(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: सूचना प्रौद्योगिकी, कंप्यूटर, रोबोटिक्स और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता) |
संदर्भ
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उदय से उत्पन्न हुई कानूनी एवं नैतिक चुनौतियों का सामना करते हुए केंद्र सरकार ने भारतीय कॉपीराइट कानून में व्यापक बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाया है। उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) ने पुष्टि की कि अगले तीन वर्षों में कॉपीराइट अधिनियम, 1957 में संशोधन किए जाएंगे ताकि AI की नई मांगों को संबोधित किया जा सके।
DPIIT का व्यापक लाइसेंसिंग प्रस्ताव
- हाल ही में जारी DPIIT के कार्यपत्र में एक व्यापक लाइसेंसिंग ढांचे का सुझाव दिया गया है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य ऑनलाइन सामग्री प्रकाशकों (जैसे- समाचार संगठन व पुस्तक प्रकाशक) और AI फर्मों के बीच बढ़ते वैश्विक तनाव को कम करना है।
- मुख्य प्रस्ताव
- रॉयल्टी भुगतान: DPIIT ने एक कॉपीराइट सोसाइटी बनाने का प्रस्ताव किया है।
- सोसायटी का नाम: इसे कॉपीराइट रॉयल्टी कलेक्टिव फॉर एआई ट्रेनिंग (CRCAT) कहा जा सकता है।
- कार्य प्रणाली: चैटजीपीटी जैसे लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) द्वारा डाटा क्रॉल की जाने वाली वेबसाइट्स को CRCAT के माध्यम से रॉयल्टी भुगतान प्राप्त होगा जिसे सोसायटी आपस में वितरित करेगी।
- यह प्रस्ताव AI डेवलपर्स को सामग्री को स्क्रैप करने की सामान्य अनुमति देने का सुझाव देता है किंतु यह सुनिश्चित करता है कि वे अंततः सामग्री प्रकाशकों को उनके योगदान के लिए मुआवजा दें। प्रकाशकों का तर्क है कि उनके डाटा के विशाल भंडार का उपयोग करके ही ये AI मॉडल विकसित व प्रशिक्षित होते हैं, इसलिए उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए।
व्यवसायीकरण के बाद भुगतान का मॉडल
- DPIIT के अनुसार, CRCAT द्वारा AI फर्म्स से भुगतान तभी माँगा जाएगा जब वे अपने मॉडल का व्यावसायीकरण (Commercialization) कर लेंगी। मॉडल के विकास या प्रशिक्षण के दौरान इंटरनेट से डाटा निकालने के समय भुगतान की मांग नहीं की जाएगी। लगभग दो महीने बाद एक अन्य कार्यपत्र जारी किया जाएगा, जो दो महत्वपूर्ण विषयों की जाँच करेगा:
- क्या कृत्रिम बुद्धिमत्ता से निर्मित रचनाएं कॉपीराइट योग्य हैं?
- उनके लिए रचनाकारों का निर्धारण कैसे किया जाएगा?
- इसके बाद ही, सरकार द्वारा नई व्यवस्था स्थापित करने के लिए संसद में कॉपीराइट अधिनियम में संशोधन प्रस्तुत करने की संभावना है।
वैश्विक मुकदमेबाजी और उद्योग समूह का विरोध
- कॉपीराइट धारकों को मुआवज़ा देना विश्व स्तर पर एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। न्यूज़वायर एजेंसी ए.एन.आई. (ANI) और द न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे प्रकाशनों ने चैटजीपीटी डेवलपर ओपनएआई पर मुकदमा दायर किया है जिसमें आरोप लगाया गया है कि कंपनी ने चैट वार्तालापों में उनकी सामग्री का दोहराव किया। ओपनएआई ने इन आरोपों का खंडन किया है।
- भारत में भी तकनीकी उद्योग की संस्था ‘नैसकॉम’ ने प्रस्तावित मॉडल से असहमति जताई है जबकि DPIIT की रिपोर्ट तैयार करने वाली समिति में नैसकॉम की सीट थी। गूगल, मेटा एवं अमेज़ॅन जैसी बड़ी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली इस संस्था ने कहा कि:
- प्रकाशकों को प्रशिक्षण मॉडल में अपने डेटा को शामिल करने से मना करने का विकल्प मिलना चाहिए।
- एक व्यापक लाइसेंसिंग मॉडल AI कंपनियों को और अधिक विवादों में फंसा सकता है।
सबूत का भार—AI डेवलपर्स की प्रमुख चिंता
- DPIIT के प्रस्ताव पर चिंता व्यक्त करते हुए AI मॉडल विकसित करने वाली एक बड़ी टेक कंपनी ने विशेष रूप से ‘सबूत का भार’ (Burden of Proof) के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया।
- कंपनी ने एक नोट में कहा है कि स्थापित कॉपीराइट नियमों के अनुसार, उल्लंघन सिद्ध करने का भार कॉपीराइट स्वामी पर होता है। हालाँकि, DPIIT का हाइब्रिड प्रस्ताव इस सिद्धांत को उलट देता है। नोट में तर्क दिया गया है कि यदि सबूत का भार AI डेवलपर पर है तो उन्हें यह साबित करना होगा कि उन्होंने ‘सामग्री स्वामी’ की सामग्री का उपयोग नहीं किया है, भले ही आउटपुट समान हो। यह अत्यंत कठिन और तकनीकी रूप से अव्यवहारिक है क्योंकि AI जनित उपकरण संभाव्यता (Probability) पर आधारित होते हैं, न कि नियतात्मकता (Determinism) पर।
- यह कानूनी जटिलता दर्शाती है कि भारत का प्रस्तावित ढाँचा AI नवाचार को बढ़ावा देने और सामग्री रचनाकारों के अधिकारों की रक्षा करने के बीच एक नाजुक संतुलन स्थापित करने की कोशिश कर रहा है जिसके लिए अंतिम कानूनी समाधान की राह आसान नहीं होगी।