की उपाधि मिली।
धार्मिक सहिष्णुता और बौद्धिक संरक्षण
- पल्लव काल में जैन और बौद्ध प्रभाव के बीच हिंदू धर्म का पुनरुत्थान हो रहा था।
- मुथारैयार शासक इस परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- सुवरन मारन के दरबार में जैन आचार्य विमलचंद्र का शैव, बौद्ध, पाशुपत और कापालिक विद्वानों से दार्शनिक वाद-विवाद का उल्लेख मिलता है।
- यह दर्शाता है कि उनका शासन धार्मिक संवाद और बौद्धिक बहस के लिए खुला था।
- इतिहासकार डी.जी. महाजन के अनुसार, विमलचंद्र ने सुवरन मारन (शत्रुभयंकर) के दरबार में आकर विभिन्न संप्रदायों को चुनौती दी-जो उस काल की वैचारिक सक्रियता को रेखांकित करता है।
मंदिर स्थापत्य में ऐतिहासिक योगदान
मुथारैयार वंश को दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला के विकास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। प्रो. के.वी. सौंदरा राजन (पुस्तक: Studies in Indian Temple Architecture, 1975) के अनुसार, मुथारैयारों ने:
- प्रारंभिक गुफा मंदिरों और संरचनात्मक मंदिरों का निर्माण किया,
- जिनका प्रभाव आगे चलकर चोल स्थापत्य पर पड़ा।
लेखक मानते हैं कि चोलों के आगमन से पहले ही मुथारैयारों ने जटिल पत्थर मंदिरों की परंपरा शुरू कर दी थी। बाद में विजयालय चोल ने तंजावुर पर अधिकार कर मुथारैयारों को पराजित किया।
स्मारक डाक टिकट: वर्तमान संदर्भ और महत्व
पेरुम्बिडुगु मुथारैयार द्वितीय के सम्मान में डाक टिकट जारी करना:
- तमिलनाडु के गुमनाम/कम-ज्ञात शासकों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने का प्रयास है।
- यह तमिल सांस्कृतिक विरासत, प्रारंभिक दक्षिण भारतीय राजवंशों और उनके प्रशासनिक–स्थापत्य योगदान को सामने लाता है।
- युवाओं में इतिहास के क्षेत्रीय नायकों के प्रति जागरूकता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।